महाभारत के युद्ध के बाद शोक में डूबे धृतराष्ट्र को महात्मा विदुर अपने अमृत समान वचनों से समझाने का प्रयास करते हैं। उनका शोक मिटाने और संसार च्रक की गति समझाने के लिए वे उन्हें वेद शास्त्रों की एक कथा सुनाते हैं-
एक दुर्गम वन में एक ब्राह्मण यात्रा कर रहा था। यह वन हिंसक जंतुओं से भरा था। जोर-जारे से गर्जना करने वाले सिंह, चीते, हाथी और रीछ जैसे वन्य प्राणी थे। इस वन में प्रवेश करना, यमराज को न्योता देने जैसा था। वन में प्रवेश करने के बाद ब्राह्मण इधर-उधर शरण पाने के लिए दौड़ता फिर रहा था। कुछ समय भागम-भाग के बाद वह थक कर गिर पड़ा और गहरी निद्रा में लीन हो गया। आंख खुलने पर उसने देखा कि वह वन में भयानक लताओं के मजबूत जाल में फंस गया है और एक कुरूप स्त्री ने उसे अपनी भुजाओं में कस कर भींचा हुआ है। नीचे कुआं है। बेलों के जाल में फंसकर कुएं में उलटे लटके ब्राह्मण ने कुएं के भीतर एक महाबली नाग और बाहर किनारे पर एक विशाल हाथी देखा, जिसके छह मुख थे। वह विशाल गजराज, काले और सफेद रंग का था और 12 पैरों पर चलता था। ब्राह्मण ने एक और विचित्र दृश्य देखा कि कुएं के ठीक ऊपर एक विशाल वृक्ष की टहनियों पर मधुमक्खियों का छत्ता था, जिसमें से स्वादिष्ट मधु-धारा प्रवाहित हो रही थी। यहीं पर काले और सफद रंग के सैकड़ों चूहे थे, जो ब्राह्मण की आश्रयदाता लताओं को निरंतर काट रहे थे। इस घोर संकट की स्थिति में भी उलटे लटके ब्राह्मण के मुख में स्वादिष्ट मधु टपकने के कारण वह उसकी ओर आकर्षित हो गया। ऐसी विषम परिस्थिति में भी तृष्णा शांत न होने के कारण वह बारंबार शहद पीने की इच्छा कर रहा था।
धृतराष्ट्र उस ब्राह्मण की अधोगति जान आश्चर्यचकित हुए और महात्मा विदुर से पूछने लगे, ‘हे अनघ! उस ब्राह्मण को तो महान दुख प्राप्त हुआ था, फिर भी वहां उसका मन कैसे लगा। उस महान कष्ट से उसका छुटकारा कैसे संभव था।’
विदुर ने भयंकर वन का रहस्य प्रकट करते हुए कहा, यह संसार ही वह महान दुर्गम वन है, सर्प नाना प्रकार के रोग हैं, जिनसे निरंतर आयु क्षीण होती रहती है। विशालकाय नारी वृद्धावस्था का रूप और कांति का नाश करने वाली है। वन में स्थित कुआं देहधारियों का शरीर है। उसमें नीचे जो विशाल नाग है, वही काल है, जो सभी प्राणियों का अंत और उनका सर्वस्व हरण करने वाला है। कुएं में लटकी लताएं, जीवन की अनगिनत आशाएं हैं, जिनमें मानव बंधा हुआ है। छह मुख वाले हाथी के रूप में छह ऋतुएं और 12 पैरों को 12 महीनों के रूप में दर्शाया गया है। जो चूहे बेलों को काट रहे हैं, उन्हें विद्वान पुरुष दिन और रात कहते हैं, उनके चलते ही हमारा जीवन निरंतर कम होता जाता है। जो वृक्ष के ऊपर मधुमक्खियां हैं, वे सभी कामनाएं हैं। वे मानव देह को अपने डंकों से पीड़ा पहुंचाती रहती हैं। मनुष्य के मुख में निरंतर कामरस टपकता रहता है, जिसमें सभी मानव डूब रहे हैं।
श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो सभी से मैत्री भाव रखता हुआ, शरीर रूपी रथ में इंद्रिय रूपी घोड़ों पर मन की लगाम द्वारा नियंत्रण रखता हुआ- क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और कामरूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। साथ ही प्रत्येक सांस में सच्चिदानंद परम पिता परमात्मा को प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील रहता है।
(साभार : महाभारत के जाने-अनजाने पात्र)