कुमार विनोद
कई बार उपकथाएं मुख्य कथा से भी अधिक आकर्षक प्रतीत होती हैं। सम्बद्ध विषय मुख्य विषय से अधिक रुचिकर लगते हैं। पेट्रोल और डीजल की हालिया दाम-वृद्धि व्यथा-कथा में बिग-बी से लेकर प्रभु श्रीराम, सीता मैया और चतुर्वेदी लंकेश तक की एंट्री से भी कुछ-कुछ ऐसा ही हो रहा है। ‘तब’ दहाड़ने का अभिनय करने वाले कागजी शेर ‘अब’ खामोशी का पैरहन कैसे ओढ़ सकते हैं? लंकेश के देश श्रीलंका और सीता मैया के देश नेपाल में पेट्रोल सस्ता और प्रभु श्रीराम के अपने ही देश भारत में महंगा! इसे कहते हैं घिसी-पिटी कथा में नवीनतम ‘ट्विट्टरीय उपकथा’ का तड़का!
खुदा का शुक्र है कि ‘हुई महंगी बहुत ही शराब के, थोड़ी-थोड़ी पीया करो’ की ताकीद करने वाले शायर अपने ऊपर यह तोहमत लगाए जाने से बच गए कि शराब जैसी भोग-विलास की वस्तु की महंगाई ने तो आपकी कलम को रवानगी बख्श दी और पेट्रोल-डीजल जैसी ज़रूरी चीजों के दामों में समय-समय पर लगी आग की गर्मी ने आपकी कलम की सियाही तक सोख ली। ऐसे में हो सकता है कि शायर अपनी जान बचाने के लिए अपने कलाम में इस मामूली-सी तरमीम से ही काम चला लेता कि ‘हुआ महंगा बहुत पेट्रोल के, साइकिल पे भी चला करो।’
अपुष्ट खबर है कि देशभर में मची धमाचौकड़ी के बीच किसी गुप्त स्थान पर पेट्रोकेमिकल्स संघ की भारतीय इकाई की बैठक में शामिल सभी सदस्यों ने अपने प्रधान मिस्टर पेट्रोल को उनकी ‘मेडन सेंचुरी’ की बधाई दी। इस अवसर पर अपने जोशीले उद्बोधन में मिस्टर पेट्रोल ने कहा कि जब सावण में आग लग सकती है और पूरा देश मीका सिंह एंड पार्टी के साथ सावण में लग गई आग दिल मेरा… गाकर इसे सेलिब्रेट कर सकता है तो मेरे दाम(न) में आग क्यों नहीं लग सकती!
उधर, एक विपक्षी दल के नेता, घर में ही बोलकर देख रहे थे, ‘अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो, डीजल नब्बे, पेट्रोल सौ’, जिसे देख-सुनकर नेता जी का अबोध पुत्र हैरान था कि उसके पिता इतनी सरल कविता को भी गलत बोल रहे थे। एक अन्य विपक्षी दल के नेता से बातचीत में आशा प्रकट करते हुए मैंने कहा कि हाल ही के देशव्यापी धरने, विरोध-प्रदर्शन के मद्देनजर हो सकता है कि सरकार पेट्रोल-डीजल के दामों में तुरंत प्रभाव से कुछ कमी ले आए तो उनका कहना था कि शुभ-शुभ बोलिए जनाब, इतनी भी क्या जल्दी है, कम से कम सिर पर खड़े विधानसभा के चुनाव तो निपट जाने दीजिए!