भरत झुनझुनवाला
वर्तमान में चीन से सम्पूर्ण विश्व असंतुष्ट है और तमाम देश चीन से माल के आयात पर प्रतिबन्ध लगाने की दिशा में हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चीन से बाहर जाकर दूसरे देशों में माल के उत्पादन को उत्सुक हैं। इस परिस्थिति में हमारे सामने अवसर है कि हम चीन के द्वारा खाली की गई जमीन को हथिया कर उस पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लें और विश्व बाजार में अपना स्थान बना लें। लेकिन विषय सिर्फ चीन का नहीं है। यदि हमें विश्व बाजार में अपना स्थान बनाना है तो थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों से भी प्रतिस्पर्धा करनी होगी अन्यथा खरीददार चीन के स्थान पर भारत से न खरीद कर वियतनाम से खरीदेगा। अंतत: हमें सम्पूर्ण विश्व में सबसे सस्ता माल बनाकर बाजार में उपलब्ध कराना होगा। तब ही हम आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार कर पायेंगे।
आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए सरकार ने 200 लाख करोड़ रुपये का विशाल आत्मनिर्भर पैकेज लागू किया है। इस पैकेज का प्रमुख बिंदु कठिन परिस्थितियों से जूझने वालों को ऋण उपलब्ध कराना है, जिससे ये कोविड संकट को पार कर सामान्य परिस्थिति बहाल होने तक अपना अस्तित्व जीवित रख सकें। लेकिन सामान्य परिस्थिति आएगी, यह संदेहास्पद है। आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मारिसन के अनुसार आने वाला समय “गरीबी, कठिनता और अव्यवस्था से भरा हुआ होगा, विश्व व्यापार में गिरावट आएगी, देशों का व्यापार असंतुलित होता जाएगा और इनके बीच विवाद उत्पन्न होगा।” कोविड का वायरस भी गिरगिट की तरह अपना रंग रूप बदलता जा रहा है और यूरोप के कई देशों में इसकी दूसरी लहर आई है। अतएव हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि यह एक अल्पकालिक संकट है, जिसे हम ऋण देकर पार कर जायेंगे। बल्कि देश की आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए मौलिक विषयों पर ध्यान देना होगा।
इस दिशा में चिंता का विषय है कि सिटी बैंक की रिसर्च संस्था ने एक रपट में कहा है कि पिछले 6 वर्षों में भारत के मैन्युफैक्चरिंग उद्योग के प्रमुख संकेतों में तनिक भी सुधार नहीं हुआ है। यह खतरे की घंटी है क्योंकि यदि हमारी मैन्युफैक्चरिंग में सुधार नहीं हुआ है तो हम थाईलैंड और वियतनाम की तुलना में सस्ता माल नहीं बना सकेंगे और विश्व बाजार में व्यापार में अपना स्थान नहीं बना पायेंगे।
इस परिप्रेक्ष्य में फेडरेशन आफ फार्मा इंटरप्योनोर आफ इंडिया के बीआर सीकरी के वक्तव्य पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा है कि भारत का फार्मा उद्योग चीन से इसलिए आयात करता है क्योंकि भारत में उत्पादन लागत ज्यादा है। उत्पादन लागत के ज्यादा होने के तीन प्रमुख कारण हैं। पहला यह कि किसी भी कानूनी स्वीकृति को लेने में अधिक समय लगता है और पर्यावरण का कानून जड़ है। दूसरा कारण यह कि देश में जमीन महंगी है। तीसरा यह कि बिजली महंगी है। इन तीनों में पहला कारण मूल रूप से नौकरशाही के भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है। अपने देश में किसी भी सरकारी दफ्तर में फ़ाइल को एक मेज से दूसरी मेज तक ले जाने के लिए भी चपड़ासी की जेब गरम करनी पड़ती है। जहां तक महंगी जमीन की बात है, इसे आत्मसात करना चाहिए क्योंकि यह पैसा अंतत: किसानों अथवा भूमिधारकों को मिलता है। उनके अधिकारों पर चोट करना अनुचित होगा। इसके अतिरिक्त सामान्य रूप से किसी फैक्टरी की कुल लागत में भूमि का हिस्सा, अनुमान से 5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होता है। तीसरा कारण महंगी बिजली को बताया