जी. पार्थसारथी
भारत के लिए अपने पड़ोसी मुल्कों से दरपेश समस्याओं में पाकिस्तान से तनाव एक स्थाई सिरदर्द है। लेकिन हालिया घटनाक्रम के मुताबिक क्या हम, एक लंबे इंतजार के बाद, अंततः नया पाकिस्तान देखने जा रहे हैं। वह मुल्क, जिसकी सेना तख्ता पलट को हमेशा आमादा रही है, अब वही भारत के साथ तनाव घटाने का समर्थन कर रही है। पिछले दिनों भारत और पाक के रिश्तों में उम्मीद महसूस की गई कि दोनों देश शांति और सौहार्द से रहने हेतु संवाद करने के इच्छुक दिखाई दिए। ज्यादातर भारतीय महसूस करते हैं कि पाक राजनेताओं में इमरान खान के मन में भारत विरोधी खुन्नस सबसे अधिक है। इमरान खान द्वारा स्थापित तहरीक-ए-इंसाफ दल की सैद्धांतिक सोच आईएसआई के पूर्व मुखिया और कट्टर भारत विरोधी ले. जनरल हमीद गुल ने डाली थी। लोगबाग मजाक में इमरान खान को ‘तालिबान खान’ पुकारते हैं।
पाक के ‘सदाबहार मित्र’ चीन के लिए इमरान खान के भारत विरोधी बयान एक मुंह मांगी मुराद सरीखे हैं। ऐसा करके वे चीन के सरकारी ग्लोबल टाइम्स अखबार में रोज-ब-रोज छपने वाले भारत विरोधी एजेंडे का प्रतिपादन करते हैं। हालांकि, पाकिस्तान में भी काफी लोग हैं, जिनका मानना है कि मौजूदा महामारी से बनी चुनौतियों से निपटने को आर्थिक मोर्चे पर यथार्थवादी होने की फौरी जरूरत है। पाक ने गौर किया होगा कि जहां उसका विदेशी मुद्रा भंडार घटकर महज 14.8 खरब डॉलर रह गया है, वहीं विगत के पूरबी हमबिरादर यानी आज के बांग्लादेश ने लगातार तरक्की करते हुए अपना विदेशी मुद्रा भंडार 44 खरब डॉलर कर लिया है। फिलवक्त बांग्लादेश की आर्थिकी तेजी से ऊपर उठ रही है। वर्ष 1971 में पाकिस्तान से छुटकारा पाने के बाद 50 सालों में उसने अपने पूर्व हुक्मरान को लगभग सभी वित्तीय, सामाजिक और आर्थिक सूचकांकों में पछाड़ दिया है।
पाकिस्तानी भी मानते हैं कि मुल्क को आर्थिक तरक्की पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके लिए पास-पड़ोस से शांति और सौहार्द कायम रखना जरूरी है। पाक के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा, जो अपने पूर्ववर्तियों की भांति, मुल्क के बेताज बादशाह हैं, उन्होंने भी अंतर-क्षेत्रीय व्यापार और संपर्क को बढ़ावा देने वाले उपाय करने का आह्वान किया है। कुछ दिन पहले भारत और पाक के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिटरी ऑपरेशन्स के बीच वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा पर शांति रखने वाले करार पर सहमति बनी है। इसी बीच इमरान खान मंत्रिमंडल की आर्थिक समन्वय समिति, जिसके अध्यक्ष वित्त मंत्री हम्माद अज़ार हैं, उसने आर्थिकी को बचाने की खातिर भारत के साथ फिर से व्यापार शुरू करने की सिफारिश कर डाली, विशेषकर वस्त्र और कृषि वस्तुओं में।
परंतु पाकिस्तानी काबीना ने अगले ही दिन मंत्रिमंडलीय आर्थिक समन्वयन समिति की इस सिफारिश को खारिज कर दिया। विरोध करने वालों में सबसे आगे मानवाधिकार विभाग के मंत्री शिरिन मज़ारी एक थे, जिनका अपना इतिहास भारत-विरोधी लेखों और बयानों का रहा है। उनका साथ देने वालों में तीखे तेवर रखने वाले विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और गृह मंत्री शेख राशिद थे। शिरिन मज़ारी ने जोर देकर कहा ‘काबीना का स्पष्ट मत है कि भारत के साथ कोई व्यापार नहीं होगा। प्रधानमंत्री इमरान खान ने पहले ही साफ कर रखा है कि भारत के साथ तब तक संबंध सामान्य नहीं होंगे जब तक वह जम्मू-कश्मीर को लेकर 5 अगस्त, 2019 की कार्रवाई वापस नहीं लेता’। लगता है सेनाध्यक्ष बाजवा की पहल पर भारत के साथ रिश्तों में मधुरता बनाने वाले काम को पलीता लगाने के लिए इमरान खान दृढ़ निश्चयी हैं। ऐसा करके वे जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर खुद को ज्यादा राष्ट्रवादी स्थापित करना चाह रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि समिति की सिफारिशें रद्द करने से सेना में जनरल बाजवा के विरोधी खुश हुए होंगे, जिनमें आईएसआई मुखिया ले. जनरल फैज़ हमीद एक हैं और बाजवा की जगह लेने की दौड़ में हैं। किंतु ठीक इसी समय वही आईएसआई मुखिया सेनाध्यक्ष के प्रति अपनी स्थाई वफादारी की कसमें भी उठा रहे हैं!
