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राह दिखाती सांप्रदायिक सौहार्द की एक उजली किरण

हम किस धर्म में विश्वास करने वाले परिवार में जन्म लेते हैं इसमें हमारा कुछ योगदान नहीं है, यह एक संयोग मात्र है। लेकिन इस संयोग को सार्थक बनाने का दायित्व हमारा है। एक अच्छा हिंदू, अच्छा मुसलमान, या अच्छा...

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हम किस धर्म में विश्वास करने वाले परिवार में जन्म लेते हैं इसमें हमारा कुछ योगदान नहीं है, यह एक संयोग मात्र है। लेकिन इस संयोग को सार्थक बनाने का दायित्व हमारा है। एक अच्छा हिंदू, अच्छा मुसलमान, या अच्छा ईसाई बनना अवश्य हमारे हाथ में है। यह अच्छाई इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितने अच्छे मनुष्य हैं।

उसका नाम अरफाज अहमद डैंग है। शायद ही सुना होगा आपने यह नाम। उसने ऐसा कोई कारनामा भी नहीं किया है कि यह नाम सुर्खियों में आता। असल में अरफाज जम्मू का एक युवा पत्रकार है, जिसकी एक पहचान यह भी है कि वह अपने निजी चैनल से बड़ी हिम्मत के साथ सच्चाई को उजागर करने का दावा करने वाला पत्रकार है। कुछ दिन पहले उसने एक समाचार प्रसारित किया था, जो कुछ ताकतवरों को नागवार गुजरा और ‘उसे सबक सिखाने के लिए’ उसका चालीस साल पुराना मकान बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया। प्रशासन का कहना है कि यह मकान अनधिकृत निर्माण था, इसलिए उचित नोटिस देकर इसे गिरा दिया गया। चालीस साल से अपने माता-पिता के साथ वहां रहने वाले अरफाज ने इस कार्रवाई को गैर-कानूनी और तानाशाही गतिविधि करार दिया है।

इस घटना की हकीकत तो जांच के बाद ही सामने आयेगी, पर यह एक सच्चाई तो है ही कि पिछले एक लंबे अर्से से देश में ‘बुलडोजरी न्याय’ की प्रक्रिया जारी है। इस आशय के उदाहरण भी सामने आ रहे हैं जो इस प्रक्रिया को एक सीमा तक अनुचित ठहराते हैं। यहां मैं जो मुद्दा उठा रहा हूं वह ‘अनधिकृत निर्माण’ और ‘बुलडोजरी न्याय’ से कुछ अलग है। मुद्दा यह है कि अरफाज के एक पड़ोसी ने अरफाज के सिर को छत से वंचित करने की इस कार्रवाई को ‘अत्याचार’ कहा है। पर बात यहीं नहीं रुकती। इसके आगे जो हुआ वह बहुत कुछ कह रहा है और इसे ‘सुना’ जाना चाहिए।

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इस घटना का जो वीडियो वायरल हो रहा है वह एक मुसलमान के हिंदू पड़ोसी की मानवतावादी सोच को उजागर करता है। इस हिंदू पड़ोसी का नाम है कुलदीप शर्मा। अरफाज के पिता की उम्र के इस हिंदू पड़ोसी ने दोनों परिवारों के चालीस साल साथ रहने की दुहाई देते हुए कहा है कि वे अरफाज और उसके परिवार को किसी भी कीमत पर उजड़ने नहीं देंगे। बुलडोजर ने अरफाज का तीन महले का घर तोड़ा है, कुलदीप शर्मा ने अरफाज के परिवार को पांच मरला ज़मीन उपहार में देकर उस पर मकान बनवाने का आश्वासन भी दिया है। घटना के वायरल हुए वीडियो में कुलदीप शर्मा को आंसू बहाते हुए यह कहते दिखाया गया है कि वे ‘भीख मांगकर भी’ अपने पड़ोसी मुस्लिम परिवार को नया मकान दिलाएंगे।

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हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का यह शानदार उदाहरण ज़रूर है, पर अकेला उदाहरण नहीं है। ऐसे ढेरों उदाहरण देखे जा चुके हैं जो हमारे देश की गंगा-यमुनी सभ्यता को उजागर करते हैं। अक्सर ऐसे उदाहरणों को नज़रंदाज कर दिया जाता है, पर इन्हें याद रखा जाना ज़रूरी है। जिस तरह का आपसी वैमनस्य फैलाने वाला माहौल देश में पनप रहा है, उसमें अरफाज और कुलदीप शर्मा से जुड़ी यह घटना भरोसा देने वाली है। शर्मा जी ने जो जमीन अपने मुसलमान पड़ोसी को उपहार में दी है, उसके कागज़ात उन्होंने अपनी किशोरी पुत्री के हाथों ‘अपने अरफाज भाई’ को दिलवाये हैं। इस अवसर पर पुत्री का यह कहना कि मैं ‘खुशकिस्मत हूं कि मुझे ऐसे मां-बाप मिले हैं’ किसी भी सच्चे भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा उठा देगा।

