दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर बाकायदा ढोल-नगाड़े बजाकर जो डिजिटल यात्रा सिस्टम शुरू किया गया है, उसमें यात्रियों को एयरपोर्ट में दाखिल होने के लिए कैमरे के सामने अपना चेहरा दिखाना होगा। सिस्टम में मौजूद डाटा से चेहरे का मिलान होने पर वे एयरपोर्ट के अंदर दाखिल हो पाएंगे। विमान में सवार होने से पहले यात्रियों की अनिवार्य जांच में लगने वाले समय की बचत के उद्देश्य से शुरू किए गए इस सिस्टम के तमाम फायदे हो सकते हैं, लेकिन जिन तर्कों के साथ अमेरिका तक में इसके इस्तेमाल पर रोक लगी है, क्या वे नुकसान हमारे देश में नहीं हैं।
तकनीक के नजरिए से देखें तो यह एक किस्म का बायोमेट्रिक सॉफ्टवेयर है। यह सॉफ्टवेयर किसी व्यक्ति के चेहरे की विशेषताओं को गणितीय रूप से मैप करता है। संगृहीत डाटा को फेसप्रिंट के रूप में जमा करता है। इस सॉफ्टवेयर में किसी व्यक्ति की पहचान के लिए डीप लर्निंग एल्गोरिदम का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार चेहरे की विशेषताओं के आधार पर लोगों की पहचान करने का यह कम्प्यूटरीकृत तरीका है, जिसमें कैमरे का इस्तेमाल होता है। उड्डयन मंत्रालय की परियोजना डिजीयात्रा एप की मदद से विमान यात्रियों को हवाई अड्डे में दाखिल होने के लिए लगने वाली लंबी कतार और पहचान के तमाम दस्तावेज दिखाने से बचाने के उद्देश्य से इस तकनीक का परीक्षण 2017 में ही शुरू हो गया था। शुरुआत में एक जुलाई, 2019 से हैदराबाद स्थित राजीव गांधी एयरपोर्ट पर इस फेस रिकॉग्निशन सिस्टम की शुरुआत ट्रायल के तौर पर की गई थी। एंड्रायड सिस्टम पर आधारित डिजीयात्रा एप या कहें कि इस तकनीक की मदद से एयरपोर्ट में प्रवेश, सुरक्षा जांच और बोर्डिंग गेट तक यात्री आसानी से पहुंच सकते हैं। दावा है कि अब से प्रत्येक यात्री को प्रत्येक टचपॉइंट पर तीन सेकंड से कम समय की आवश्यकता होगी।
एयरपोर्ट पर तकनीक से जुड़ा सिस्टम यात्री के चेहरे और टिकट के कोड को स्कैन करने के बाद ही यात्रियों के लिए एंट्री गेट खोल देगा। डिजीयात्रा यानी डिजिटल यात्रा प्रोजेक्ट में एक बार रजिस्टर हो जाने के बाद यात्रियों को बार-बार एयरपोर्ट में दाखिल होने के लिए अपने दस्तावेज दिखाने नहीं होंगे। ऐसी स्थिति में उनका चेहरा ही बोर्डिंग पास होगा। सुरक्षा एजेंसी- सीआईएसएफ द्वारा अंतिम जांच से पहले भी वहां चेहरे को स्कैन करने वाले कैमरों से उस यात्री के बारे में तमाम जानकारी सीआईएसएफ के सामने होगी। इस सिस्टम में चेहरे के मिलान के साथ ही ऑनलाइन या ऑफलाइन टिकट के कोड को सीआईएसएफ द्वारा स्कैन किया जाएगा। दोनों का मिलान होने पर ग्रीन सिग्नल मिलेगा और इसी के साथ एयरपोर्ट में एंट्री करने के लिए फ्लैप गेट खुल जाएगा। साथ ही इसका फायदा यह बताया गया है कि प्रोजेक्ट पूरी तरह से शुरू होने के बाद ऐसे यात्रियों को एयरपोर्ट के एंट्री गेट पर ही रोक दिया जाएगा, जिनके पास फर्जी या एडिट किए हुए टिकट होते हैं। फर्जी टिकट होने पर फेस रिकॉग्निशन में रजिस्टर्ड होने के बाद भी फ्लैप गेट नहीं खुलेगा। एयरपोर्ट के अलावा इस तकनीक को रेलवे स्टेशनों पर भी आजमाने की तैयारी बताई जा रही है।
लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यह तकनीक फुलप्रूफ है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित इस स्वचालित तकनीक में अमूमन कोई नुक्स नहीं होना चाहिए पर दुनियाभर में सामने आए कई मामले इस तकनीक को संदेह के घेरे में लाते हैं। जैसे, वर्ष 2019 में ब्रिटेन में सामने आए एक मामले की स्वतंत्र जांच-रिपोर्ट से खुलासा हो चुका है कि लंदन मेट्रोपॉलिटन पुलिस की चेहरा पहचानने वाली तकनीक द्वारा पहचाने गए पांच संदिग्ध अपराधियों में से चार यानी 80 फीसदी लोग निर्दोष थे। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही ब्रिटेन के लोग गुस्से से उबल पड़े। इस रिपोर्ट के सामने आने से दो महीने पहले मई, 2019 में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को शहर ने अपने यहां चेहरे से पहचान की तकनीक को प्रतिबंधित कर दिया था। इस फैसले पर अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन का कहना था कि चेहरे से पहचान स्थापित करने जैसी निगरानी तकनीक दरअसल सरकार को आम लोगों के दैनिक जीवन की निगरानी का असाधारण अधिकार देती है।
इस सिस्टम की एक बड़ी खामी यह है कि इसमें अपराध से निपटने के नाम पर अलग-अलग डाटाबेस में मौजूद आंकड़ों-तस्वीरों-वीडियो को आपस में मिलाने (विश्लेषण करने) और फिर पूरे डाटा का विश्लेषण कर सामने आने वाले हर व्यक्ति की प्रोफाइलिंग की जा सकती है। ऐसे में कह सकते हैं कि इस तरह के सिस्टम में हर चेहरा संदिग्ध है। एक बार डाटा जमा हो जाने के बाद किसी भी व्यक्ति से जुड़े रिकॉर्ड भविष्य के संभावित अपराध की जांच के लिए एकत्र किए जा सकते हैं।
समस्या का सबसे चिंताजनक पहलू इस तकनीक के कारण लोगों की निजता का संकट में पड़ना है। यही वजह है कि चेहरा पहचानने की तकनीक को डाटा सिक्योरिटी एक्सपर्ट निजता के लिए बुनियादी खतरा मानते हैं। वहीं डाटा-चोरी जैसी आशंकाओं का कोई जवाब हमारे देश में नहीं है। अभी तो भारत में डाटा सुरक्षा का कोई प्रभावी कानून भी नहीं है। इसलिए जरूरी है कि चेहरा पहचानने की इस तकनीक को बढ़ावा देने से पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि लोगों की चेहरे-मोहरे से जुड़ी जानकारियों के लीकेज का कोई रास्ता किसी सूरत में न बने।