चैत्र नवरात्र की रामलीला मुख्यतः रामायण के बालकांड और अयोध्या कांड पर केंद्रित होती है। इसमें श्रीराम के जन्म, ताड़का वध, धनुष यज्ञ, माता कैकेयी के वरदान, वनवास और वनगमन के प्रसंगों को प्रमुखता दी जाती है। रामनवमी के दिन राम जन्मोत्सव का विशेष मंचन होता है। जबकि शारदीय नवरात्र की रामलीला में रामायण के अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड का मंचन किया जाता है।
धीरज बसाक
चैत्र नवरात्र की रामलीलाओं का मंचन शरद नवरात्र से अलग और विशिष्ट क्यों हैं? दरअसल, चैत्र नवरात्र में भी रामलीलाएं होती हैं। ये शारदीय नवरात्र (आश्विन नवरात्र) की रामलीलाओं से अलग और विशिष्ट होती हैं। लेकिन ये देश के कुछ ही जगहों में होती हैं, जिसके पीछे कई धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण हैं। चैत्र नवरात्र को विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत माना जाता है, साथ ही सृष्टि की उत्पत्ति का समय भी इसे कहा जाता है। इस दौरान होने वाली रामलीला मुख्य रूप से भगवान श्रीराम के जन्म, उनके बचपन और प्रारंभिक जीवन के प्रसंगों पर ही केंद्रित होती हैं। रामनवमी चूंकि इस नवरात्र के अंतिम दिन आती है, इसलिए यह राम जन्मोत्सव पर विशेष रूप से केंद्रित होती है।
जबकि शारदीय नवरात्र की रामलीला विजयादशमी (दशहरा) के साथ संपन्न होती है, जो श्रीराम की रावण पर विजय का प्रतीक है। इसलिए शारदीय नवरात्र में मंचित रामलीला का मुख्य फोकस लंकाकांड, रावण वध और ‘धर्म की अधर्म पर’ विजय पर फोकस होता है। इसमें दशहरे के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है।
दोनों के कथा प्रसंगों में अंतर
चैत्र नवरात्र की रामलीला मुख्यतः रामायण के बालकांड और अयोध्या कांड पर केंद्रित होती है। इसमें श्रीराम के जन्म, ताड़का वध, धनुष यज्ञ, माता कैकेयी के वरदान, वनवास और वनगमन के प्रसंगों को प्रमुखता दी जाती है। रामनवमी के दिन राम जन्मोत्सव का विशेष मंचन होता है। जबकि शारदीय नवरात्र की रामलीला में रामायण के अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड का मंचन किया जाता है। इसमें सीता हरण, हनुमानजी की लंका यात्रा, राम-रावण युद्ध और रावण वध के दृश्य प्रमुख होते हैं। विजयादशमी के दिन रावण वध और राम के अयोध्या लौटने का भव्य मंचन किया जाता है।
सांस्कृतिक व लोक परंपराओं में भिन्नता
चैत्र नवरात्र की रामलीला जहां कुछ निश्चित स्थानों पर राम के जीवनलीला स्थलों तक ही केन्द्रित होती है जबकि शारदीय नवरात्र की रामलीला समूचे उत्तर भारत में जगह-जगह होती है। चैत्र नवरात्र की तरह इनके पूर्णतः शास्त्रसम्मत होने की भी जरूरत नहीं होती। इसमें रामकथा के साथ लोककथा का भी मंचन होता है। जबकि चैत्र नवरात्र की रामलीलाएं पूर्णतः शास्त्रसम्मत और धार्मिक अनुष्ठान के साथ की जाती हैं। ये उन्हीं जगहों पर होती हैं जहां से भगवान राम का रिश्ता है, सिवाय एक दिल्ली के श्रीराम सेंटर में होने वाली रामलीला के। चैत्र नवरात्र की रामलीला भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या के अलावा चित्रकूट, सीतामढ़ी, उज्जैन, नासिक और दिल्ली के श्रीराम सेंटर में खेली जाती है। कहीं-कहीं इसे नृत्य-नाटिका और कथावाचन के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है।
