संस्कृत में श्लोक है :-
लालयेत पंचवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत॥
अर्थात् पांच वर्ष की आयु तक पुत्र को लाड करना चाहिए, दस वर्ष की अवस्था तक उसे ताड़ना चाहिये और सोलह वर्ष का बेटा होने पर उसे दोस्तों की तरह व्यवहार करना चाहिये। इस श्लोक को लिखे हुए शताब्दियां बीत चुकी हंै। मुझे नहीं लगता कि इसका अर्थ पिताओं को समझ आया है या नहीं। घरों में बच्चों को लताड़ने-धमकाने की हिम्मत पिताओं के बलबूते से बाहर है बल्कि वे तो स्कूल जाकर भी हेडमास्टर को धमकाकर कह आते हैं कि खबरदार जो बच्चे के हाथ भी लगाया। और बच्चे कितने सिरचढ़े हो गये हैं, बताने की जरूरत नहीं है।
वह ज़माना बीत चुका जब बच्चों की घरों में थप्पड़-मुक्कों या चप्पल-जूतों से पिटाई हुआ करती। मसखरी करते हुए अक्सर कहा जाता है कि भगवान घर-घर जाकर बच्चों की पिटाई नहीं कर सकते और इसीलिये उन्होंने पिताजी बनाये। पिटाई के बाद रोने पर पिटाई होती थी। दोस्तों के साथ ज़्यादा खेलने-कूदने पर, दोस्तों के साथ नहीं खेलने पर भी, जहां बड़े बैठे हों वहां बैठने पर, बड़ों को जवाब देने पर, बड़ों को जवाब नहीं देने पर, मेहमानों को नमस्ते न करने पर, आने वालों के साथ जाने की जिद करने पर, धीरे-धीरे खाने पर, जल्दी-जल्दी खाने पर, खाना खाने के लिये मना करने पर, पड़ोसियों के घर खाना खाने पर, अपने से छोटे बच्चों से हार जाने पर, चप्पल उलटी छोड़ देने पर, किसी रोते हुए बच्चे को देखकर हंसने पर भी कुटाई हो जाया करती।
कल एक पुराने स्कूल मास्टरजी मिले। बातों-बातों में बात बच्चों की छिताई तक जा पहुंची। स्कूल में मास्टरजी की छड़ी या डंडे से बचना हरेक के बस की बात नहीं थी। उन्होंने बड़े ही गर्व से बताया—डाउट आली बात कोन्या, म्हारे छेते होये बालक आज भी लाल पावैंगे। कोई शक नहीं कि इस कुटाई ने कई गधों को इनसान बना दिया। दो टिकाऊंगा तेरे कान तले, तेरी टांग तोड़ दूंगा आदि आम वाक्य थे। पर अब इन पर विराम-सा लग गया है। अच्छा है कि हमारे वक्त में मोबाइल नहीं था, वरना इधर मास्टर जी पिटाई करते और उधर सहेलियां वीडियो बनाकर वायरल कर देतीं।
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एक बर की बात है अक एक दिल्ली आला छोरा आइसक्रीम खरीदै था। बोल्या—एक बटर स्काॅच, एक वनीला और एक चाकलेट दीजिये। अपणा नत्थू भी उड़ै ए खड्या था। बोल्या—एक पांच आली, दो दस आली, अर एक या जुण सी भाई खाण लाग रह्या है, अर एक वा जोण सी उस छोरी के हाथ मैं है।