चालू विश्वविद्यालय ने ताजमहल विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया, इसमें प्रथम पुरस्कार निबंध इस प्रकार है :-
ताजमहल का हमारे देश की राजनीति, संस्कृति, अर्थव्यवस्था में गहरा महत्व है। ताजमहल होटल भी है और चाय भी, ताजमहल चैनल की टीआरपी भी है, और खौं खौं भी। ताजमहल शाहजहां ने बनवाया था, अब उसके नाम पर जाने कौन-कौन किस किसको बना रहा है। ताजमहल चाय को लहराते हुए बालों के साथ एक तबला उस्ताद बेचते हैं। समझ न आता है कि तबले का चाय से क्या रिश्ता है। तबलचियों ने चाय पीकर शानदार तबला बजाया हो, ऐसा इतिहास में दर्ज नहीं है। कई कलाकार परफारमेंस देने से पहले जो पीते हैं, उसे किसी भी भाषा में चाय तो नहीं कहा जाता। पर बात यह है कि कोई भी कुछ भी बेच सकता है, तो तबले वाले चाय बेचकर चले जाते हैं। ताजमहल चाय बिक रही है। ताजमहल पर डिबेट टीवी पर बिक रही है। अभी बहुत कुछ बिकने को बाकी है। भानगढ़ किले के भूत ताजमहल के तहखाने में-इस तरह की खबरें अभी आना बाकी हैं।
वक्त पेचीदा है, खबरें मुश्किल से मिलती हैं। इन दिनों टीवी चैनलों को जब कुछ न मिलता, तो ताजमहल मिल जाता है। ताजमहल एक तरह टीवी चैनलों का मनरेगा हो गया है, कुछ न मिले तो ताज पर मार मचा दो। मार मचाने के लिए कुछ एक्सपर्ट हमेशा मौजूद होते हैं।
ताजमहल पर मार मचे, इससे बेहतर है कि इसे ताजमहल होटल वालों के हवाले कर दिया जाये। वो इसे होटल बना दें, कमायें-खायें और सरकार को टैक्स दें। ताजमहल चाय तो जनता बरसों से पी ही रही है। ताजमहल नाम का पान-मसाला आ जाये तो हमारे हिंदी फिल्म स्टारों को भी कुछ रोजगार मिल जाये। सलमान खान, अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, अजय देवगन और शाहरुख खान-ये सिर्फ अभिनेता नहीं हैं, पान-मसाला सेल्समैन भी हैं। पान-मसाले ने बहुतों को रोजगार दिया है। तो ताजमहल में अपार रोजगार संभावनाएं हैं।
बहरहाल, ताजमहल तो जितना बिकता है उतना बिकता है, बवाल बहुत बिकता है। अगर कोई बवाल पैदा कर सके किसी बात पर तो बहुत सेल हो जाती है। ताजमहल की समस्त कारोबारी संभावनाओं को निचोड़ा जाना चाहिए। अब वक्त आ गया है कि टीवी डिबेट में शारीरिक प्रवक्ता भी आयें, तमाम पक्षों की तरफ से यानी लाठी वगैरह लेकर प्रवक्तागण पहुंचें और स्टूडियो में अखाड़े का सेट बनाया जाये। ताजमहल से शुरू हो लठैती तो बेहतर रहेगा।