पंकज चतुर्वेदी
गत 13 जनवरी को वाराणसी से रवाना किये गए विश्व के सबसे लम्बे रिवर क्रूज ‘एमवी गंगा विलास’ की यात्रा का 28 फरवरी को डिब्रूगढ़ में समापन हुआ। उन्हीं दिनों ‘टी सिटी ऑफ इंडिया’ कहलाने वाले असम के डिब्रूगढ़ शहर में ऐसी दहशत फैली कि कई बस्तियों के लोगों को अपना सामान लेकर भागना पड़ा। शहर को नदी के प्रकोप से बचाने के लिए बनाए गए डिब्रूगढ़ टाउन प्रोटेक्शन (डीटीपी) डाइक से महज दस मीटर दूरी तक की ज़मीन कट कर नदी में बह गई। डिब्रूगढ़ गुरुद्वारे के पीछे की विशाल भूमि को ब्रह्मपुत्र नदी बहा कर ले गई। गत 12 मार्च को कोयला घाट के पास अचानक एक नये स्थान पर जमीन का बड़ा टुकड़ा नदी तोड़कर ले गई। दरअसल, प्रशासन के पास रेत से भरे बोरे रखने के अलावा कोई हल नहीं है।
बता दें कि डिब्रूगढ़ शहर पहले ब्रह्मपुत्र नदी से काफी दूर डिब्रू नदी के किनारे था। साल 1950 में इस इलाके में भूकंप आया और इससे ब्रह्मपुत्र नदी की दिशा बदल गई। जमीन हिलने से नदी तट की भूमि ऊंची हुई और ब्रह्मपुत्र सीधे-सीधे डिब्रू से मिल गई। मैजान चैनल जो पूर्व में डिब्रू नदी की एक सहायक नदी थी उसका मिलन भी हो गया। नदियों के मिलन से प्रवाह में तीखापन आया और फिर पहाड़ से तेजी से बह कर आ रही ब्रह्मपुत्र में गाद के बढ़ने से डिब्रूगढ़ के आसपास कटाव बढ़ गया। दुनिया में सबसे अधिक तलछट से भरी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र है। इसके साथ बहकर आई गाद, मिट्टी और चट्टानों के टुकड़ों से द्वीप बनते हैं। यहां इसे चार की जमीन कहते हैं। यहां ऐसे करीब 2,300 द्वीप बन चुके हैं। कुछ बड़े द्वीपों को छोड़ दें तो इनमें अधिकतर अस्थायी हैं- स्थानांतरित होते रहते हैं। इनमें सबसे बड़ा द्वीप माजुली है जो कि दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप है। कटाव की वजह से अपने मूल आकार के एक-तिहाई तक सिकुड़ जाने के बाद भी यह विशाल बना हुआ है। लगभग 400 वर्ग किमी में फैला माजुली तकरीबन राजस्थान की राजधानी जयपुर जितना बड़ा है। डिब्रूगढ़ भी इसी तरह निर्मित है। डिब्रूगढ़ में हर दशक में बाढ़ के स्तर में 0zwj;.33 मीटर की दर से वृद्धि हुई। इससे नदी की गहराई और जल वहन क्षमता कम हो गई है।
डिब्रूगढ़ शहर के लिए यह खतरा नया नहीं है। बीते चार दशकों से यहां कटाव तेजी से हो रहा है लेकिन लेकिन अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। जल संसाधन विभाग ने कटाव रोकने के जो भी प्रयास किये वे पानी में मिट्टी की ही तरह बह गए। दरअसल, सरकारी महकमे ब्रह्मपुत्र नदी के चरित्र को समझने में असफल रहे हैं। जब-जब भूमि कटाव से दहशत फैलती है तो महकमें पत्थर-मिट्टी से तटबंध बना देते हैं। मैजान मोथोला से मोहनघाट और बोगीबील तक 10 किमी लंबा तटबंध बना दिया तो शहर के बीचोंबीच 22 किमी लंबा नाला खोद दिया गया। इधर शहर की आबादी बढ़ी और दूसरी तरफ नदी ने जमीन को काटा। नाला भी शहर में बाढ़ का कारक बन गया।
