जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 14 सितंबर
तीन साल से लगातार एनआईआरआफ रैंकिंग में दूसरे स्थान पर काबिज पंजाब विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी इंस्टीच्यूट आफ फार्मास्यूटीकल साइंसिज (यूआईपीएस) ने अगले साल के लिये अपनी छवि और सुधारने तथा अवधारणा के खाते में और अंक बटोरने के लिये काम शुरू कर दिया है। विभाग को पिछले 75 साल की अपनी उपलब्धियों पर नाज है। यूआईपीएस के खाते में कुल 57 पेटेंट हैं, 75 प्रकाशन हो चुके हैं। कोविड महामारी के दौरान ही विभाग को 13 पेटेंट ग्रांट हुए। इसी तरह से विभाग के अब तक 8 प्रॉडक्ट मार्केट में भी आ चुके हैं जिनमें से सोरायसिस के लिये सोरिसोम, बवासीर के लिये थैंक गॉड, ल्यूकोरिया के लिये डार्वी मल्हार, एंटी एजिंग के लिये अविट एक्स और लिपोटार व इटोवा एलपी आदि शामिल हैं। यूआईपीएस ने फार्मा उद्योग को 11 टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की हैं जिनका वाणिज्यीकरण हो चुका हैं। अभी विभाग कोरोना के लिये दवा विकसित कर रहा है।
विभाग की चेयरपर्सन प्रो. इंदु पाल कौर ने विशेष तौर पर आयोजित एक कार्यक्रम में बताया कि हाल ही में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर द्वारा कराये गये एक सर्वे के मुताबिक दुनिया के टॉप 2 फीसदी साइंटिस्ट अकेले पीयू के यूआईपीएस से ही हैं, देश के कुल 26 में से 5 विज्ञानी पीयू से हैं। फार्मा के क्षेत्र में एकमात्र पद्मश्री पाने वाले प्रो. हरकिशन सिंह इसी विभाग से हैं, जिन्होंने बाद में नाइपर जैसे संस्थान खड़े किये। प्रो. कौर कहती हैं कि उनका विजन ग्लोबल लीडर बनने का है जिसे वे इनोवेशन और रिसर्च के जरिये हासिल करना चाहती हैं। उनका कहना है कि 2030 तक उनका विजन ड्रग डिस्कवरी और डेवेल्पमेंट पर फोकस करना रहेगा। उन्होंने बताया कि पिछले साल 100 प्रतिशत प्लेसमेंट हुई लेकिन इस साल कोविड के चलते अब तक 60 फीसद बच्चे ही प्लेसमेंट पा सके हैं। विभाग के प्रो. भपिंदर सिंह भूप ने बताया कि फार्मा देश के चार बड़े उद्योगों में शामिल है जिसके लिये अलग मंत्रालय की मांग उठती रहती है। फिलहाल पेट्रो-केमिकल मंत्रालय के तहत ही फार्मा उद्योग आता है, हालांकि अलग डीओपीटी अवशय बना दिया गया है।
फैकल्टी के 15 पद खाली
यूआईपीएस की फैकल्टी 36 होती थी लेकिन पिछले कुछ सालों से पीयू में सीनेट-सिंडिकेट राजनीति के चलते भर्तियां लगभग बंद पड़ी हैं जिस कारण यूआईपीएस में भी फैकल्टी के संकट का सामना करना पड़ है। इस समय मात्र 21 टीचर हैं, 15 पद खाली पड़े हैं जिससे शोध और शिक्षण तो प्रभावित हो ही रहा है, सबसे बुरा प्रभाव राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों द्वारा की जाने वाली रैंकिंग पर पड़ता है। विभाग को इस बात का भी रंज है कि देश में दूसरा रैंक लेने के बाद भी पीयू प्रशासन उन्हें पैसा या कोई वित्तीय मदद देने में तरजीह नहीं देता बल्कि अन्य की तरह ही ट्रीट करता है।