शमीम शर्मा
कक्षा में अध्यापिका ने पढ़ाते हुए कहा कि एक दिन ऐसा आएगा जब इस जमीन पर पानी नहीं रहेगा और सब जीव-जन्तु नष्ट हो जायेंगे और पूरी पृथ्वी ही तबाह हो जायेगी तो एक भोलेभाले बच्चे ने पूछा- मैडम जी! उस दिन ट्यूशन आना है क्या? इसे कहते हैं- आशा। बड़े बूढ़े कहते हैं कि जब हमारा सब कुछ लुट जाता है तो भी उम्मीद बची रहती है। दुनियाभर की लैब्ज में कोरोना के टीके की खोज में वैज्ञानिकों ने पूरी ताकत झोंक रखी है। जो रोगी कोरोना के चंगुल से बचकर अपने घर आ रहे हैं, वे यह चमत्कार अपनी विल-पावर और आशाओं के बल पर कर पा रहे हैं क्योंकि दवाई तो अभी तक कोरोना की आई ही नहीं है।
एक कहावत है कि यदि शिकार गीदड़ का भी करना हो तो शेेर के शिकार का सामान होना चाहिये। कोरोना के केस में फर्क इतना है कि इस बार शिकार गीदड़ का नहीं, शेर का ही है। अच्छी बात यह है कि सभी देशों ने इसे पछाड़ने के लिये पूरा दमखम लगा रखा है। उम्मीद है कि किसी भी दिन शेर चंगुल में फंस सकता है।
मास्क न पहनने वालों पर गिरने वाली गाज को सरकार ने भारी कर दिया है। इस पर एक मनचले का कहना है कि पत्थर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़, मास्क बांधे कोरोना रुके तो मैं बांधू तिरपाल। पर मास्क पहनने का एक नुकसान तो हुआ है कि अब पता ही नहीं चलता कि किसने मुंह फुला रखा है। आज एक प्यारा सा संदेश मिला, जिसमें एक भक्त कह रहा है— हे भगवन! टीका आने तक टिकाये रखना। भगवान ने उत्तर दिया- यदि एक स्थान पर टिके रहोगे तो टीका आने तक अवश्य टिके रहोगे। पर घर में बैठे-बैठे रेलवे की बोगी में बैठने जैसी फिलिंग आ रही है कि बस टायलेट के लिये उठना है और फिर वहीं आकर बैठ जाना है।
जिस तरह यदि कोई हम से कार मांग कर ले जाये तो पेट्रोल-डीजल डलवाये या न डलवाये पर आकर नसीहत जरूर देगा कि आपकी गाड़ी सर्विस मांग रही है। उसी तरह सब लोग मास्क पहनने और घर से बाहर न जाने की नसीहत दे रहे हैं पर खुद फॉलो नहीं करते।
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एक बर की बात है अक नत्थू अपणी बरात लिये जा रह्या था अर बराती थे भोत घणे। पुलिस नैं रोक लिया अर कसूता धमकाया तो नत्थू हाथ जोड़कै बोल्या—जी ईबकै जा लेण द्यो, अगली बार इसा हरगिज नी होगा।