इसमें कोई शक नहीं कि असम की भौगोलिक स्थिति जटिल है। उसके पड़ोसी राज्य पहाड़ों पर हैं और वहां से नदियां तेज बहाव के साथ नीचे की तरफ आती हैं। असम की ऊपरी अपवाह में कई बांध बनाए गए। चीन ने तो ब्रह्मपुत्र पर कई विशाल बांध बनाए हैं। इन बांधों में जब कभी जल का भराव पर्याप्त हो जाता है, पानी को अनियमित तरीके से छोड़ दिया जाता है। एक तो नदियों का अपना बहाव और फिर साथ में बांध से छोड़ा गया जल, इनकी गति बहुत तेज होती है और इससे जमीन का कटाव होना ही है। भारत सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि असम में नदी के कटाव को रोकने के लिए बनाए गए अधिकांश तटबंध जर्जर हैं और कई जगह पूरी तरह नष्ट हो गए हैं। अनुमान है कि राज्य में कोई 4448 किलोमीटर नदी तटों पर पक्के तटबंध बनाए गए थे ताकि कटाव को रेाका जा सके लेकिन आज इनमें से आधे भी बचे नहीं हैं। बरसों से इनकी मरम्मत नहीं हुई, वहीं नदियों ने अपना रास्ता भी खूब बदला।
भूमि कटाव का बड़ा कारण राज्य के जंगलों व आर्द्र भूमि पर हुए अतिक्रमण भी हैं। राज्य के हजारों पुखरी-धुबरी नदी से छलके जल को साल भर सहेजते थे। ऐसे स्थानों पर अतिक्रमण का रोग ग्रामीण स्तर पर पहुंच गया और नदी को अपने किनारे काटने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा।
वर्ष 1912-28 के दौरान जब ब्रह्मपुत्र नदी का अध्ययन किया था तो यह करीब 3870 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र से गुजरती थी। साल 2006 में किए गए इसी तरह के अध्ययन से पता चला कि नदी का भूमि छूने का क्षेत्र 57 प्रतिशत बढ़ कर 6080 वर्ग किलोमीटर हो गया। वैसे तो नदी की औसत चौड़ाई 5.46 किलोमीटर है लेकिन कटाव के चलते कई जगह ब्रह्मपुत्र का पाट 15 किलोमीटर तक चौड़ा हो गया है। साल 2001 में कटाव की चपेट में 5348 हेक्टेयर उपजाऊ जमीन आई, जिसमें 227 गांव प्रभावित हुए और 7395 लोगों को विस्थापित होना पड़ा। वहीं 2004 में यह आंकड़ा 20724 हेक्टेयर जमीन, 1245 गांव और 62,258 लोगों के विस्थापन पर पहुंच गया। साल 2010 से 2015 के बीच नदी के बहाव में 880 गांव बह गए, जबकि 67 गांव आंशिक प्रभावित हुए। असम की लगभग 25 लाख आबादी ऐसे गांवों में रहती है जहां हर साल नदी उनके घर के करीब आ रही है। ऐसे इलाकों को यहां ‘चार’ कहते हैं। हर बार ‘चार’ के संकट, जमीन का कटाव रोकना, मुआवजा, पुनर्वास चुनावी मुद्दा भी होते हैं। डिब्रूगढ़ जैसे पर्यटन स्थल पर ख़तरा मंडरा रहा है तो उसकी चर्चा भी है लेकिन यह राज्य की बड़ी आबादी के लिए स्थाई रोग है। जरूरत है कि असम की नदियों में ड्रेजिंग के जरिये गहराई को बढ़ाया जाए। इसके किनारे से रेत खनन पर रोक लगे।