गया है। इसका भी मूल स्वरूप नौकरशाही के भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है। देश में ऐसे उद्योग हैं जो कि बिजली बोर्ड के अधिकारियों की मिलीभगत से मीटर को बाईपास करके अपने उद्योगों को चलाते हैं। नौकरशाही द्वारा नम्बर दो में बेची गयी बिजली का भार अंततः ईमानदार बिजली उपभोक्ताओं पर पड़ता है और यह बिजली के महंगे होने का प्रमुख कारण है। बताते चलें कि अपने देश में वर्तमान में सोलर बिजली का दाम लगभग 3 रुपये प्रति यूनिट है जो विश्व में बिजली के दाम के समकक्ष है। हमारे उपभोक्ता को महंगी बिजली मिलने का कारण उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचाने में बिजली बोर्ड की व्यवस्था है।
हमें यदि विश्व बाजार में चीन द्वारा खाली की जा रही जमीन पर काबिज होना है तो हमें अपने माल की उत्पादन लागत को कम करना होगा। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि इसमें मुख्य कारक नौकरशाही का भ्रष्टाचार है। इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी ने एक सराहनीय कदम उठाया है कि प्रमुख पदों पर नियुक्ति के लिए वे केवल कागजों पर भरोसा नहीं करते हैं। जानकार बताते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय से कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को प्रत्याशी का मूल्यांकन करने उसके कार्यस्थल पर भेजा जाता है। ये अधिकारी उस प्रत्याशी की छवि और जनता के बीच विश्वसनीयता आदि की जानकारी प्राप्त कर प्रधानमंत्री को उपलब्ध कराते हैं। इसके बाद ही प्रमुख पदों पर इनकी नियुक्ति का निर्णय लिया जाता है।
प्रधानमंत्री का यह एक सराहनीय और सुदृढ़ कदम है। इस प्रक्रिया को सम्पूर्ण नौकरशाही पर लागू करने की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि सभी प्रमुख अधिकारियों के पदोन्नति के पहले एक अलग स्वतंत्र व्यवस्था द्वारा इनका गुप्त मूल्यांकन कराएं। जैसे बिजली बोर्ड के अधिशासी अभियन्ता की पदोन्नति के पहले यह जांच एजेंसी उस क्षेत्र में जाए और उस क्षेत्र के बिजली उपभोक्ताओं से उस प्रत्याशी के बारे में जानकारी प्राप्त करे। दूसरा जैसा कि कौटिल्य ने कहा था कि सरकारी अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार का पता लगाना उतना ही कठिन है, जितना कि यह पता लगाना कि तालाब के पानी में से मछली ने कितना पानी पीया है। इस समस्या के लिए सुझाव दिया था कि राजा को एक जासूस व्यवस्था बनानी चाहिए जो कि स्वयं पहल करे और प्रमुख अधिकारियों की जांच करे और उन्हें जाल में फंसाए। ये जासूस स्वयं भ्रष्ट न हो जाएं, इनके कार्य पर नजर रखने के लिए एक समानांतर दूसरी जासूसी व्यवस्था बनानी चाहिए। सरकार को चाहिए कि इस प्रकार की व्यवस्था बनाये जो जमीनी स्तर पर सरकारी नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर नियन्त्रण करे। जैसा कि सीकरी ने कहा है कि स्वीकृति मिलने में समय कम लगे और बिजली का दाम कम हो जाए और हमारे उद्योग वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़े हो सकें।
सरकार को साथ-साथ आयात कर में भी वृद्धि करनी चाहिए। आयात कर में वृद्धि करने से विदेशी कम्पनियों द्वारा भारत में माल बेचना महंगा पड़ेगा और तदनुसार भारत में माल के उत्पादन से लाभ कमाना संभव होगा। जब तक सरकार इन मौलिक समस्याओं का समाधान नहीं करती तब तक हम थाईलैंड और वियतनाम से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकेंगे और वर्तमान में चीन द्वारा विश्व व्यापार में जो जगह खाली की जा रही है, उस पर कब्ज़ा नहीं कर सकेंगे। घरेलू अव्यवस्था के कारण यह सुनहरा अवसर हमारे हाथ से निकल जायेगा।
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।