नशाखोरी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, खासकर युवा पीढ़ी में। पंजाब इस समस्या की वजह से बुरे दौर से गुजर रहा है। पंजाब, जो कुछ दशक पहले तक महज एक नशीले पदार्थों की सप्लाई में ‘आवागमन’ का माध्यम था, अब खुद उपभोक्ता बन चुका है। नशे की आसान उपलब्धि, युवाओं में बेरोजगारी व प्रभावशाली प्रतिरोधक प्रयासों का न होना इस समस्या की बढ़ोतरी के मुख्य कारण हैं। फिर सीमापार से नशा पदार्थों की तस्करी करने वालों के खतरनाक मंसूबे अन्य अहम वजह है। इसे ‘नशा-आतंकवाद’ भी कहा जा सकता है जो युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। नशीले पदार्थों पर निर्भरता न केवल किसी के स्वास्थ्य पर असर डालती है बल्कि पूरे परिवार और समाज के सुचारु संचालन को प्रभावित करती है। इसलिए यह मनो-सामाजिक और मेडिकल पहलू से गंभीर विषय है। पंजाब में इस समस्या से निबटने के प्रयासों के वांछित परिणाम नहीं मिल पाए। शायद अब समय आ गया है कि युद्ध की तरह लेकर अभिनव प्रयासों, अधिक प्रतिबद्धता और निष्ठा से इस गंभीर सामाजिक समस्या से पार पाया जाए।
नशाखोरी निवारण करने में मांग-आपूर्ति में कमी लाना और इसका शिकार बने या आदी बने लोगों की विशेष देखरेख और मदद करने वाला प्रबंधन भी शामिल है। इस सामाजिक बीमारी से निपटने में मांग और आपूर्ति में कमी लाना द्वि-आयामी कार्यवाही है जहां आपूर्ति की कमी बनाना कानून लागू करवाने वालों और जांच एजेंसियों के प्रयास पर निर्भर है वहीं मांग में कमी मुख्यतः प्रतिरोधक कोशिशों और सामाजिक एकजुटता से बन सकती है। मांग में कमी लाने को सामाजिक ताने-बाने व संस्कृति पर आधारित प्रतिबद्धता और नूतन प्रयासों की जरूरत है। अनेकानेक अध्ययन बताते हैं कि शराब और अन्य नशों का सेवन करने में 16-21 साल का युवा वर्ग अधिक जिज्ञासु है और वे आसानी से खिंचे चले जाते हैं। चूंकि इस आयु वर्ग का अधिकांश समय उच्चतर विद्यालयों, कॉलेजों या घर में व्यतीत होता है। इसलिए इन जगहों पर स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर शिक्षा विभाग और सामाजिक ताना-बाना अपने प्रयासों से नशे की मांग में कमी लाने हेतु जागृति बनाए।
राष्ट्रीय नशा मांग निवारण कार्यक्रम (डीडीआरपी) के तहत सूचना, संचेतना अभियान, शिक्षा और शिकार बने व्यक्ति की जल्द मदद करने वाले अवयव हैं। शराब और नशाखोरी पर केंद्र सरकार की योजनाओं को सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय क्रियान्वित करता है। भारत में नशीले पदार्थों के सेवन की पैठ और तौर-तरीकों पर किए गए पहले राष्ट्रीय अध्ययन की रिपोर्ट फरवरी, 2019 में आई थी। इसके मुताबिक नशाखोरी में शराब का हिस्सा सबसे अधिक है। सामाजिक भलाई मंत्रालय ने नशे की मांग में कमी लाने के लिए एक राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाकर क्रियान्वयन शुरू किया है। ‘नशा मुक्त भारत अभियान’ का उद्देश्य युवा लड़के-लड़कियों को इस लत के दुष्परिणामों पर केंद्रित वैध और सटीक जानकारी देते हुए नशे के खिलाफ प्रेरणा, जागरूकता और संवेदनशीलता बनाना है। उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम को सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय ने 15 अगस्त, 2020 के दिन शुरू किया था।
