देश जब दुनिया के अत्याधुनिक लड़ाकू विमान राफेल के भारत आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था तो राफेल स्क्वाड्रन के पहले कमांडिंग ऑफिसर हरकीरत सिंह ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं। उनकी साहस-सूझबूझ और लड़ाकू विमान उड़ाने के उनके कौशल ने देश को आश्वस्त किया कि बहुमूल्य राफेल स्क्वाड्रन की कमान भरोसेमंद हाथों में सुरक्षित है। फ्रांस से उड़ाकर लाया गया पहला राफेल जब अम्बाला एयरबेस पर उतरा तो उसे हरकीरत ही उड़ा रहे थे। भारतीय वायुसेना ने जब अपने सबसे एडवांस फाइटर जेट राफेल की पहली स्क्वाड्रन की जिम्मेदारी देने पर विचार किया तो पहला नाम हरकीरत सिंह का था। कहा भी गया कि उनका इसके लिए चयन नहीं किया बल्कि उन्होंने यह अधिकार खुद अपनी योग्यता से हासिल किया। अपने अदम्य साहस से बेहद जटिल परिस्थितियों में एक मिग को सुरक्षित उतारने वाले हरकीरत सिंह ने अपनी जान की परवाह न करते हुए एक बहुमूल्य विमान को बचाने को प्राथमिकता दी।
सैन्य पृष्ठभूमि के संस्कारों में पले-बढ़े हरकीरत सिंह के पिता निर्मल सिंह भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे। बुधवार को अम्बाला का एयरफोर्स स्टेशन अपने पायलटों के लिए पलक-पावड़े बिछाये हुए था। खासकर उस शख्स के लिए जिसके नेतृत्व में राफेल की लैंडिंग होनी थी। जब राफेल जहाज का पहला दस्ता अम्बाला पहुंच रहा था तो लंबे समय बाद फ्रांस से लौट रहे पायलटों के परिजनों को भी आमंत्रित किया गया था। मगर, हरकीरत सिंह की पत्नी वहां परिजन के रूप में नहीं, बल्कि विंग कमांडर के दायित्वों को निभाने के लिए मौजूद थी। वह उस समय ग्राउंड ड्यूटी पर तैनात थी। निश्चय ही एक परिवार के लिए यह गौरवशाली क्षण था। राष्ट्र की सेवा में पति-पत्नी के रूप में मौजूदगी का।
दरअसल, इस समय हरकीरत सिंह 17 गोल्डन एरो स्क्वाड्रन के कमांडिंग आफिसर हैं। इसी स्क्वाड्रन ने कारगिल युद्ध में निर्णायक भूमिका निभायी थी। बीते साल अक्तूबर में फ्रांस में पहला राफेल भारत को सौंपा गया था तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ वहां हरकीरत सिंह मौजूद थे। तब भी मीडिया में उनकी खूब चर्चा हुई थी।
दरअसल, हरकीरत सिंह बारह साल पहले उस समय चर्चा में आये थे जब उन्होंने बेहद खतरनाक परिस्थितियों में मिग दुर्घटना को टाला था, जिसकी मिसाल पूरी वायुसेना में एक नायक के तौर पर दी जाती है। इसके लिए उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। यह 23 सितंबर, 2008 की घटना है जब दो मिग-21 बाइसन विमानों ने अभ्यास अवरोध उड़ान भरी थी। जब यह घटनाक्रम घटा तब हरकीरत सिंह स्क्वाड्रन लीडर थे। उनका विमान जमीन से कोई चार किलोमीटर की ऊंचाई पर था तो उन्होंने इंजन में तीन धमाके सुने, जिसके बाद मिग के इंजन में आग लग गई। उसके बाद जहाज की स्पीड बेहद कम हो गई और जहाज नीचे आने लगा। कॉकपिट की लाइट्स ऑफ हो गई थी और आपातकाल में बैटरी से चलने वाली लाइट ही उन्हें मिल पा रही थी। रेगिस्तान के ऊपर इतनी कम लाइट्स में मिग-21 को उड़ाना बेहद खतरनाक था। कॉकपिट की कम लाइट में उपकरणों को देख पाना भी कठिन था। इस आपातकाल में उन्हें संवेदनशील जेट को भी बचाना था और अपनी जान को भी। मानवीय क्षति टालने के लिए जहाज को आबादी से दूर भी लेकर जाना था।
इस मुश्किल वक्त में तुरंत साहसी फैसला लेकर उन्होंने एक अनुकरणीय मिसाल पेश की। उन्होंने बेहद शांत दिमाग से प्रतिक्रिया देते हुए जहाज की दिशा बदल दी, जिससे उसका इंजन बंद नहीं हुआ। साथ ही रिकवरी के लिए आवश्यक कदम तुरंत उठाये। वे कामयाबी की तरफ बढ़ चुके थे। उनके कॉकपिट में रोशनी लौट चुकी थी। कालांतर हरकीरत ने ग्राउंड कंट्रोल इंटरसेप्ट कंट्रोलर की मदद से नेविगेशन सिस्टम का उपयोग किया। फिर अव्वल दर्जे का साहस और कौशल दर्शाकर अंधेरी रात में मिग-21 की लैंडिंग करायी। यदि जरा-सी चूक होती तो बड़ी दुर्घटना हो सकती थी।
उनको दिये शौर्य चक्र के प्रशस्ति-पत्र में लिखा गया कि उनकी त्वरित और समयानुकूल कार्रवाई से पहली श्रेणी की दुर्घटना टली और मूल्यवान विमान की रक्षा हो सकी। लेकिन उन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की। वे चाहते तो सुरक्षित कूद सकते थे, लेकिन उन्होंने मिग को सुरक्षित लैंड करवाया। उनके इस योगदान की वायुसेना में मिसाल दी जाती है। इसी भरोसे पर ग्रुप कैप्टन हरकीरत सिंह को उस अत्याधुनिक फाइटर राफेल स्क्वाड्रन की कमान सौंपी गई है।
भारत-चीन सीमा पर जारी तनाव के बीच 17 गोल्डन एरो स्क्वाड्रन की महत्वपूर्ण भूमिका होने जा रही है, जिसमें कालांतर 18 राफेल फाइटर शामिल होंगे तथा उनके लिए करीब तीस पायलट तैनात होंगे। साथ ही 150 से 200 ग्राउंड स्टाफ की नियुक्ति राफेल स्क्वाड्रन की देखभाल के लिए होगी। देश इस स्क्वाड्रन के नेतृत्व में खुद को सुरक्षित महसूस कर सकता है।