मुकुल व्यास
दुनिया में जलवायु से संबंधित आपदाओं की संख्या बढ़ रही है। आपदाओं के कारण मानवीय पीड़ा ऐसे स्तरों पर पहुंच चुकी है जिनकी मात्रा निर्धारित और कल्पना करना मुश्किल है। आपदाएं बढ़ने के साथ-साथ लोगों की मुसीबतें भी तेजी से बढ़ती रहेंगी। अब हमारे सामने एक कठोर विकल्प ही बचा है। या तो हम अपने जीवन जीने और ग्रह के साथ व्यवहार करने के तरीके में त्वरित और सार्थक परिवर्तन करें, या फिर वैश्विक सामाजिक पतन की बहुत वास्तविक संभावना का सामना करें। अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक दल ने पर्यावरण संकट की गंभीरता को रेखांकित किया है और चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन दर्शाने वाले 35 ‘महत्वपूर्ण संकेतों’ में से 16 अब लाल (कोड रेड) हो गए हैं। कोड रेड का मतलब यह है कि ये संकेत अपने चरम पर पहुंच गए हैं।
अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के पारिस्थितिकीय विज्ञानी क्रिस्टोफर वुल्फ ने कहा कि जलवायु आपदाओं में वार्षिक उछाल से स्पष्ट है कि अब हम एक बड़े जलवायु संकट के मध्य खड़े हैं। अगर हम चीजों को उसी तरह से करते रहेंगे जैसा हम उन्हें कर रहे हैं तो आने वाले समय में स्थिति और भी बदतर होगी। वुल्फ ने साथी वैज्ञानिकों से अनुरोध किया कि वे जलवायु और पर्यावरणीय संबंधी निर्णय लेने के लिए अनुसंधान-आधारित दृष्टिकोणों की वकालत करने में हमारे साथ शामिल हों। वैज्ञानिकों के दल ने जिन महत्वपूर्ण बिंदुओं की तरफ इशारा किया है, उनमें अत्यधिक गर्मी की घटनाओं में वृद्धि, वैश्विक वृक्षों के आवरण का लगातार कम होना और मच्छर जनित डेंगू वायरस के अधिक मामले शामिल हैं। वृक्षों के आवरण के घटने में जंगल की आग प्रमुख भूमिका निभा रही है।
वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर का भी मुद्दा है जो रिकॉर्ड रखे जाने के बाद अब अपने उच्चतम स्तर पर है। इस समय इस गैस का स्तर 418 भाग प्रति दस लाख है। इस बीच, 2022 सबसे गर्म वर्षों में से एक होने की राह पर है। शोधकर्ताओं द्वारा ट्रैक किए गए जलवायु परिवर्तन के अन्य महत्वपूर्ण संकेतों में सतह के तापमान की विसंगतियां, अंटार्कटिका के बर्फ के द्रव्यमान में परिवर्तन, समुद्र की अम्लता और अमेरिका में आई भीषण बाढ़ शामिल हैं जिसकी सफाई के लिए कम से कम एक अरब डॉलर की लागत आई है। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई घटनाओं का भी उल्लेख किया गया है जो इस वर्ष हुई हैं। उदाहरण के तौर पर यूरोप में 500 वर्षों में सबसे भीषण सूखा, आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर रिकॉर्डतोड़ बारिश, भारत और पाकिस्तान में घातक लू, पश्चिम एशिया में व्यापक धूल भरी आंधियों और अमेरिका में आई भयंकर बाढ़ का उल्लेख किया जा सकता है जिसने येलोस्टोन नेशनल पार्क में सड़कों को नष्ट कर दिया। जलवायु परिवर्तन एक अकेला मुद्दा नहीं है।
बांग्लादेश के पर्यावरण विज्ञानी सलीमुल हक ने कहा, यह प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग की एक बड़ी समस्या का हिस्सा है जहां मनुष्य की मांग जीवमंडल की पुनरुत्पादक क्षमता से अधिक है। अधिक मानवीय पीड़ा से बचने के लिए प्रकृति की रक्षा करने और अधिकांश जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को समाप्त करने की आवश्यकता है। साथ ही हमें कम आय वाले क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देते हुए सामाजिक रूप से उचित जलवायु अनुकूलन का समर्थन करना चाहिए। विशेषज्ञों ने 2100 तक 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की भविष्यवाणी की है। ऐसा तापमान स्तर ग्रह ने 30 वर्षों से नहीं देखा है। हालांकि, बार-बार चेतावनियों के बावजूद कई रुझान अब भी गलत दिशा में जा रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अधिक कार्रवाई करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए ‘द साइंटिस्ट वार्निंग’ नामक 35 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है। वे उम्मीद कर रहे हैं कि अधिक से अधिक वैज्ञानिक अब तत्काल कार्रवाई के बारे में एक मजबूत रवैया अपनाएंगे। अब भी उम्मीद बरक़रार है। शोधकर्ताओं ने कहा कि आज जलवायु संकट पर बोलने वाले वैज्ञानिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वे भावी पीढ़ियों की खातिर ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए तुरंत बड़े पैमाने पर कार्रवाई करने का आग्रह कर रहे हैं। जिस तरह से दुनिया के विभिन्न देशों में प्रचंड लू चली है, जंगलों में आग लगी है और तूफान आए हैं, उससे स्पष्ट है कि आने वाले समय में दुनिया को जलवायु परिवर्तन के और उग्र प्रभाव देखने पड़ेंगे। अतः यह जरूरी है कि विभिन्न देश जलवायु संबंधी वादों को यथासंभव पूरा करें।
इस बीच, एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के दुनिया के देशों द्वारा दिए गए मौजूदा वचन 2015 के पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपर्याप्त हैं। ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी। लेकिन निराशाजनक दिखने वाले परिदृश्य में एक आशा की किरण भी दिखाई देती है। अमेरिकी वैज्ञानिकों के नेतृत्व में नई रिसर्च के अनुसार जलवायु से संबंधित अधिक महत्वाकांक्षी संकल्पों को अपनाकर और तेजी से कार्बन में कमी करके दुनिया के देश गर्म दुनिया में बिताए समय को कम कर सकते हैं। हम अगले कुछ दशकों में 1.5 डिग्री की सीमा को पार करने जा रहे हैं। इसका मतलब है कि हम 1.6 या 1.7 डिग्री या उससे ऊपर जाएंगे और हमें इसे 1.5 पर वापस लाने की आवश्यकता होगी। लेकिन हम इसे कितनी तेजी से नीचे ला सकते हैं, यह महत्वपूर्ण है। अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को छोड़ने या विलंब करने से मानव और प्राकृतिक प्रणालियों के लिए अपरिवर्तनीय और प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। तेजी से आगे बढ़ने का मतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर किए गए वादों को जल्द पूरा करना, तेजी से कार्बन में कमी करना और अधिक महत्वाकांक्षी उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करना। हर छोटी चीज से मदद मिलती है और इन सभी के संयोजन की आवश्यकता होती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात इसे जल्दी से जल्दी करना है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।