मांग में कमी लाने के लिए सभी राज्यों को अपने स्थानीय विशिष्ट कारकों और सामाजिक व्यवहार पर आधारित योजना बनाने की जरूरत है। क्रियान्वयन में बृहत डीडीआरपी योजना और तमाम संबंधित पक्षों एवं मुख्य कार्यकारी अंग जैसे कि शिक्षा, संस्कृति और स्वास्थ्य विभागों के अलावा सामुदायिक नेताओं और बहु-एजेंसियों की पहल की जरूरत है। स्कूल-कॉलेज स्तर पर नशाखोरी के खिलाफ शिक्षा और जागरूकता बनाने को राज्यस्तरीय तरजीह दी जाए। यह जिम्मेवारी सामाजिक ज्ञान, मनोविज्ञान विषय के अध्यापकों के अतिरिक्त पेशेवर स्वास्थ्य कर्मियों को सौंपी जा सकती है। इस अभियान के तहत समय रहते रोक-टोक, नशों के बुरे असर पर जागरूकता, व्यक्ति विशेष और परिवार एवं समाज में स्वास्थ्य और सामाजिक भलाई की अहमियत जगाना है। इस प्रतिरोधक कार्यक्रम में स्वस्थ जीवनचर्या अपनाने के फायदों पर ज्यादा जोर दिया जाए। डीडीआरपी और चिकित्सीय योजना एवं निगरानी करने वाली रणनीति बनाने में राज्यस्तरीय विशेषज्ञ प्रतिबद्ध समूह सहायता कर सकता है।
मांग में कमी लाने का अन्य पहलू नशीले पदार्थों तक पहुंच सीमित करना है। युवाओं की शराब तक पहुंच आसान न हो। हालांकि कानून के अनुसार 21 साल से कम के युवा शराब खरीद या सेवन नहीं कर सकते। किंतु दुर्भाग्यवश कानून लागू करवाने वाली प्रशासनिक इकाइयां इन रोकों का पालन कड़ाई से नहीं करवा पातीं। मांग कम करवाने की कड़ी में किसी नशीले पदार्थ तक पहुंच एक प्रमुख अवयव है, जब नशा महंगा होगा तो गैरकानूनी नशीली दवाओं का सेवन करने वाले भी कम हो जाते हैं। एक नशीले पदार्थ की कम उपलब्धता नशेड़ी को किसी अन्य नशे की ओर मोड़ देती है और इस तरह यह प्रवृत्ति मांग कम बनाने वाली गतिविधियों-प्रयासों में एक अचड़न बन जाती है। अतएव शराब समेत तमाम नशीले पदार्थों तक आसान पहुंच को कम करना चाहिए।
सामाजिक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाना एक अन्य तरजीह हो। पंजाब सरकार द्वारा संगरूर में हाल ही में आयोजित की गई साइकिल रैली एक श्लाघायोग्य प्रयास है। इसी तरह मंत्रियों, सामाजिक नेता और वरिष्ठ राजकीय अफसरों की शिरकत इस पवित्र काम में होने के दूरगामी प्रभाव बनेंगे। इस किस्त के प्रयास जागरूकता और असर पैदा करते हैं और समाज की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देते हैं। शहर और गांव, दोनों जगह सामुदायिक भागीदारी बनाना मुख्य एजेंडा और ध्यान का केंद्र हो।
नशे की ओर झुकाव में बेरोजगारी एक अन्य कारण है, जो युवाओं को नशे की लत की ओर खींचता है। राज्यस्तर पर, कॉलेजों में नाना प्रकार के कौशल-आधारित कोर्स शुरू करने की जरूरत है, जिससे कि युवा पीढ़ी का रोजगार सुनिश्चित हो सके। कौशल युक्त युवाओं की सहायता हो और उन्हें न केवल राज्य और देशभर में रोजगार पाने में मार्गदर्शन किया जाए, बल्कि विदेशों में भी।
डीडीआर कार्यक्रम की सफलता राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामुदायिक सहयोग पर निर्भर है। मांग और आपूर्ति में कमी लाने के प्रयास इस समस्या से निपटने में सफलता के लिए सबसे जरूरी हैं। हालांकि आपूर्ति की कमी बनाने में आमतौर पर मुख्यतः प्रयास सरकारों का होता है, लेकिन प्रशासन को चाहिए कि मांग में कमी लाने वाले अवयव पर वांछित ध्यान और तरजीह देना भी मुख्य प्रयासों का हिस्सा हो। बेशक पीड़ित और उनके परिवार को मानवीय मदद की जरूरत होती है। नशा छुड़ाने वाले प्रयास प्रमाण-आधारित उपचार से हों ताकि नीम-हकीमों को दूर रखा जा सके। यही समय है कि जब इस अलामत से छुटकारा पाने और हमारी युवा पीढ़ी बचाने में राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर पूरे सूबे के लोग एकजुट हों।
लेखक पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के निदेशक रहे हैं।