हरियाणा में एमबीबीएस और डेंटल सर्जन आमने-सामने
प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति को लेकर विवाद, मामला स्वास्थ्य महानिदेशक तक पहुंचा
हरियाणा में एमबीबीएस डॉक्टर और डेंटल सर्जन अस्पतालों में प्रशासनिक पदों की नियुक्ति को लेकर आमने-सामने आ गए हैं। विवाद इतना बढ़ गया है कि मामला स्वास्थ्य सेवाएं हरियाणा के महानिदेशक और स्वास्थ्य मंत्री तक पहुंच गया है।
हरियाणा सिविल मेडिकल सर्विसेज एसोसिएशन (एचसीएमएस) ने हाल ही में डीजी स्वास्थ्य सेवाएं से मिलकर इन पदों पर डेंटल सर्जनों की नियुक्ति का कड़ा विरोध दर्ज कराया था। एचसीएमएस ने यहां तक कह दिया कि यदि प्रशासनिक कार्य दंत चिकित्सकों को सौंपे जाते हैं, तो राष्ट्रीय कार्यक्रमों की जिम्मेदारी भी उन्हें ही दे दी जाए।
एचसीएमएस के आरोपों के बाद अब हरियाणा राज्य दंत चिकित्सा संघ खुलकर सामने आ गया है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. कपिल शर्मा, उपाध्यक्ष डॉ. विनोद पंवार और महासचिव डॉ. पंकज कालवान ने महानिदेशक को पत्र भेजकर न केवल अपना पक्ष रखा, बल्कि एचसीएमएस पर अनुचित आरोप लगाने का भी पलटवार किया है।
विवाद की जड़ में हरियाणा सरकार द्वारा 100 और 200 बेड वाले अस्पतालों के लिए बनाए गए नए स्टाफ नॉर्म्स हैं। इन नियमों के तहत प्रशासनिक दो पदों में से एक पर एमएचए (मास्टर्स इन हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन) डिग्रीधारी डेंटल सर्जन की नियुक्ति का प्रावधान किया गया था।
कई डेंटल सर्जनों ने सरकार से एनओसी लेकर दो वर्षीय एमएचए कोर्स पूरा भी किया। लेकिन जैसे ही अस्पतालों में डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट के पद पर डेंटल सर्जनों की नियुक्तियां शुरू हुईं, एमबीबीएस डॉक्टरों का विरोध तेज हो गया। एचसीएमएस के प्रतिनिधियों ने डीजी को यहां तक कहा कि वे विरोध में इस्तीफा देने को भी तैयार हैं।
दंत चिकित्सक संघ का कहना है कि डेंटल सर्जन पिछले दो दशकों से राज्य और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वे स्कूल हेल्थ, ओरल हेल्थ, मातृ-शिशु स्वास्थ्य, आपातकालीन सेवाएं, आरबीएसके, पीसीपीएनडीटी, जन्म-मृत्यु रजिस्ट्रेशन सहित कई कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे ये जिम्मेदारियां स्वेच्छा और निष्ठा से निभा रहे हैं, इसलिए प्रशासनिक पदों से उन्हें बाहर रखना अनुचित है।