जहां जनरल हमीद के रुख ने इमरान खान को उन लोगों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद की है जो जनरल बाजवा के प्रतिद्वंद्वी हैं, वहीं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने पाया होगा कि अपनी इस हरकत से उन्होंने राजनीतिक विरोधियों जैसे कि पीपीपी के अध्यक्ष आसिफ अली ज़रदारी और मुल्क में कट्टरवादी इस्लामी तत्वों का तगड़ा समर्थन प्राप्त जेयूआई मुखिया मौलाना फज़लुर रहमान के लिए खुद को तगड़ी राजनीतिक चुनौती देने की राहें खोल डाली हैं। बेशक इमरान खान को अपने राजनीतिक दौर का वह आरंभिक दौर याद होगा, जब नवाज़ शरीफ को चुनौती देने में सेना ने काफी मदद की थी। यह साफ है कि जनरल बाजवा के साथ उनके मौजूदा संबंध अब पहले जितने मधुर नहीं रहे, लिहाजा इमरान यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि सैनिक प्रतिष्ठान के उच्च-गलियारों में अपने लिए समर्थन बना रहे। वह एक ही समय में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को आश्वस्त करना चाहते हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को आसान बनाने में पूरी मदद करेंगे, तो वहीं खुद को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग का भरोसेमंद वफादार भी दर्शाने में लगे हैं। जाहिर है रूस और चीन दोनों की नज़र अफगानिस्तान की बहुमूल्य खनिज संपदा, दुर्लभ भूमि पदार्थ और स्रोतों पर है।
ऐसे जटिल परिदृश्य में भारत को अपने पत्ते काफी दक्षता से चलने होंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, जो 1980 के दशक के आरंभिक वर्षों में इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में नियुक्त रह चुके हैं, वहां रहकर उन्होंने पाकिस्तान की आंतरिक जटिलताओं को समझने का नज़रिया विकसित किया है। आगे बढ़ने की दिशा में आरंभिक कदम के तौर पर दोनों मुल्कों को एक-दूसरे की राजधानी में अपने उच्चायुक्त फिर से बहाल करने चाहिए। हालांकि अजीत डोभाल के लिए ‘पर्दे के पीछे वाला संपर्क’ बनाए रखने में मार्गदर्शन करते रहना ज्यादा माफिक होगा। पाकिस्तान में भारत का उच्चायुक्त रहते हुए खास साख अर्जित करने वाले सतिंदर लाम्बा ने वर्ष 2003 में कारगिल युद्ध विराम के बाद जनरल मुशर्रफ के विश्वस्त तारिक अज़ीज के साथ भारत की ओर से ‘पर्दे के पीछे’ बतौर विशेष दूत वार्ता-संपर्क बनाने में प्रशंसनीय काम किया था। किंतु इस पूरी संवाद प्रक्रिया को मुशर्रफ के बाद अगले सेनाध्यक्ष बने जनरल कयानी ने पटरी से उतार दिया था। इमरान खान को नेक सलाह है कि वह उस वार्ता का तफ्सील से अध्ययन करे, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरल पेशकश प्रस्तुत की थी। उन्होंने कहा था ‘सीमा रेखाएं पुनः खींचना संभव नहीं है, लेकिन हम मिलकर सीमाओं को इस कदर बेमानी बना डालें कि उनका वजूद महज नक्शे पर बनी लकीर जितना रह जाए, ताकि नियंत्रण रेखा के दोनों ओर के लोग खुलकर एक-दूसरे के यहां आ-जा और व्यापार कर सकें।’
लेकिन हमारी सीमाओं पर अहिंसा और शांति बनाए रखने वाले अगले उपाय जटिल हो सकते हैं। उम्मीद करें कि बाइडेन प्रशासन ईरान पर प्रतिबंध खत्म करने में समझदारी और दूरदृष्टि से काम लेगा। पूरबी सीमा पर लगते अफगानिस्तान के उन सीमांत इलाकों में ईरान का खासा प्रभाव है जहां अभी तक आईएसआई के बनाए वहाबी सोच वाले कट्टर इस्लामिक चेले अपना नियंत्रण नहीं बना पाए हैं। जम्मू-कश्मीर में हमें राजनीतिक प्रक्रियाएं फिर से शुरू करनी चाहिए, जब कश्मीर घाटी और जम्मू संभाग में हालात सामान्य हो जाएं, तब पुनः राज्य का दर्जा भी बहाल किया जाए। इसी बीच शांति और स्थायित्व की कामना रखने वाले लोग पाकिस्तान को सीमापारीय घुसपैठ के यत्न पुनः शुरू न करने को चेताएं। यदि लद्दाख क्षेत्र में चीन ‘थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़कर इलाका हड़पने’ वाली अपनी हरकत छोड़ दे तो इस प्रक्रिया में आगे मदद मिलेगी।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।