कुमार विनोद
दलों में दरार, नेताओं में तकरार, किसी का किसी की अगुआई में चुनाव लड़ने से इनकार, और किसी का किसी से नाता बरकरार। इन गिनी-चुनी चुनावी तुकबंदियों को दरकिनार कर दें तो चुनावी बिगुल बजने के बावजूद वातावरण में निल बटे सन्नाटा है। ढोल-नगाड़े, गाजा-बाजा, पोस्टर, बैनर, झण्डा, बैज, हेंडबिल, कैलेंडर आदि-इत्यादि सब गायब हैं। और रही बात मुद्दों की, तो जनाब, बतर्ज कसमें-वादे-प्यार-वफा मुद्दे भी बस बातें हैं, बातों का क्या!
महामारी के चलते सत्तर से भी अधिक देशों में चुनाव टाल दिये जाने के बावजूद ‘बिहार में इलेक्शन बा’ के पीछे चुनाव आयोग का दावा है कि नागरिकों को चुनाव के लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित नहीं किया गया। ऐसे विकट चुनावी माहौल में नामांकन के दौरान महज़ ‘दो गाड़ियों और दो लोगों का साथ’ जैसी कई छोटी–बड़ी पाबन्दियां, नेताओं के साथ है तो नाइंसाफी, लेकिन सर-माथे पर। वैसे नटवरलाल में अमिताभ अगर किसी नेता के किरदार में होते तो यकीनन उनसे यह डायलॉग ज़रूर बुलवाया जाता, ‘ये इलेक्शन भी कोई इलेक्शन है लल्लू!’
जिस तरह पढ़ाई-लिखाई में कमज़ोर, किसी कामचोर बच्चे की कापियां-किताबें एकदम नयी-नकोर पड़ी रहती हैं, उसी तरह किसी निकम्मे, कामचलताऊ सत्तारूढ़ दल का बरसों पुराना चुनावी घोषणा-पत्र कभी भी उलट-पलट कर देख लीजिये, एकदम नया-नवेला ही दिखाई पड़ता है। बोले तो वर्जिन ब्यूटी! जैसे परीक्षा में फेल होने वाले विद्यार्थी को नयी किताबें खरीदने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ती, ठीक वैसे ही वोटरों की उम्मीदों पर खरा न उतरने का एक लाभ यह भी होता है कि संबन्धित दल को नया घोषणा पत्र डिज़ाइन करने की कवायद ही नहीं करनी पड़ती। मौजूदा हालात में ऐसा होने पर पुराने घोषणा पत्र को सेनेटाइज़ करने मात्र से काम चल जाएगा। वैसे भी वादों की कोई एक्सपायरी डेट थोड़े ही होती है! वे नेता जो जनता को अपना मुंह तक दिखाने लायक नहीं बचे, ऑफलाइन प्रचार के दौरान मास्क लगाकर अपनी तथाकथित बची-खुची इज्ज़त बचाने में कामयाब हो सकते हैं।
खुदा-न-खास्ता अगर कोई नेता हाल-फिलहाल कोरोना पॉज़िटिव हो जाये और इस बात की खबर विरोधी दल को लग जाए तो उसके खिलाफ यह कहकर दुष्प्रचार किए जाने की संभावना है कि ‘भाइयो और बहनो, जिस नेता की खुद की इम्युनिटी स्ट्रांग नहीं है, वो जनता की रक्षा क्या खाक करेगा?’ कल तक भोली-भाली जनता को फ्री-बिजली, फ्री-पानी आदि का लारा-लप्पा लगाए रखने वाले नेता जनता को कोरोना का टीका फ्री में लगवाने का लॉलीपॉप देते फिरें तो इसमें आश्चर्य कैसा? कोरोनाकालीन चुनावों में इतना सब तो चलता ही है जी!