रेनू सैनी
कॉकरोच एक ऐसा कीट है, जिसे देखकर सामान्यतः लोग डर जाते हैं। हम जानते हैं कि कॉकरोच ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकता। इसके बावजूद भी उससे डरते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? और यदि कॉकरोच को देखकर डर पर नियंत्रण कर लिया जाए तो फिर जीवन में क्या-क्या हासिल हो सकता है? कौन-सी नयी ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है। इन्हीं सब बातों का जवाब कॉकरोच थ्योरी में है। इस थ्योरी को गूगल के सीईओ सुंदर पिचई ने खोजा है।
हुआ यों कि एक बार वे एक रेस्तरां में गए। वहां उन्होंने देखा कि कहीं से उड़ता हुआ एक कॉकरोच एक महिला के ऊपर जाकर बैठ गया। कॉकरोच को अपने शरीर पर देखकर महिला बुरी तरह चिल्लाने लगी। उसके चिल्लाने से सभी लोग असहज हो गए। तभी वह कॉकरोच महिला के कान के पास जा पहुंचा। वह अपने कान पर कॉकरोच को हटाने के लिए कान पर हाथ मारने लगी। अब वह कान से सिर के पास जा पहुंचा। फिर महिला अपने सिर के बालों को नोचने लगी। इस प्रकार कॉकरोच के कारण उस महिला का हुलिया पूरी तरह बिगड़ गया।
कुछ देर बाद वह कॉकरोच एक अन्य व्यक्ति के पास जा पहुंचा। वह व्यक्ति भी बुरी तरह चिल्लाने लगा और इधर-उधर हाथ-पैर मारने लगा। जैसे ही वह व्यक्ति उस कॉकरोच को हटाने का प्रयास करता तो वह उसके अन्य अंग पर बैठ जाता। इस कारण उछलने-कूदने के कारण उस व्यक्ति की हालत भी अत्यंत दयनीय हो गई। अचानक सामने से वेटर गुजरा। अब वह कॉकरोच वेटर के ऊपर जा बैठा। वेटर कॉकरोच को देखकर बिल्कुल शांत रहा। वह न ही चिल्लाया और न ही आनन-फानन में इधर-उधर भागा। कुछ देर बाद जब वह कॉकरोच आराम से वेटर की शर्ट पर चलता रहा तो वेटर ने मौका देखकर उसे अपने हाथ से उठाकर बाहर फेंक दिया। इस तरह वह घटना जो सबके लिए समस्या बनी हुई थी तुरंत ही सुलझ गई।
यह घटना देखकर सुंदर पिचई ने कॉकरोच थ्योरी बनाई कि हम सबका जीवन भी इसी तरह का होता है। हम समस्याओं को अपने सामने देखकर हाथ-पैर मारने लगते हैं और बुरी तरह बौखला जाते हैं। ऐसे में हम उलटी-सीधी प्रतिक्रिया करके समस्या को और बढ़ा देते हैं। जबकि ऐसे समय में हमें प्रतिक्रिया के बजाय शांत भाव से जवाब देना चाहिए, ठीक उसी तरह जिस तरह वेटर ने दिया था।
अगर महिला एवं पुरुष के अजीबोगरीब बर्ताव के लिए कॉकरोच जिम्मेदार था तो फिर वेटर उससे परेशान क्यों नहीं हुआ? दरअसल, महिला एवं पुरुष को कॉकरोच नहीं बल्कि उनकी असमर्थता परेशान कर रही थी। स्थिति को संभालने में वे दोनों असमर्थ रहे और अनावश्यक उछलकूद एवं भय प्रकट करने लगे, जबकि भय वाली ऐसी कोई बात नहीं थी। यहां पर ये लोग समस्याओं के कारण व्यथित नहीं हुए, बल्कि इसलिए परेशान हुए क्योंकि ये खुद से हार मान बैठे थे। अपनी हिम्मत छोड़ बैठे थे। हिम्मत और हौसला हर समस्या का पहला तोड़ होता है। हिम्मत और हौसले को हमारे शरीर से तभी साथ छोड़ना चाहिए जब हम सांस छोड़ दें। हमें अपना ध्यान हिम्मत के साथ समाधान पर अधिक फोकस करना चाहिए।
एंथनी जेडी एन्जेलो कहते हैं कि हमें अपना 90 प्रतिशत समय समाधानों पर केंद्रित करना चाहिए और केवल 10 प्रतिशत समस्याओं पर। लेकिन हम करते इसके विपरीत हैं, अर्थात हमारा 90 प्रतिशत ध्यान समस्याओं पर रहता है और केवल 10 प्रतिशत समाधान पर। समस्याओं पर ज्यादा ध्यान लगाने के कारण हमारे एनर्जी हार्मोन एड्रोनलीन व नोरएड्रीनलीन के स्तर में वृद्धि हो जाती है, जिससे व्यक्ति शारीरिक व मानसिक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है और हिम्मत हार जाता है।
कॉकरोच थ्योरी यह बताती है कि कई बार समस्या उतनी गंभीर होती नहीं, जितनी अधिक हम उसकी प्रतिक्रिया कर देते हैं। ऐसे में चीजें और बिगड़ जाती हैं। एक विद्वान का भी कहना है कि ‘समस्या आने पर यदि आप छटपटाएंगे, चीखेंगे, चिल्लाएंगे, चिंता करेंगे तो ऐसे में आपकी समस्या और बढ़ जाएगी, दूर कदापि नहीं हो सकती। आप केवल धैर्य, शान्ति, संतोष के साथ ही समस्या से निपट सकते हैं।’ यदि हमारा पैर किसी विशालकाय वस्तु के नीचे दब जाता है तो हम उस विशालकाय वस्तु को धीरे-धीरे ही पैर से हटाने का प्रयास करेंगे क्योंकि यदि हमने उस वस्तु को हटाने में तीव्रता दिखाई तो ऐसे में हमारे पैर को भी नुकसान पहुंच सकता है। बिल्कुल यही बात कॉकरोच थ्योरी को बताती है।
जवाब हमेशा सोच-समझ कर और धैर्य के साथ दिए जाते हैं। इसलिए रणनीति एवं कौशल के कारण दिए गए जवाब न केवल समस्या को हटा देते हैं बल्कि नए मार्ग भी बना देते हैं। इसलिए इस कॉकरोच थ्योरी को जितना जल्दी हो उसे अपने जीवन का अंग बना लीजिए। यह कॉकरोच थ्योरी कदम कदम पर काम आएगी और हमें हर समस्या का सहज भाव से मस्तिष्क के साथ समाधान करना सिखाएगी।