प्रदीप उपाध्याय
‘भाई साहब, आप तो कह रहे थे कि अब कोई आग-वाग लगने वाली नहीं है। हमने आग बुझा दी है और दुनिया को दिखा भी दिया है कि हम किसी भी विपदा से निपटने में पूरी तरह सक्षम हैं, लेकिन अब जब भीषण आग लगी है तो आपकी तो कोई तैयारी ही नहीं दिखाई दे रही है।’
‘कौन कहता है कि हमारी कोई तैयारी नहीं है। हमने लगभग सभी तैयारियां कर रखी हैं। समझे! जगह-जगह खाली बाल्टियां पहले से ही टंगवा रखी हैं। बस उन्हें भरने की देर है। रेत भरी बाल्टी लगाने के ऑर्डर दे चुके हैं। आग न फैले, इसके लिए चारों ओर खंतियां खोदने के टेंडर भी कर दिए हैं। जल्दी ही प्रक्रिया पूरी कर लेंगे। सभी मदों में बजट का भी प्रावधान कर रखा है। यहां तक कि आपात स्थिति से निपटने के लिए विशेषज्ञ अमले को भरने की विज्ञप्ति भी जारी कर दी है।’
‘लेकिन भाई साहब, यह आग पहले जैसी नहीं है कि आप आस-पड़ोसियों की मदद से बुझा लेंगे। अब घंटी बजाने, ताली या थाली बजाने से कुछ नहीं होगा। पहले जब इधर-उधर भीषण आग लगी थी तब आपके यहां उसका ट्रेलर ही था किन्तु अब स्थिति अलग है। आग तो लग चुकी है और भयानक मंजर है और एक आप हैं कि अपनी तैयारियों को ही गिना रहे हैं। आपकी इन तैयारियों को जब तक आप अमलीजामा पहनाएंगे तब तक तो सब कुछ स्वाहा हो जाएगा।’
‘ऐसा नहीं है। जिनकी जवाबदारी है वे ही अपनी जिम्मेदारी समुचित रूप से नहीं निभा रहे हैं। लेकिन फिर भी चिंता न करें, हम स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और जल्दी ही नियंत्रण में ले आएंगे।’
‘लेकिन यह सब कैसे कर लेंगे। चारों तरफ़ हाहाकार मचा हुआ है। लोग त्राहि-त्राहि कर उठे हैं। बहुत बर्बादी का मंजर है। और आप कह रहे हैं कि सब कुछ नियंत्रण में कर लेंगे!’
‘हां तो क्या हुआ। हम इससे भी निपट लेंगे। वैसे हमने तैयारी तो कर ही रखी थी, लेकिन इस बार इस आपदा ने आने में जल्दी कर दी और फिर किसी ने भी नहीं चेताया। नहीं तो हम कहां पीछे रहते!’
‘कोई कैसे बताते! वे तो खुद ही संकटों से घिरे हुए थे, लेकिन फिर भी उनको देखकर सबक तो लिए ही जा सकते थे। किन्तु आप तो जश्न मनाने में मशगूल थे। आपने देखा भी नहीं कि लपटें उठना शुरू हो गई हैं। और हां, आपके पास आग बुझाने के लिए पानी का भी तो इंतजाम नहीं है और न ही अग्निशामक यंत्र हैं। इतना पानी कहां से लाएंगे!’
‘यह कौन-सा बड़ा काम है। हम आज ही जगह-जगह कुएं खुदवाना शुरू करवा देते हैं। जल्दी ही पानी निकल आएगा और हम आग पर काबू पा लेंगे। ठीक है न!’
और मैं देख रहा था कि भाई साहब के आसपास खड़ी भीड़ तालियां बजा रही थी।