विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 5 दिसंबर
हाथों, पैरों, मुंह या किसी अन्य जगह सूजन आने पर इसको बिल्कुल भी हलके में न लें। यह सूजन गले तक जाकर सांसों को रोकती है और मरीज की जान चली जाती है। यह बीमारी त्वचा से जुड़ी है, जिसे अकसर लोग सामान्य एलर्जी समझ लेते हैं, जोकि बहुत ही घातक हो सकता है। यह बीमारी अनुवांशिक है। इसे हेरेडिटरी एनजीयोएडीमा (एचएई) के नाम से जाना जाता है। जीन में डिफेक्ट होने के चलते 5 से 12 साल तक के बच्चे की चपेट में आ जाते हैं। फिलहाल यह बीमारी न इलाज है। इसका कोई उपाय नहीं है। दवाइयां देकर ही मरीज की जान को बचाया जा सकता है।
दुनिया में 10000-50000 लोगों में एक इंसान को यह बीमारी होती है। भारत में इस समय 30 से 50 हजार एचएई की चपेट में आ चुके हैं। यह बीमारी पकड़ में नहीं आती, जिस वजह से इसका इलाज मुश्किल हो जाता है।
नॉर्थ रीजन में बीमारी का पता न होने के कारण 35-40 मरीज अपनी जान गंवा चुके हैं। देश में इस बीमारी के ट्रीटमेंट के अच्छे साधन नहीं हैं और न ही अभी इसकी मर्ज की कोई दवा बनी है। विदेश में इस पर रिसर्च की जा रही है और भारतीय वैज्ञानिक भी इसकी शोध में जुटे हैं।
महंगा है इलाज
शरीर में प्रोटीन की कमी के चलते लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए शरीर में प्रोटीन का इंजेक्शन लगाकर इसका बचाव किया जाता है। जानकारी के अनुसार इसका एक इंजेक्शन करीब 30 रुपए के लगभग आता है, जो मरीज को हर महीने लगवाना होता है। इलाज पर महीने में करीब 35 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं।
पीजीआई में 250 मरीजों का चल रहा इलाज
पीडियाट्रिक्स विभाग के क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी और रुमेटोलॉजी एलर्जी इम्यूनोलॉजी यूनिट के सहायक प्रोफेसर डॉ. अंकुर जिंदल ने बताया कि पीजीआई को एचएई के लिए नामित केंद्र बनाया गया है। इस समय यहां करीब 250 मरीजों का इलाज चल रहा है और हर महीने 4-5 मरीज नये आ रहे हैं। डॉ. जिंदल ने बताया कि यह बीमारी दुर्लभ रोग की श्रेणी में आती है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी में गले में सूजन आ जाती है और सांस रूक जाती है जिससे मरीज की मौत हो जाती है। डॉ अंकुर जिंदल ने बताया कि इसका मुख्य लक्षण सूजन है। इसमें खुजली या पित्ती नहीं होती है, जो अक्सर लोगों को एलर्जी से होती है।
जम्मू के रियासी में सबसे ज्यादा मरीज
जम्मू के रियासी में इस समय एचएई की चपेट में 30-40 मरीज हैं। यह खुलासा तब हुआ जब एक गर्भवती इलाज के लिए पीजीआई पहुंची। जब महिला और उसके गर्भ की जांच की गई तो पता चला कि वह एचएई की चपेट में हैं। इसके बाद पीजीआई की टीम रियासी पहुंची और जांच की तो काफी लोग इसकी चपेट में थे। सभी का इलाज शुरू कर दिया। आंध प्रदेश की एक फैमिली का भी यहां इलाज चल रहा है। बीमारी न पता होने के चलते इस परिवार के करीब 10 लोगों की मौत हो चुकी है और 12 के करीब चपेट में हैं।
ये उठा रहे कदम
डॉ. अंकुर जिंदल ने बताया कि पीजीआई लोगों को जागरूक करने के लिए शिविर लगा रहा है। इसके अलावा दूसरे राज्यों के डॉक्टरों को भी इस बारे अवेयर किया जा रहा है। इलाज महंगा होने के कारण मरीज टेस्ट ही नहीं कराते। पीजीआई इस बारे केंद्र की रेयर डिजीज पॉलिसी से पीड़ितों का इलाज कराने के लिए प्रयासरत है और इसके लिए कोशिशें की जा रही हैं। इस पॉलिसी के तहत मरीज को केंद्र की ओर से 50 लाख रुपए की राशि दी जाती है।