देश के नागरिकों में आपसी सौहार्द की दिखती यह उजली किरण अपने आप में बहुत कुछ कह रही है। राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए या फिर धर्म के नाम पर भारतीयों को बांटने की नीति में विश्वास के कारण आज देश में ऐसा बहुत कुछ हो रहा है, जिसे देखकर हर विवेकशील भारतीय को चिंतित होना चाहिए। हमारी राजनीति के कर्णधार कभी ‘अस्सी और बीस’ की बात करते हैं, कभी मंदिर-मस्जिद का मुद्दा उठाते हैं, कभी विधर्मियों के सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार का नारा लगाते हैं। यह प्रवृत्ति समाज और देश को बांटने वाली है, जोड़ने वाली नहीं।

विभिन्नता में एकता का आदर्श उदाहरण है हमारा देश। हमारी धार्मिक विभिन्नता हमारी कमज़ोरी नहीं, ताकत है। इस बात के मर्म को पहचानना-समझना ज़रूरी है। और यह मानना भी ज़रूरी है कि हमारा भारत अस्सी करोड़ हिंदुओं, बीस करोड़ मुसलमानों और चालीस करोड़ अन्य धर्मों को मानने वालों का देश नहीं, एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों का देश है। हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि दुनिया के सारे धर्मों के लिए हमारे देश में जगह है; हम वसुधैव कुटुंबकम‍् में विश्वास करते हैं और सर्वे भवंतु सुखिनः हमारा जीवन-मंत्र है। यह सब हमें हमारे पूर्वजों ने सिखाया था, फिर यह कैसे हुआ कि आपसी भाईचारे के इस महामंत्र को हम भूल रहे हैं?

धर्म के नाम पर बंटने-बांटने की बात करने वाले हिंदू या मुसलमान या ईसाई होने पर गर्व करें, इसमें कुछ ग़लत नहीं है। ग़लत यह तब हो जाता है जब हम अपनी लकीर को बड़ा करने के लिए दूसरों की लकीर को छोटा करने लगते हैं। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हम किस धर्म में विश्वास करने वाले परिवार में जन्म लेते हैं इसमें हमारा कुछ योगदान नहीं है, यह एक संयोग मात्र है। लेकिन इस संयोग को सार्थक बनाने का दायित्व हमारा है। एक अच्छा हिंदू, अच्छा मुसलमान, या अच्छा ईसाई बनना अवश्य हमारे हाथ में है। यह अच्छाई इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितने अच्छे मनुष्य हैं।

इसी अच्छाई का एक बहुत ही सुंदर उदाहरण जम्मू-कश्मीर के कुलदीप शर्मा ने प्रस्तुत किया है। अपने मुसलमान पड़ोसी अरफाज अहमद के ध्वस्त किये गये मकान को फिर से बनवाने के लिए अपनी ज़मीन उपहार में देकर कुलदीप शर्मा ने एक अच्छे हिंदू होने का ही उदाहरण प्रस्तुत किया है। अच्छा हिंदू सबकी भलाई में विश्वास करता है, सबको अपना परिवार मानता है–विश्व का कल्याण हो, प्राणियों में सद्भावना हो, यही तो सिखाया जाता है हमें अपनी प्रार्थनाओं में। फिर कोई कुलदीप किसी अरफाज को पराया कैसे समझ सकता है?

इस संकीर्णता से उबरना होगा हमें। हम तो और संकीर्ण होते जा रहे हैं। कुछ ही अर्सा पहले महात्मा गांधी के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम…’ को लेकर विवाद खड़ा करने की हास्यास्पद कोशिश हुई थी। कहा गया कि इस भजन में ईश्वर-अल्लाह तेरा नाम वाली पंक्ति मूल भजन में नहीं थी, गांधीजी ने इसे जोड़ा। निवेदन है कि यदि यह पंक्ति नहीं भी थी तो उसमें ग़लत क्या है? क्या ईश्वर, गॉड या अल्लाह या परमात्मा एक ही शक्ति के नाम नहीं हैं? कोई भी नाम देकर ईश्वर को पुकारा जा सकता है– सवाल सिर्फ यह है कि हमारी पुकार में कितनी ईमानदारी है!

बहरहाल, अरफाज अहमद ने अपने डिजिटल चैनल पर किसी ड्रग रैकेट का खुलासा किया था, इसी बात की उसे सजा दी गयी, ऐसा कहा जा रहा है। पर यह पूरा प्रकरण हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के उदाहरण के रूप में देखा जाना चाहिए। इस संदर्भ में वायरल हुए वीडियो में कुलदीप यह कहते सुनाई देते हैं कि हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कभी खत्म नहीं होगा। सच है, ऐसे उदाहरण इस भाईचारे को कभी खत्म नहीं होने देंगे। यह हमारा दायित्व बनता है कि हम वह सब करें जो इस भाई-चारे को बनाये रख सकता है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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