आलोक पुराणिक
सब पैसे के भाई। भारत और सऊदी अरब का याराना हाल में गहरा हुआ, पर अब मामला उलटी दिशा में चल रहा है। हुआ यूं कि 2020 में कोरोना के चक्कर में कच्चे तेल का भाव बहुत डूब गया, भारत ने सस्ते रेट में बहुत तेल खऱीद कर अपना तेल रिजर्व मजबूत किया। तेल रिजर्व मजबूत करके रणनीतिक स्थिति मजबूत की जाती है, उसमें रखा तेल संकटकालीन परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जाता है। कच्चा तेल फिर महंगा होने लगा तो भारत ने सऊदी अरब से कहा-थोड़ा सस्ता लगा लो, हम पुराने कस्टमर हैं। सऊदी अरब ने ताना मारा-वो तेल इस्तेमाल कर लो ना जो पहले ही सस्ता खरीद करके जमा किया है।
भारत ने अब अमेरिका से कच्चे तेल की सप्लाई बढ़ा दी। सऊदी अब उतना बड़ा सप्लायर न रहा। मामला कुछ-कुछ वैसा हो गया कि बरसों से शर्मा जनरल स्टोर से माल खऱीदते थे, एक दिन बगल में वर्मा जनरल स्टोर खुल गया, वह सस्ता माल देने लगा तो बरसों के रिश्ते छोड़कर वर्माजी की तरफ निकल लिये। चार पैसे जेब में बचते हैं तो वो ठोस दिखते हैं, दोस्ती रिश्ते हवाई बातें हैं। मूल बात है कि हम ग्राहक हैं। चार पैसे सस्ता दे कोई, तो वहां निकल लेंगे।
एक चाइनीज फोन के ब्रांड एंबेसडर हो गये विराट कोहली। किसी इंडियन ब्रांड ने उतने पैसे न दिये, दिये होते तो खालिस इंडियन हो जाते कोहली। इंडियन कोई मुफ्त में न होता, मुफ्त तो कोई कुछ भी न होता। मुफ्त में सिर्फ वादे मिलते हैं, सो लिये जाओ, दे दनादन।
सस्ता तेल कहीं और से मिलेगा, तो वहां से ले लेंगे जी। वहां के मुकाबले कहीं और से सस्ता मिलेगा तो वहां से ले लेंगे जी। नोट सत्यम्, सब मिथ्या। दीवार के अमिताभ बच्चन-शशि कपूर डायलाग स्टाइल में सऊदी अरब कह सकता है कि मेरे पास तेल के कुएं हैं, कच्चा तेल है, तेरे पास क्या है भारत। इसके जवाब में भारत ने कहा-मेरे पास नोट हैं, नकद है, जहां फेंक दूंगा वहां से कच्चा तेल मिल जायेगा। अमिताभ बच्चन का मुंह बंद हो जाता। डायलागबाजी में कुछ न रखा, नोट छापो और नोट अंदर करो। चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स पिछले साल इन दिनों ताल ठोकता था कि भारत को मार गिरायेंगे, भारत को पटक लेंगे। अब यहां टिकटाक समेत कई चीनी ब्रांड मार गिराये गये तो चीन की जेब में चोट पड़ी है। जेब पर चोट बड़ी चोट होती है। हर कोई न झेल सकता। चीन से अब ढिशुम-ढिशुम की आवाजें उतनी न आतीं।
सो सऊदी अरब के पास तेल है, भारत के पास रकम है। रकम है, तो अमेरिका भी दोस्त बन जाता है। दुनिया में रिश्ता एक ही अटल है-ग्राहक और दुकानदार का। बाकी सब रिश्ते आने-जाने हैं। सस्ता माल दो, तो ही अपने, वरना तो बेगाने हैं।
दोस्ती बचायेंगे, अगर उससे नोट बचते हों तो। नोटों से दोस्ती आती है, दोस्ती से हर हाल में नोट न आते, और अगर ना आते, तो दोस्ती काहे की।