इलाहाबाद में एक घर के बाहर एक रिक्शा रुकता है और उसमें से उतरकर एक भाई अपनी बहन को आवाज लगाता है, ‘जरा 12 रुपैया ले के तो आओ।’ बहन बाहर आकर पूछती है कि 12 रुपये काहे चाहिए, तो भाई उत्तर देता है, ‘दुई रुपैया इस रिक्शे वाले को और 10 तुमको! आखिर राखी बंधवाई की दक्षिणा भी तो तुम्हें देनी पड़ेगी।’ बहन की आंखें भाई के उस निश्छल प्रेम को देख छलछला आईं और चुपचाप बटुए से निकालकर 12 रुपये उन्हें दे दिए। जानते हैं वे भाई-बहन कौन थे? वे थे हिन्दी साहित्य के एक युग के महानायक पं. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और उनकी मुंहबोली बहन महादेवी वर्मा। रक्षा-बंधन पर यह प्रसंग बरबस स्मृति पटल पर तैर गया है।
प्रस्तुति : योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’