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पुश्तैनी दुकान और कामयाबी के अरमान

उलटबांसी
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आलोक पुराणिक

स्मार्ट स्कूल आफ बिजनेस ने निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया, विषय था फैमिली बिजनेस-पिताजी की दुकान। प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है :-

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दुकानें कई प्रकार की होती हैं, अपनी दुकान, ससुर की दुकान, और बाप की दुकान।

कारोबारी भी कई तरह के होते हैं, बाप के बूते चलने वाली दुकान, अपने बूते चलने वाली दुकान, और बाप के बाद डूबने वाली दुकान।

पॉलिटिक्स से लेकर कारोबार तक तरह तरह के कारोबारी मिलते हैं, कम कारोबारी ऐसे हैं, जिन्होंने पिताजी की दुकान को आगे बढ़ाया है। ज्यादातर ने पिताजी की दुकान को छोटा ही किया है। पॉलिटिक्स से लेकर कारोबार तक कई कारोबारियों ने ऐसा दिखाया है। महाराष्ट्र में एक वक्त था, जब बाल ठाकरे का जलवा होता था, वह सरकार बनाते थे, सरकार गिराते थे। बाद के उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने कुछ ऐसा किया कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स में हाशिये पर आ गयी। महाराष्ट्र के पॉलिटिकल बाजार में शिवसेना का शोरूम बहुत जोरदार हुआ करता था, अब शोरूम सिकुड़कर छोटी-सी रेहड़ी की शक्ल ले चुका है।

पिताजी मेहनत करते हैं, क्योंकि उन्हें दुकान जमानी है। बेटे को जमी-जमायी दुकान मिलती है, मेहनत उसकी प्रवृत्ति में नहीं होती। ग्राहक भोत शाणा होता है, पब्लिक भी एक तरह से राजनीतिक बाजार में ग्राहक होती है। वह भी तरह तरह के डील चाहती है। तमाम कामयाब कंपनियां कैश बैक आफर, एक के साथ एक फ्री जैसे डील चाहती है जनता। महाराष्ट्र में लाड़ली बहन योजना के तहत नकद रकम महिलाओं के खाते में हस्तांतरित की गयी। इस लाड़ली योजना को बहुत लाड़ दिया महाराष्ट्र की महिलाओं ने। कुछ नकद खाते में इधर आता है, वोट उधर चला जाता है। एक तरह से इसे एक्सचेंज ऑफर कह सकते हैं। एक्सचेंज आफर कारोबार में भी चलता है, एक्सचेंज ऑफर अब पॉलिटिक्स में भी धुआंधार चलने लगा है। इस हाथ ले, उस हाथ ले टाइप ऑफर पॉलिटिक्स में बहुत धुआंधार चलने लगे हैं।

होशियार चतुर कारोबारी नये नये एक्सचेंज आफर लाते रहते हैं। नयी-नयी स्कीम लाते रहते हैं। जो पिताजी की दुकान नहीं चलाते, उन्हें नयी-नयी स्कीम खोजनी पड़ती है। जिनकी दुकानें पिता की होती हैं, उन्हें ऐसा लगता है कि उनका ग्राहक तो उन्हीं के पास आयेगा। जबकि अपनी खुद की दुकान चलाने वाला जानता है कि उसे तो नयी स्कीम चलानी पड़ेगी, ग्राहक हमेशा ही हमारा ग्राहक नहीं रहेगा। पुराना ग्राहक भी तब ही ग्राहक बना रहेगा, जब उसे नयी स्कीम का आफर दिया जायेगा। यानी कुल मिलाकर कारोबार रोज बदल रहा है, राजनीति भी रोज बदल रही है। वोटर रोज बदल रहा है, ग्राहक भी रोज बदल रहा है। बदलते वक्त को सही कारोबारी भांप जाता है, बदलते वक्त को नेता भांप जाता है। स्मार्ट कारोबारी तो धंधा तक बदल लेते हैं, जैसे होशियार नेता पार्टी बदल लेते हैं।

पर इसके लिए बदलते धंधे को समझना जरूरी है। कामयाब धंधा करते रहना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए कई बेटे बाप के शोरूम को रेहड़ी में बदल देते हैं।

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