चंडीगढ़, 10 सितंबर (ट्रिन्यू)
“हर साल लगभग 7 लाख लोग अपनी जान ले लेते हैं और इससे भी अधिक लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। 2019 में वैश्विक स्तर पर 15-29 वर्ष के आयु वर्ग में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण था। दुनिया के लगभग 14% किशोर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं।“
वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर आईवीवाई अस्पताल मोहाली की साइकेट्रिस्ट डॉ. विभा गोयल ने कहा कि आत्महत्या परिवारों, समुदायों को प्रभावित करने वाली एक त्रासदी है और पीछे छूट गए लोगों पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने आगे कहा संकट के क्षणों में या उन स्थितियों में आवेग में हो सकता है जब कोई व्यक्ति संघर्ष, आपदा, हिंसा और दुर्व्यवहार का अनुभव कर रहा हो। पीड़ितों के प्रति समाज का संवेदनहीन, संवेदनहीन, असंवेदनशील रवैया चिंता का विषय है और अवसाद तथा आत्महत्या से जुड़े मिथकों को समझना अत्यंत चिंता का विषय है।
सबसे ज्यादा सुने जाने वाले मिथकों में से एक यह है कि मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति कमजोरी का संकेत है। यदि व्यक्ति ताकतवर होता तो उसकी यह हालत नहीं होती। डॉ. विभा ने बताया कि इसके विपरीत किसी को भी मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति विकसित हो सकती है।
हालांकि समस्याओं को आमतौर पर बिना उपचार के छोड़ दिया जाता है क्योंकि उन्हें हार्मोनल उतार-चढ़ाव और ध्यान आकर्षित करने की निरंतर इच्छा के कारण होने वाले मूड में बदलाव का एक हिस्सा माना जाता है।
डॉ विभा ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति परिवार के सदस्यों और समाज के अन्य सदस्यों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दोषपूर्ण विशेषण और अपमानजनक टिप्पणियों से पीड़ितों में खुलासा करने की अनिच्छा बढ़ जाती है क्योंकि इससे सामाजिक दूरी पैदा हो सकती है।
मानसिक बीमारियों से जुड़े कलंक, दुर्व्यवहार और उपेक्षा पर अंकुश लगाना मौलिक आवश्यकता है। उन्होंने कहा, कोई भी, जो भी जीवन में किसी भी पद पर हो, किसी भी प्रकार की मानसिक बीमारी से पीड़ित हो सकता है।