संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
हमारे अंतर की गहराई में है हमारी आत्मा, जो प्रकाश, प्रेम और शांति से भरपूर है। हमारे ये आत्मिक खजाने मन, माया और भ्रम की परतों के नीचे छुपे रहते हैं। हमारा ध्यान अंदरूनी संसार के बजाय हर वक्त बाहरी संसार में ही लगा रहता है। हम अपने मन की इच्छाओं के जरिये अपने ऊपर पड़े पर्दे बढ़ाते रहते हैं, जिससे हमारे अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार में भी बढ़ोतरी होती चली जाती है।
इन बाधाओं को तोड़ कर अपनी आत्मा का अनुभव करने के लिए हमें धरती के चारों कोनों में तलाश करने की जरूरत नहीं है। सौभाग्य से, युगों-युगों से संत-महापुरुष आत्मा के क्षेत्र में तरक्की करते रहे हैं। वे ऐसा करने में सफल रहे हैं, अपने ध्यान को अंतर में टिकाकर, जिसे मेडिटेशन, मौन प्रार्थना या अंतर्मुख होना भी कहा जाता है। वे हमें बताते हैं कि सच्चा आनंद तभी मिलता है, जब अपने ध्यान को अंतर में केंद्रित कर प्रभु की ज्योति का अनुभव प्राप्त करते हैं। यदि हम अपनी आत्मा को ढकने वाली परतों को हटाने में सफल हो जाएं, तो अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को अवश्य देख पाएंगे, जो कि प्रभु की दिव्य-ज्योति से प्रकाशमान है।
जब हमारी आत्मा शरीर और मन की कैद से मुक्त हो जाती है, तो वो स्वतंत्र और खुश होकर ऊपर उठने लगती है। इस बाहरी संसार की समय व स्थान की सीमाओं से ऊपर उठकर वो अपने सच्चे अनंत अस्तित्व को पहचानने लगती है, तथा इस भौतिक मंडल से परे के आध्यात्मिक मंडलों के आनंद का अनुभव करने लगती है।
यह आध्यात्मिक यात्रा आरंभ होती है आंतरिक प्रकाश को देखने व आंतरिक ध्वनि को सुनने के साथ। इनमें अधिक से अधिक डूबते जाने से हमारी आत्मा शारीरिक चेतनता से ऊपर उठ जाती है, तथा धीरे-धीरे अंड, ब्रह्मांड और पारब्रह्म के रूहानी मंडलों से गुजरते हुए अपने निजधाम सचखंड वापस पहुंच जाती है। वहां हम अपनी आत्मा को उसकी शुद्ध अवस्था में देख पाते हैं और अनुभव करते हैं कि वो परमात्मा का ही अंश है। वहां हमारी आत्मा फिर से अपने स्रोत परमात्मा में लीन हो जाती है तथा अंतहीन खुशियों, परमानंद और प्रेम से भरपूर हो जाती है। ऐसा करने के लिए हमें आंतरिक प्रकाश और ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
भीतर शांति, बाहर खोज!
समस्त संसार में लोग शांति पाने के प्रयासों में लगे हैं। विभिन्न देश भी लगातार वार्ता करते रहते हैं, ताकि आपस में शांति कायम हो सके। शांति की खोज विश्वस्तर पर जारी है। यह हैरत की बात है कि बहुत से लोगों द्वारा शांति की लंबी खोज के बावजूद इसकी उपलब्धि भ्रामक लगती है। इस धरती पर ऐसा कुछ भी प्रतीत नहीं होता, जो हमें सच्ची और हमेशा की शांति दे सके। इंसानी जीवन और दुख साथ-साथ चलते हैं। भले ही कोई अमीर हो या गरीब, सबका जीवन किसी न किसी समस्या से घिरा रहता है। किसी भी व्यक्ति का जीवन दुर्घटना या बीमारी के बिना व्यतीत नहीं होता। घर में किसी एक सदस्य के बीमार या दुखी होने पर पूरा परिवार दुखद अवस्था में आ जाता है। इसी प्रकार, घर और बाहर हमारा किसी न किसी से झगड़ा या तनाव चलता ही रहता है। निश्चित रूप से ऐसा समय भी आता है जब हमें जीवन में खुशियों का अनुभव होता है, लेकिन वो खुशियां क्षणभंगुर ही होती हैं और जल्द ही हम फिर किसी न किसी तनाव से घिर जाते हैं। इसीलिए हमें महसूस होने लगता है कि जीवन में शांति पाना नामुमकिन है। लेकिन यह सच है कि सच्ची शांति हम इसी जीवन में पा सकते हैं। हमें बस अपने जीने के नजरिये को बदलना है, जीवन के उतार-चढ़ाव को सहना है। आमतौर पर हम शांति की तलाश बाहरी जगत में करते हैं। हम भौतिक वस्तुओं, सामाजिक दर्जों और रिश्ते-नातों में शांति तलाशते हैं। इनमें से किसी के भी खो जाने पर हम उत्तेजित हो उठते हैं और घबरा जाते हैं। हमारे मन की शांति भंग हो जाती है। लेकिन सच्ची शांति हमारे अंतर में विद्यमान है। ध्यान के द्वारा हम अंतर में प्रभु की दिव्य ज्योति व श्रुति से जुड़ते हैं। ऐसा करने से हमारी आत्मा अत्यंत खुशी व आनंद का अनुभव करती है। यह परम सुख आत्मा के साथ हर समय रहता है। आंतरिक शांति का अनुभव करके हम बाहरी शांति भी प्राप्त कर सकते हैं। हम अपने आसपास के लोगों के साथ शांति व प्रेम का व्यवहार करते हैं। इससे हमारे अंतर की शांति दूसरों तक भी फैलती है। आत्मिक और बाहरी जीवन में विकसित होकर हम संपूर्ण इंसान बन जाते हैं। हम न तो अपनी सांसारिक परिस्थितियों को बदल सकते हैं और न ही उनसे जुड़ी समस्याओं को खत्म कर सकते हैं। पर ध्यान के द्वारा इन समस्याओं को देखने का हमारा नजरिया बदल सकता है। ध्यान के द्वारा हम शांतिपूर्ण ढंग से जीवन का सामना करने लगते हैं, क्योंकि हम इसकी असलियत को जान जाते हैं। इसी ज्ञान के द्वारा हम जीवन की समस्याओं का मुकाबला पूरे साहस के साथ करने लगते हैं। ऐसा करने से हम अपने आसपास के लोगों के लिए भी हिम्मत व शांति का स्रोत बन जाते हैं।