शमीम शर्मा
सबसे ज्यादा सांत्वना की जरूरत प्रेमियों को पड़ती है और उम्मीद के शिखर को भी ये ही लोग स्पर्श करते हैं। लैला-मजनू अब नाम नहीं रहे बल्कि प्रेम करने वालों के पर्याय बन चुके हैं। यह आशावादी होने की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि जो लैला-मजनू इस जीवन में मिल नहीं सकते, वे पूरी तरह आश्वस्त होते हैं कि अगले जन्म में जरूर मिलेंगे। जबकि पक्के तौर पर यह नहीं पता है कि अगला जन्म होता है या नहीं। जीते जी दोस्त यही तसल्ली देते नज़र आते हैं कि जब तक अगली का ब्याह नहीं हो जाता तब तक उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिये।
कॉलेज की लाइफ में प्यार और पढ़ाई का गजब कांबिनेशन है। पहले लैला-मजनू इक्का-दुक्का ही हुआ करते थे, अब इनकी क्लास की क्लास है। सबकी अपनी-अपनी पर निगाह है। और सच कहूं तो अब यह प्रेम रोग कोराेना की तरह बढ़ता ही जा रहा है। कोरोना काल में प्रेमियों पर भी भारी गाज गिरी है। न मिल सकते हैं, न कहीं आ-जा सकते। इसलिये कोरोना के मारे ये बेचारे आॅनलाइनों पर ही जुटे हुए हैं।
अपने वक्त में प्यार करने वाले भी अपनी संतानों को प्रेम रोग से बचने की नसीहतें देने से बाज नहीं आते। पति-पत्नी साइकिल के दो पहिये होते हैं पर पूछने वाले तो सवाल उठा देेते हैं कि जिनकी प्रेमिका भी होती है तो वे क्या रिक्शा के पहिये होते हैं? अगर किसी लड़की के चार-पांच ब्वायफ्रेंड हों तो वो भी कहती मिलेगी कि प्यार अंधा होता है पर इस स्थिति में सच्चाई यह है कि प्यार अंधाधुन्ध होता है। इसलिये किसी चांद को अपना बनाने से पहले यह देख लो कि कितने ग्रह उसके चक्कर लगाते हैं।
मसखरों का विश्लेषण है कि शादी तक जो गर्लफ्रेंड जान होती है वही बाद में जानलेवा सिद्ध हो जाती है। ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि जिन्होंने एक बार क्लास में उसका हाथ दबाया था, वे आज तक उसके पैर दबा रहे हैं। कुछ लड़के प्रेमी के रूप में इतने बदनाम हो जाते हैं कि अगर उनके गांव से कोई लड़की भाग जाये तो उनके घरवालों का फोन आता है कि तू कित मर रह्या है? कुछ लड़कों को सबसे बड़ा गम है कि जो उनसे दो क्लास पीछे थी, आज वो दो बच्चों की मां बनकर उनसे आगे है।
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एक बर की बात है कि ताऊ सुरजा नत्थू तैं ट्रैक्टर चलाणा सिखावै था। नत्थू डरैवर आली सीट पै बैठकै बोल्या—बता ताऊ सबतै पहल्यां के करणा है? सुरजा बोल्या—बेट्टा! तू सबतै पहल्यां न्यूं कर सपना के गाने ला दे।