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संकट में सूझबूझ

एकदा
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एक बार अंग्रेज सरकार के गुप्तचर चंद्रशेखर आजाद का पीछा कर रहे थे। वे किसी तरह उनसे बचते हुए अपने एक विश्वासपात्र मित्र के घर पहुंच गए और वहीं छिप गए। लेकिन पुलिस को किसी भेदिए से इसकी भनक लग गई। कुछ देर बाद पुलिस का दल उसी घर पर आ पहुंचा। पुलिस ने घर की तलाशी की मांग की और घर के मालिक से कड़ी पूछताछ की। परंतु वह डटा रहा, ‘मेरे यहां आजाद नहीं हैं।’ मगर आजाद तो सचमुच भीतर ही छिपे थे। ऐसे में स्थिति बहुत नाज़ुक हो गई। तभी उस घर की साहसी और चतुर महिला ने अपनी बुद्धि का परिचय दिया। उस दिन मकर संक्रांति का त्योहार था। उसने ऊंची आवाज में आजाद को डांटते हुए कहा, 'अरे मूर्ख! बच्चों के साथ ही खेलता रहेगा क्या? यह मिठाई की टोकरी उठा और मेरे साथ चल। आज त्योहार है, पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटनी है!’ आजाद तुरंत समझ गए। उन्होंने बिना कुछ बोले मिठाई की टोकरी सिर पर रखी और उस महिला के पीछे-पीछे घर से निकल पड़े। पुलिसवाले अब भी पूछताछ में उलझे थे, किसी को भनक तक नहीं लगी। घर से निकलने के बाद न कोई मिठाई बांटी गई, न कोई त्योहार मनाया गया। आजाद सीधे वहां से अपने सुरक्षित ठिकाने की ओर चले गए।

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