आलोक पुराणिक
वक्त था, जब राष्ट्रपति कंपनियों को बैन करते थे। अब मामला यह है कि कंपनियां इतनी ताकतवर हैं कि वो राष्ट्रपति को बैन कर देती हैं।
ट्विटर औऱ फेसबुक नामक कंपनियों ने अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप को बाहर का रास्ता दिखा दिया और दिखा दिया है बास हम हैं। ट्रंप की बेइज्जती इस कदर खऱाब हो गयी है इन तमाम कंपनियों के चलते कि सस्ता कर्ज बेचने वाले जो टेलीफोन पर सबकी डांट खाते हैं, वो तक ट्रंप को फोन न करते कि आपके लिए खास हमारे पास एक क्रेडिट कार्ड है।
फेसबुक और ट्विटर और व्हाट्सएप ये सब कुछ दरअसल पत्नियों की तरह हैं, जो आपके बारे में सब कुछ जानती हैं और आपको लगता है कि उन्हें कुछ ना पता। गूगल को पता है कि आप कहां-कहां गये और कब गये। जब आप पत्नी से झूठ बोल रहे होते हैं कि आप मंदिर गये थे, तब गूगल मैप्स में यह एंट्री हो चुकी थी कि आप सुपर वाइन स्टोर गये थे।
डरिये मत, डरने से कुछ न होगा अब, क्या पता आपके वो संदेश तो पहले ही सार्वजनिक हो चुके हों, जिन्हें आप अब डिलीट कर रहे हैं। मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन, यह कहावत खालिस भारतीय है। भारत में चंदन मुफ्त मिल जाता है और उसे खूब घिसने का मौका होता है। फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, गूगल सबका नाता अमेरिका से है, यहां मुफ्त कुछ भी न होता। मौत पर जो रोने वाले आते हैं, वो भी पैसे लेकर आते हैं। मुफ्त में आंसू भी न मिलते औऱ हंसी भी नहीं।
फेसबुक को आपकी बर्थ डे पता है और यह भी पता है कि आप किससे खुंदक खाते हैं, जिसे आपने ब्लाक कर दिया है।
गूगल को पता है कि आपने क्या-क्या ऑनलाइन खऱीदा, आपकी हर खऱीद की रसीद जीमेल पर आयी है। यूं ईमेल तो याहू की भी है। पर याहू की ईमेल का हाल कुछ यूं-सा है जैसे दिलीप कुमार साहब का है, पुराने जमाने की यादें हैं, नये जमाने में पुरानी यादों का ज्यादा असर न रहता।
गूगल को सब पता है, अब दरअसल निजी कुछ है ही नहीं, सिवाय मन के भरम के।
सुन लो गुप्ता, शर्मा, वर्मा, निजीनेस है मन का भरमा। व्हाट्सएप पर सिर्फ गुड मार्निंग, गुड इवनिंग में लगे रहने वाले क्या जानें, उनके इस गुड इवनिंग से व्हाट्सएप वाले अमीर से अमीरतर हो गये। वो न करते गुड इवनिंग, गुड मार्निंग, वो सिर्फ आपका डेटा पकड़ते हैं औऱ आगे सरकाते हैं। फिर आपके पास ऑफर आ जाते हैं, ये कार ले लो, ये मकान ले लो। गुड इवनिंग करके कोई दूसरों को अमीर बना सकता है, अमीर बनने के लिए कार बिकवानी पड़ती है, यह शिक्षा हमें फेसबुक आदि से मिलती है। पर हम लेते नहीं हैं। व्हाट्सएप पर तो ज्ञान गंगा बह रही है, पर ज्ञानी नोट छापने में बिजी हैं और डेटा आगे सरका रहे हैं।