शमीम शर्मा
72वें गणतंत्र दिवस पर पूरा देश जब गा रहा था—बोलो मेरे संग जय हिन्द-जय हिन्द और तभी अचानक गुलामी पर विजय के प्रतीक लालकिले को पूरे देश ने हाईजैक होते हुए देखा। सभी भारतीयों के लिये जानना अभी बाकी है कि यह शर्मनाक घटना तमाशा था या जुलूस या साजिश?
बचपन से आज तक हमने गणतंत्र दिवस पर परेड का कई-कई बार अवलोकन किया है और कला व संस्कृति से लेकर अपनी सेना की कदम ताल एवं देश की विकास गाथा पर गर्व अनुभव किया है। उड़ते विमानों के करतबों को देख दांतों तले अंगुली दबाई है और अविरल तालियां बजाई हैं। परन्तु यह कभी कल्पना में भी नहीं था कि जब एक तरफ राफेल और तेजस जैसे विमान हमारा सीना चौड़ा कर रहे थे तो दूसरी तरफ खेती में क्रान्ति का बिगुल बजाने वाला ट्रैक्टर हमारा सीना चीर रहा होगा। मानो ट्रैक्टरों की फौज हमारे संविधान के सीने पर मंूग दल रही हो।
विविध राज्यों के नृत्यों के साथ-साथ हुड़दंगियों की अराजकता का नंगा नाच भी देखना पड़ा। कानून के परखच्चे उड़ाकर इस गणतंत्र दिवस पर कुछ सिरफिरों ने अपनी आज़ादी की ऐसी झांकी निकाली, जिसे देख हर भारतीय की आत्मा क्रंदन करती प्रतीत हो रही है। हिंसात्मक हंगामा कर राष्ट्रीयता की आबरू को उपद्रवी मुट्ठीभर लोगों ने अपनी मुट्ठी मंे कर लिया। अब ऐसे लोगों के विरुद्ध मुट्ठी तानने की सख्त जरूरत है।
यह कैसी आजादी है कि अपने अधिकार के संघर्ष के लिए हिंसा का रुख अपनाया जाये और देश की राजधानी में त्रासदीपूर्ण उत्पात की भयावहता से लोगों को आतंकित किया जाये। भय की जो तस्वीर दिल्ली के लोगों ने इस बार देखी, वह पीड़ादायक है। सारा तंत्र ठप हो गया। सारे इंतज़ाम धरे रह गये। आश्चर्य है कि लाखों लोग एक आन्दोलन की वजह से घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं और दूसरी तरफ उपद्रवी लोग सड़कों पर आकर फैसले करने की योजना बना रहे हैं। दिल में उतरने वाला किसान आन्दोलन अब दिल से उतर रहा है।
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एक बर की बात है अक नत्थू सांग का प्रोग्राम देखण गया। बार-बार वो एक्के बात बोल्लै था—ना भाई आज तो सुआद कोनी आया, सुआद कोनी आया। या बात सुणकै उसके धोरै बैठे सुरजे के कान पकण नै होगे तो वो छोह मैं बोल्या-रै झकोई! न्यूं बता तन्नैं क्यूकर सुआद आवैगा। नत्थू बोल्या—भाई सुआद आवैगा जै लट्ठ बाज ज्यैं, ढोल फूट ज्यैं, तम्बू टूट ज्यैं अर मैं कहूं- भाइयो बैठ ज्यो, बैठ ज्यो।