संत ज्ञानेश्वर अपने शिष्यों के साथ नदी पार कर रहे थे। शिष्य संत ज्ञानेश्वर से अपनी शंकाओं का समाधान भी करते जा रहे थे। एक शिष्य ने प्रश्न किया, ‘गुरुदेव, इस जन्म को कैसे सार्थक बनाएं, ताकि आत्मा का परमात्मा से मिलन सहजता से हो सके। संत ज्ञानेश्वर ने कहा, ‘वत्स, जिस प्रकार भारी वस्तु पानी में डूब जाती है, उसी प्रकार आत्मा भी हमारे विभिन्न कर्मों, दुष्कर्मों के बोझ लिये भटकती रहती है और यह क्रम अनादि काल से चलता रहता है। सहज और सरल मुक्ति के लिए जरूरी है कि आत्मा को हर प्रकार के कर्मों से स्वतंत्र किया जाए, ताकि वह हल्की होकर निर्भार हो सके और उसका परमात्मा से मिलन सुगम हो सके, ऐसी स्वतंत्रता माया से मुक्ति के बाद ही मिलती है।’
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी