फ्रांस में चल रहे कॉन फिल्म महोत्सव में भारत को विशेष प्रतिभागी देश का दर्जा दिया गया है। इसके बावजूद एक खास बात यह भी कि महोत्सव में भारतीय चर्चित अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को बतौर ज्यूरी सदस्य विशेष सम्मान मिला है। अब तक देश के गिने-चुने फिल्मकारों को ही यह सम्मान मिला है। लाल कालीन पर इठलाती-मुस्कुराती दीपिका की भाव-भंगिमा बताती है कि वह इस सम्मान से प्रफुल्लित है। उसके व्यक्तित्व का सम्मोहन उसे भीड़ में भी अलग पहचान देता है। यूं तो दीपिका गाहे-बगाहे सुर्खियों में रही है। कभी अपने सधे अभिनय को लेकर तो कभी सामाजिक जागरूकता अभियानों को लेकर। यही वजह है कि अमेरिका की चर्चित टाइम मैगजीन ने वर्ष 2018 में पत्रिका की प्रभावशाली लोगों की सूची में दीपिका को शामिल किया था। इस साल भी टाइम मैगजीन ने सौ प्रभावशाली लोगों की सूची में दीपिका का नाम रखा है।
दीपिका का पहला परिचय तो यह है कि भारत के प्रतिष्ठित व देश के नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी रहे प्रकाश पादुकोण की बेटी है। डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में उसका जन्म पांच जनवरी, 1986 में हुआ। हालांकि, पहले वह पिता की प्रतिष्ठा व खेल से खासी प्रभावित रही और उसने भी बैडमिंडन में अपना भविष्य तलाशना चाहा। उसने इसके लिये खूब पसीना पढ़ाई के दौरान बहाया। एक खिलाड़ी के रूप में खूब मेहनत भी की और राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन खिलाड़ी भी रही। लेकिन धीरे-धीरे उसे ग्लैमर की दुनिया रास आने लगी। खूबसूरत दीपिका यूं तो कालेज के दिनों से ही मॉडलिंग कर रही थी। फिर उसने बहुचर्चित टूथपेस्ट व साबुन के विज्ञापन के जरिये मॉडलिंग की शुरुआत की। शुरू में एक चर्चित गायक के वीडियो में भी वह नजर आयी। लेकिन ये उसकी महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप नहीं था। आखिरकार उसने फिल्मों में किस्मत आजमाने का मन बनाया और कामयाबी भी हासिल की। उसकी शुरुआत सुपरस्टार शाहरुख खान की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ से हुई, जिसमें वह दोहरी भूमिका में नजर आई। महत्वाकांक्षी व आत्मविश्वास से भरी दीपिका ने हमेशा शिखर की सफलता हासिल करने के लिये जी तोड़ मेहनत की। विविधता भरे किरदारों वाली फिल्मों में उसे कामयाबी भी मिली।
लेकिन दीपिका महज फिल्मों में अभिनय तक ही सीमित नहीं रही। वह सामाजिक सरोकारों व महिलाओं के मुद्दों पर एक प्रगतिशील सोच रखती है और उसे अभिव्यक्त भी करती है, जिसके चलते कई विवाद भी उससे जुड़े हैं। दो साल पहले जब जेएनयू में छात्रों के दो वर्गों में हिंसक संघर्ष हुआ तो वह पीड़ित छात्र-छात्राओं के समर्थन में खड़ी होने पहुंची, जिसके चलते राजनीतिक कारणों से उसकी आलोचना भी हुई। वहीं एक पत्रिका के वीडियो में वह स्त्री की यौनिक आजादी की वकालत करती नजर आई। तब विवाहेतर संबंधों की वकालत के चलते वह आलोचकों के निशाने पर रही। फिर सुशांत सिंह आत्महत्या कांड के बाद जब बॉलीवुड में नशे के कारोबार के जुड़ाव के आरोप लगे तो दीपिका का नाम भी उछला और उनकी मैनेजर से एनसीबी ने पूछताछ की थी।
बहरहाल, दीपिका की गिनती मेहनतकश व व्यावसायिक मानकों पर खरा उतरने वाली कलाकार के रूप में होती है। फिल्म की स्क्रिप्ट से इतर वह अपने किरदार में जान फूंकने के लिये अपना सौ फीसदी देने को आतुर रहती है। सफलता व असफलता के दौर में मानसिक अवसाद की बात को भी उसने स्वीकार किया और समाज में तनावमुक्त व खुश रहने के लिये लोगों को प्रेरित करने के लिये एक अभियान का हिस्सा भी बनी।
एक अभिनेत्री के रूप में अपनी आभा को कॉन महोत्सव में वैश्विक मंच मिलने से दीपिका खासी उत्साहित है। अब तक गिने-चुने लोगों को ही यह अवसर मिल सका है। बहुत संभव है इस मंच से दीपिका को हॉलीवुड में दस्तक देने का अवसर मिले। ऊर्जावान अभिनेत्री के रूप में उनसे बड़ी उम्मीदें की जा सकती हैं। विविधता भरे उनके अभिनय की रेंज इस उम्मीद को आधार देती है। ओम शांति ओम, गहराइयां, राम लीला, बाजीराव मस्तानी, पीकू, छपाक, पद्मावत, चेन्नई एक्सप्रेस जैसी फिल्मों के किरदारों की विविधता अंतर्राष्ट्रीय फलक में उनके परिपक्व अभिनय की उम्मीद जगाती है। एक खिलाड़ी की बेटी होने और खुद एक एथलीट के रूप में जीवन की शुरुआत करने वाली दीपिका में नई चुनौती से जूझने का जज्बा कायम है। उसका मानना भी रहा है कि आखिरी दम तक जूझने वाला ही खिलाड़ी होता है। अभिनेता रणवीर से विवाह के बाद अब वह प्रोड्यूसर की भूमिका भी निभा रही है और कुछ उम्दा फिल्में दर्शकों तक पहुंची भी हैं।
दीपिका सिर्फ एक स्टारडम केंद्रित अभिनेत्री नहीं है। वह देश की राजनीतिक व सामाजिक स्थितियों को लेकर भी हमेशा जागरूक रहती है। अपनी फिल्मों में उन्होंने ऐसी समकालीन चुनौतियों की फिल्मों को तरजीह दी है। उनके प्रोडक्शन हाउस तले ‘छपाक’ जैसी फिल्म बनी, जो आज की गंभीर चुनौती एसिड अटैक की समस्या पर केंद्रित थी। जो बताती है कि पीड़ित महिलाओं को अपना जीवन कैसे नये सिरे से आत्मविश्वास के साथ शुरू करना है। महिलाओं की अस्मिता और उनकी यौनिक आजादी को लेकर वह बेबाक टिप्पणियां करती रही है। यहां तक कि उसने एक संस्था भी बनायी जो समाज में मानसिक सेहत से जुड़े मुद्दों में मददगार रही। जिसके माध्यम से सुकोमल भावनाओं के जरिये मानसिक रोगियों को राहत देने की कोशिश हुई है।