शारदीय नवरात्र की रामलीला
यह अधिक लोकनाट्य शैली में होती है, जहां भव्य मंच, विशाल पुतलों का दहन और जनसहभागिता अधिक होती है। दिल्ली, वाराणसी, लखनऊ और रामनगर (बनारस) की रामलीलाएं पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। इसमें ध्वनि, प्रकाश और तकनीकी प्रभावों का अधिक प्रयोग किया जाता है। जबकि चैत्र नवरात्र की रामलीलाओं के दर्शक भी आम तौर पर संत-महंत और रामायण प्रेमी लोग होते हैं। जबकि शारदीय नवरात्र की रामलीलाओं को देखने के लिए हजारों-लाखों की भीड़ उमड़ती है। विशाल स्तर पर मंचन, वेशभूषा, संगीत और नाटकीय प्रभाव का उपयोग किया जाता है। चैत्र की रामलीलाओं में आध्यात्मिक तत्व अधिक होते हैं, कथा के साथ-साथ रामचरितमानस या वाल्मीकि रामायण के श्लोकों का पाठ किया जाता है।
दोनों रामलीलाओं में विशिष्टता
चैत्र नवरात्र की रामलीला का महत्व राम जन्म और उनके आदर्श जीवन के प्रचार-प्रसार में अधिक होता है। इस समय की रामलीला अध्यात्म और साधना से जुड़ी होती है। जबकि शारदीय नवरात्र की रामलीला अधिक भव्य और लोकप्रिय होती है।
अयोध्या में आयोजित चैत्र रामलीला
भगवान श्रीराम की जन्मभूमि होने के कारण अयोध्या में चैत्र नवरात्र के दौरान रामलीला का विशेष आयोजन होता है। सरयू तट और श्रीराम जन्मभूमि परिसर के पास विभिन्न स्थलों पर इसका आयोजन होता है। वाराणसी में भी कुछ जगहों में चैत्र नवरात्र में लीला का आयोजन होता है, लेकिन यह शहर की पहचान नहीं सिर्फ आध्यात्मिक जगत तक सीमित लीला होती है।
चित्रकूट और सीतामढ़ी की लीला
चित्रकूट, जहां श्रीराम ने वनवास के कुछ वर्ष बिताए थे, वहां चैत्र नवरात्र में रामायण कथा और रामलीला का विशेष आयोजन होता है। कामदगिरि पर्वत के आसपास के क्षेत्रों में भव्य मंचन किया जाता है। सीतामढ़ी को माता सीता की जन्मस्थली माना जाता है और यहां रामलीला एवं सीता जन्मोत्सव विशेष रूप से चैत्र नवरात्र में मनाया जाता है। यहां की रामलीला में सीता जन्म और जनकपुर प्रसंग विशेष रूप से मंचित किया जाता है।
उज्जैन और नासिक की चैत्र रामलीला
महाकाल की नगरी उज्जैन में चैत्र नवरात्र में भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े कुछ विशेष प्रसंगों का मंचन होता है। जबकि नासिक के पंचवटी क्षेत्र में जहां श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वनवास के दौरान रहे थे, वहां चैत्र नवरात्र में रामलीला और रामायण कथा का विशेष मंचन होता है। यहां रामकुंड के पास विशेष धार्मिक अनुष्ठान और कथा वाचन भी किया जाता है।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में आदिवासी संस्कृति से जुड़े विशेष नृत्य-नाट्य के रूप में रामलीला होती है। यह मंचन स्थानीय पारंपरिक लोकगीतों और आदिवासी शैली में किया जाता है। जबकि दिल्ली स्थित श्रीराम भारतीय कला केंद्र में भी चैत्र नवरात्र में संक्षिप्त रामलीला का मंचन होता है। यहां रामायण से प्रेरित नृत्य नाटिकाएं और कथावाचन होता है। इ.रि.सें.