सात साल में करोड़ों खर्च... फिर भी कचरे की सही छंटाई सपना ही रहा
सिटी ब्यूटीफुल में कचरे की सही ढंग से छंटाई (वेस्ट सेग्रेगेशन एट सोर्स) की कोशिशें सात साल बाद भी नाकाम रहीं। 2017 से अब तक करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद नगर निगम इस बुनियादी सफाई व्यवस्था को मजबूत नहीं कर सका। स्वच्छ सर्वेक्षण 2024-25 में इस श्रेणी में चंडीगढ़ को मात्र 14 प्रतिशत अंक मिले, जो हालात की गंभीर तस्वीर पेश करता है।
हालांकि ‘डोर-टू-डोर कलेक्शन’ में शहर को 93 प्रतिशत स्कोर मिला, लेकिन कचरे की छंटाई में पिछड़ने के कारण शहर 3-स्टार गारबेज फ्री सिटी की श्रेणी में भी नहीं पहुंच सका।
2017 में निगम ने करीब 3 करोड़ रुपये से दो रंगों की डस्टबिनें खरीदीं। हरे रंग की गीले और नीले रंग की सूखे कचरे के लिए। ढाई लाख घरों में 5 लाख डस्टबिन मुफ्त बांटी गईं, लेकिन योजना की शुरुआत के डेढ़ साल बाद तक भी छंटाई शुरू नहीं हो पाई।
ऑडिट रिपोर्ट में सवाल उठाए गए कि कचरा उठाने वाले सफाईकर्मी खुद ही कचरे को मिलाकर ले जाते हैं, जिससे छंटाई का उद्देश्य खत्म हो गया। कुछ डस्टबिन टूट गईं तो कुछ का इस्तेमाल अन्य कार्यों में होने लगा। सहज सफाई केंद्रों पर भी करोड़ों खर्च किए गए लेकिन नतीजे नहीं मिले। डंपिंग ग्राउंड की हालत भी जस की तस है और पुराना कचरा अब भी वहीं पड़ा है।
जवाबदेही की कमी, समर्पण नहीं
व्यापार मंडल के अध्यक्ष संजीव चड्ढा ने कहा कि बाजारों में लगी डस्टबिनें टूटी हुई हैं, उन्हें बदला गया है, लेकिन असल बदलाव नागरिकों की भागीदारी से ही आएगा। रेजिडेंट्स वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन के संयोजक विनोद वशिष्ठ ने कहा कि यदि स्रोत पर ही छंटाई नहीं होगी तो 5-स्टार या 7-स्टार रैंकिंग मिलना मुश्किल है। उपमहापौर तरुणा मेहता ने कहा कि लोगों और मार्केट एसोसिएशनों की भागीदारी से ही यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।