बिजली दरों में बढ़ोतरी से भड़का जनाक्रोश, सियासी पारा भी हाई
आयोग का तर्क है कि यह बढ़ोतरी बिजली की खरीद लागत और आपूर्ति की स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। आदेश के अनुसार, अगले पांच वर्षों के ‘कंट्रोल पीरियड’ में सालाना औसतन दो प्रतिशत वृद्धि की ही अनुमति दी गई है। इससे घरेलू और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं पर तत्काल कोई भारी प्रभाव नहीं पड़ेगा, परंतु नागरिक संगठनों और राजनीतिक दलों ने इस कदम को ‘जनविरोधी’ करार दिया है।
नई श्रेणियों से बढ़ी उलझनें
इंडियन सिटीजन फोरम के अध्यक्ष एसके नायर और सचिव नरेंद्र शर्मा ने कहा कि आयोग का आदेश कई बदलावों से भरा है, जिससे उपभोक्ताओं में भ्रम की स्थिति है। बीपीएल श्रेणी के तहत अब 250 वाट लोड या 100 यूनिट प्रति माह की नई सीमा तय की गई है। ‘स्मॉल पावर इंडस्ट्रियल कैटेगरी’ को समाप्त कर दिया गया है, जबकि अब सिंगल एलटी इंडस्ट्रियल सप्लाई के लिए 85 किलोवाट तक के लोड पर तीन नए स्लैब 1 से 500 यूनिट, 501 से 1000 यूनिट और 1000 यूनिट से अधिक लागू किए गए हैं।
जनता के भरोसे का विश्वासघात : आप
आम आदमी पार्टी (आप) चंडीगढ़ के अध्यक्ष विजय पाल सिंह ने आयोग के निर्णय को ‘जनविरोधी और भ्रामक’ बताया। उन्होंने कहा कि भाजपा शासित प्रशासन ने मुनाफे में चल रहे बिजली विभाग पर अनावश्यक भार डालकर निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने का रास्ता खोला है। इसे उन्होंने जनता के भरोसे के साथ सीधा विश्वासघात करार दिया।
कांग्रेस ने उठाया छोटे कारोबारों का मुद्दा
कांग्रेस के प्रदेश सचिव मलकीत सिंह ने कहा कि भाजपा की नीतियों ने बिजली व्यवस्था को अराजक बना दिया है। इस बढ़ोतरी से छोटे दुकानदारों, सैलून और सूक्ष्म उद्यमों के परिचालन खर्चों में लगभग 20 प्रतिशत तक वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि भाजपा की नीतियां विकास नहीं, बल्कि महंगाई को बढ़ावा दे रही हैं।
जनता का दर्द : सरकार बिजली नहीं, बोझ दे रही
मनीमाजरा रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष चितरंजन चंचल ने कहा कि यह बढ़ोतरी 2 लाख 50 हजार उपभोक्ताओं को महंगी बिजली का झटका देगी। उनका कहना था कि प्रशासन निजीकरण की आड़ में जनता को लूट रहा है और भाजपा इसमें बराबर की भागीदार है।
