उस समय की बात है, जब पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म नहीं हुआ था। आखिर विधाता ने चंद्रमा की मुस्कान, गुलाब की सुगंध और अमृत की माधुरी को एक साथ मिलाया और मिट्टी के घरौंदों में भर दिया। सब घरौंदे लगे चहकने और महकने। देवदूतों ने विधाता की इस नई अनोखी रचना को देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने ब्रह्मा से पूछा, ‘यह क्या है?’ विधाता ने बताया, ‘इसका नाम है- जीवन। यह मेरी सर्वश्रेष्ठ कृति है।’ एक देवदूत बीच ही में बोल पड़ा, ‘क्षमा कीजिए प्रभु! लेकिन यह समझ में नहीं आया कि आपने इसे मिट्टी का तन क्यों दिया? मिट्टी तो तुच्छ से तुच्छ है। जड़ से भी जड़ है। मिट्टी न लेकर आपने कोई धातु क्यों नहीं ली? सोना नहीं तो लोहा ही ले लेते।’ विधाता के होंठों पर एक मोहक मुस्कान आ गई। बोले, ‘वत्स! यही तो जीवन का रहस्य है। मिट्टी के शरीर में मैंने संसार का सारा सुख-सौंदर्य, सारा वैभव उड़ेल दिया है। जड़ में आनंद का चैतन्य फूंक दिया है। इसका जैसा चाहो, उपयोग कर लो। शरीर को महत्ता देने वाला मिट्टी की जड़ता भोगेगा। जो इससे ऊपर उठेगा, वह आनंद की भिन्न-भिन्न परतों से होकर गुजरेगा। लेकिन ये सब मिट्टी के घरौंदे की तरह क्षणिक हैं, इसलिए जीवन का प्रत्येक क्षण मूल्यवान है।’
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार