
देवेन्द्रराज सुथार
देवेन्द्रराज सुथार
हास्य दैवीय गुण और प्रकृति का उपहार है। यह जीवन की एक ऐसी कला है जो परस्पर प्रेम में वृद्धि कर दूरियों को समेटती है। वस्तुतः जीवन में संतुष्टि का भाव हमें हास्य सिखाता है। अक्सर लोभ और घृणा के आवेश में हम मानवीय प्रकृति के विरुद्ध कार्य कर बैठते हैं। घृणा व्यक्ति को शैतान बना देती है, जबकि हास्य प्रेम का मार्ग प्रशस्त करता है। सुकरात तो जहर का प्याला पीते समय भी मुस्कुरा रहे थे। लार्ड बायरन ने कहा है, ‘जब मौका मिले, हमेशा हंसें क्योंकि इससे सस्ती कोई दवा नहीं है।’ कभी-कभी जो काम हम दूसरे से लाख सिफारिशों से नहीं करवा पाते, वो काम बस एक मुस्कुराहट कर देती है। डगलस हॉर्टन ने तो हास्य को निःशुल्क चिकित्सा बताया है। अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स हर समय मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ मरीज का स्वागत व इलाज करते हैं। उनकी मुस्कान रोगियों के मन में एक उम्मीद जगाती है।
रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार, ‘सच्ची मुस्कुराहट ही सौंदर्य है, जब वह एकदम सही दर्पण में अपना चेहरा देखती है।’ मुस्कुराहट मधुरता, कृतज्ञता, सकारात्मकता व भावनात्मकता का संकेत है। मुस्कुराहट शीतप्रद है तथा इसमें अद्भुत आकर्षण शक्ति है। चार्ली चैपलिन ने अपने दुख को हास्य बिखेर कर दूर किया व बेशुमार कीर्ति हासिल की। विज्ञान हमें सोचना सिखाता है, लेकिन प्रेम हमें मुस्कुराहट का अहसास कराता है। हमें दुख व परेशानी में मुस्कुराहट ओझल नहीं होने देनी चाहिए, क्योंकि मुस्कुराहट ही वह चाबी है, जिससे किस्मत का ताला खुलता है। बच्चा जब पहली बार रोता है, तो मां के चेहरे पर संतोष और ममता की मुस्कुराहट आ जाती है। इसके साथ ही मुस्कुराहट का भी इंसानी जीवन में जन्म हो जाता है। मुस्कुराने की ताकत केवल इंसान में होती है, कोई जानवर मुस्कुरा नहीं सकता है।
लिहाजा जीवन में हास्य रस होना काफी जरूरी है। हास्य बिना जीवन में नीरसता घुल जाती है। मानव की प्रकृति-प्रदत्त विभूतियों में एक बड़ी ही मोहक विभूति है- हास्य, विनोद। प्रसन्न मुद्रा और उल्लास प्राकृतिक सौंदर्य का अथाह समुद्र है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि यदि मुझमें विनोद का भाव न होता, तो मैंने बहुत पहले ही आत्महत्या कर ली होती। वह मानव बड़ा ही भाग्यशाली है जिसे विधाता से हास्य और विनोद का बहुमूल्य वरदान मिला है। हास्य रस सभी रसों में सबसे सरस एवं सरल है। यह मानव जीवन की आवश्यकता है। आज से ढाई दशक पूर्व जब मुंबई में लाफ्टर क्लबों की स्थापना हुई, तो वहां जाकर हंसने और ठहाके लगाने वालों को देखकर लोग पागल समझते थे, लेकिन जैसे-जैसे रोगी अपने शारीरिक और मानसिक कष्टों से छुटकारा पाकर इन क्लबों से स्वस्थ होकर लौटने लगे तब लोगों को इसके प्रति अपनी धारणा बदलनी पड़ी। जो लोग पहले हंसने वालों को पागल समझ कर उनका मजाक बनाते थे, आज स्वयं इन लाफ्टर क्लबों के सक्रिय सदस्य बनकर कष्टों से निजात पाने की कोशिश में हैं।
दुनियाभर के लोगों ने इस चिकित्सा पद्धति पर अपनी दिलचस्पी और जिज्ञासा जाहिर की है और इसकी जानकारी प्राप्त करने हेतु उनके प्रतिनिधि मुंबई पहुंचकर इस पद्धति का अध्ययन कर रहे हैं। विशेष तौर पर ब्रिटेन, इटली, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन और जापान ने इस दिशा में विशेष रुचि दिखाई है। भारत में मुंबई के अलावा कोलकाता, दिल्ली, अहमदाबाद, पटना, पुणे आदि में ये क्लब खुल चुके हैं। मुंबई में काफी साल से किशोर कुवावाला लाफ्टर क्लब चला रहे हैं। उन्होंने मंत्र दिया है- लाफ मुंबई। हंसने से शरीर और मन एकरूप हो जाता है, तो हमारे विचार तुरंत बंद हो जाते हैं। इससे चिंता, व्यग्रता, उदासीनता, अवसाद सब खत्म हो जाते हैं। हंसने से शरीर में बायोकेमिकल प्रतिक्रिया होती है।
कबीर कहते हैं— हंसी-खेल में ही हरि से मिलन हो जाए, तो कौन व्यथा की शान पर चढ़ना चाहेगा। भगवान तो तभी मिलते हैं, जब काम, क्रोध और तृष्णा को त्याग दिया जाए। सुप्रसिद्ध जापानी कवि नागूची ने भगवान से वरदान मांगा कि जब जीवन के किनारे की हरियाली सूख गई हो, चिड़ियों की चहक मूक हो गई हो, सूर्य को ग्रहण लग गया हो, मेरे मित्र एवं साथी मुझे कांटों में अकेला छोड़कर कहीं चले गए हों और प्रकाश का सारा क्रोध मेरे भाग्य पर बरसने वाला हो, तब हे भगवान, तुम इतनी कृपा करना कि मेरे होंठों पर हंसी की एक लकीर खींच जाना। हंसी एक औषधि है जो मन को नीरोगी रखती है और इसके लिए कुछ खर्च भी नहीं करना पड़ता।
खुले मन से हंसने वाला व्यक्ति कभी भी हिंसक नहीं हो सकता। जब हंसी के इतने लाभ हैं, तो इससे परहेज क्यों? क्यों न हम सभी वक्त-बेवक्त ठहाका लगाने की आदत को अपनी दिनचर्या बना लें। यौवन का नाम ही हास्य और उल्लास है। जार्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि, ‘हंसी की पृष्ठभूमि पर ही जवानी के फूल खिलते हैं। जिदंगी हास्य और विनोद के बिना अपनी जिंदादिली खो देती है।’ कहा जाता है कि जिन देशों में लोग बहुत कम हंसते हैं वहां सबसे ज्यादा ब्लड प्रेशर और हृदय रोग के पीड़ित होते हैं। दीर्घायु होने का सर्वोत्तम साधन है—हंसमुख स्वभाव। कहा भी गया है कि जो हंसते हैं, उनके ही घर बसते हैं।
सब से अधिक पढ़ी गई खबरें
ज़रूर पढ़ें