गूगल हमारे सब प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ सकता है पर यदि हम खुद को ढूंढ़ना चाहें तो गूगल हांफ जायेगा और कोई जवाब नहीं मिलेगा। यह काम सिर्फ हम स्वयं ही कर सकते हैं। यहां आकर गूगल भी फेल है। कहते हैं कि –
जंगल-जंगल ढूंढ़ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को
कितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी को।
कहते हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी प्रार्थना चुप्पी है। साधना-तप आदि में सन्तजन चुप्पी साधते हैं और एकाकार की स्थिति में आ जाते हैं। हमारे बड़े-बुजुर्गांे ने बहुत सोच समझकर ऐलान किया था- एक चुप सौ सुख। चुप्पी भी गजब की चीज़ है। चुप रहने से बड़ा कोई जवाब नहीं होता और माफ कर देने से बड़ी कोई सजा नहीं होती। पर एक सच्चाई यह भी है कि जब हम चुप होते हैं तब भी भीतर ही भीतर खुद से ही कुछ न कुछ बतियाते ही रहते हैं।
वो चुप रहें तो मेरे दिल में दाग जलते हैं
वो बात कर लें तो बुझते चिराग जलते हैं।
चेहरे पर मुस्कान रखने वालों की खामोशी के पीछे कई बार आंसुओं का सैलाब बह रहा होता है। कई बार दोनों तरफ की खामोशी बात को मुकम्मल कर देती है। खामोशी की एक खास बात यह भी है कि यह अपना रूप नहीं बदलती जबकि शब्द तो हालात देखकर अक्सर बदल जाते हैं।
दरअसल खामोशी की भी अपनी एक भाषा होती है। भीतर से खोखले हुये इंसान की बेबसी को शब्दों की बजाय उसकी खामोशी अच्छी तरह व्याख्यायित कर सकती है। ऐसे भी दीवाने हैं जो फोन पर खूब बात करेंगे, मैसेज भी असंख्य भेजेंगे पर मिलने पर चुप रहने के टेलेंट का प्रदर्शन करेंगे। ‘गपशप’ करने की क्रिया का लोप सा हो रहा है। पहले सिर्फ गपशप करने के लिये लोग एक-दूसरे से मिला करते थे। अब सिर्फ मतलब की बात करते हैं। अब तथाकथित गपोड़ियों का भी टोटा हो गया है। एक मनचले का कहना है कि खामोशी औरत का वो गहना है जिसे वह सिर्फ सोते वक्त ही पहनती है।
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एक बर की बात है अक नत्थू बंदूक लेकै घर के बारणैं आग्गै चुपचपाता सा खड़्या था। सुरजा बोल्या- गुमसुम क्यां तै हो रह्या है, के बात? नत्थू बोल्या- मैं शेर का शिकार करण जा रह्या हूं। सुरजा बोल्या- फेर दरवाज्जे पै क्यां तै खड़्या है, जाता क्यूं नीं? नत्थू बोल्या- इस मारी अक बाहर कुत्ता खड़्या है।