मदन गुप्ता सपाटू
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी किस दिन मनाई जाये, इसे लेकर इस बार भी दो मत हैं। भगवान कृष्ण का अवतरण भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में अर्ध रात्रि के समय माना गया है। लेकिन, इस बार जन्माष्टमी पर जन्म तिथि और नक्षत्र का संयोग नहीं बन रहा है। अष्टमी 11 अगस्त को सुबह 9:06 बजे शुरू होकर अगली सुबह 11:15 बजे तक रहेगी। इस दौरान कृतिका नक्षत्र रहेगा, जबकि रोहिणी नक्षत्र 12 अगस्त की रात्रि 3 बजकर 26 मिनट पर लगेगा। ऐसे में कहीं 11 अगस्त, तो कहीं 12 को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। पंचांग और परंपराओं के अनुसार गृहस्थ लोगों के लिए 11 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना उचित है। भगवान के निमित्त व्रत, बालरूप पूजा, झूला झुलाना, दान, जागरण, कीर्तन इसी दिन किया जाएगा। वहीं, 12 अगस्त को वैष्णव व संन्यासी जन्मोत्सव मनाएंगे। परंपरानुसार मथुरा, वृंदावन सहित कई जगह उदयकालीन अष्टमी के दिन ही श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसलिए वहां 12 को उत्सव मनाया जाएगा। वहीं बनारस, उज्जैन और जगन्नाथपुरी में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव एक दिन पहले 11 अगस्त को मनाया जाएगा। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़ आदि में गृहस्थ लोग अर्द्धरात्रिकालीन अष्टमी को व्रत, पूजा करते आ रहे हैं।
जन्माष्टमी के दिन पूजा के साथ-साथ व्रत रखना बहुत फलदायी माना जाता है। इसमें अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। फलाहार किया जा सकता है। व्रत अष्टमी तिथि से शुरू होता है। इस दिन बाल कृष्ण लड्डू गोपाल जी की मूर्ति को अच्छे से सजाएं। माता देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा जी का चित्र भी लगा सकते हैं। रात 12 बजे, लगभग अभिजीत मुहूर्त में भगवान की आरती करें, शंख बजाएं। गंगा जल से श्रीकृष्ण को स्नान करायें, उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। भगवान को झूला झुलाएं और भजन, गीत-संगीत के बाद मक्खन, मिश्री, धनिया, केले, मिष्ठान का प्रसाद बांटें। अलग-अलग परंपरांओं के अनुसार कोई रात में प्रसाद खाकर व्रत खोल लेते हैं, जबकि कई अगली सुबह सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करते हैं।
भगवान कृष्ण की आराधना के लिए आप ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप कर सकते हैं। स्ंातान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति संतान गोपाल मंत्र का जप कर सकते हैं- देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः। दूसरा मंत्र है- क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलां अंगाय नमः।