घनश्याम बादल
मनोविज्ञान की दृष्टि से देखें तो मन के उत्कट धैर्य की एक प्रतीक हैं शबरी। शाब्दिक अर्थों में भी शबरी सब्र यानी धैर्य की प्रतिमूर्ति हैं, जो अपने राम के आने का सब्रपूर्वक इंतजार करती हैं, एकटक व अपलक राम की प्रतीक्षा करती हैं और फिर पाती हैं बैकुंठ लोक।
शबरी रामायण की एक गौण पात्र होते हुए भी वह श्रद्धा पा गईं, जो कई मुख्य पात्रों को भी नहीं मिली। भीलराज निषाद की पुत्री शबरी शुरू से ही दयालु व उदार चरित्र की थीं। अपनी शादी के वक्त जब उन्होंने देखा कि उनके पिता काफी बड़ी संख्या में बकरियां लेकर आए हैं और उन्हें बलि व भोजन के रूप में प्रयोग करने के लिए मारा जाएगा, तो प्रातः होने से पहले ही उन सबको आजाद करके शबरी ने चुपचाप घर छोड़ दिया। उन्होंने जंगल में जाकर ऋषि मतंग का शिष्यत्व प्राप्त कर अपना सारा जीवन पशु-पक्षियों की सेवा में लगा दिया।
राम के आगमन की प्रतीक्षा
कहा जाता है कि जब ऋषि मतंग मृत्यु के निकट थे, तब वृद्धावस्था पा चुकीं शबरी ने उनसे पूछा कि आप जैसा ज्ञान, वैराग्य और प्रभु के दर्शन मुझे कैसे प्राप्त होंगे। ऋषि मतंग ने देह त्यागने से ठीक पहले उन्हें वरदान दिया कि निःस्वार्थ सेवा के लिए तुम्हें न केवल प्रभु के दर्शन मिलेंगे, बल्कि भगवान राम खुद चलकर तुम्हारे पास आएंगे। तब से शबरी भगवान राम के आगमन की प्रतीक्षा में लग गयी थीं।
प्रेम की तीव्रता व अधीरता
प्रतिदिन वह भगवान राम के लिए बेरियां इकट्ठी करतीं और यह तय करने के लिए कि कहीं राम को कोई कड़वा या खट्टा बेर न मिल जाए, वह प्रत्येक बेर को चख-चख कर केवल मीठे बेर ही अपनी डलिया में रखतीं, बिना यह सोचे कि जूठे होने के कारण वे श्रीराम के खाने लायक भी रहेंगे या नहीं। यही तो थी शबरी की राम के प्रति निश्छल प्रेम की अधीरता। ज्ञान, अज्ञान उसके आगे क्या मायने रखता है भला!
ढाई आखर प्रेम के
कहा भी गया है ‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय।’ भले ही यह बात कबीर ने बहुत बाद में कही हो, पर जीवन का सार तो ये पंक्तियां तभी से हैं, जब से पृथ्वी पर जीवन का आविर्भाव हुआ। मानव तो क्या, देवी-देवता तक भी प्रेम के प्यासे रहे हैं। जिस डगर पर बड़े-बड़े ज्ञानी, ध्यानी, योगी, संत-महात्मा भी असफल हो गये, आश्चर्यजनक रूप से उसी मार्ग पर सीधे-साधे अपढ़ लोग कामयाब हो जाते हैं। उदाहरण चाहे कृष्ण की गोपियों का लें या फिर नरसी भगत का, मीरा की आराधना को परखें या रविदास के समर्पण को। रामायण में इस सिद्धांत की पुष्टि करता है भीलनी शबरी का राम के प्रति अनूठा, अगाध व अलौकिक प्रेम। ऐसा प्रेम जिसमें न विद्वता का पुट है, न ही लंबी तपश्चर्या का रास्ता।
शबरी की पर्ण कुटी में श्रीराम
सीता के अपहरण के बाद जब राम और लक्ष्मण उनका पता जानने का प्रयास कर रहे थे, तब अनेक ऋषि बड़ी अधीरता से उनके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे, पर वे सबसे पहले शबरी के आश्रम में जाते हैं। अपने आराध्य को अपनी पर्ण कुटी में पाकर शबरी आनंदातिरेक में खड़ी की खड़ी रह जाती हैं। उनकी हालत तो कुछ ऐसी ही हुई होगी, ‘निपट बावली सी मैं जान ना पाऊं, हंसू, रोऊं या गाऊं, क्या भेंटूं, क्या दे दूं, क्या खाऊं और खिलाऊं…।’ खैर जैसे-तैसे सामान्य होकर शबरी राम-लक्ष्मण की आवभगत करती हैं। शबरी भक्तिपूर्वक अपने आराध्य को बैठाती हैं, उनके चरण पखारती हैं और घर में जो भी मौजूद होता है वही राम जी को खिलाने का निश्चय करती हैं, पर एक दुविधा, एक असमंजस। कुटिया में उस समय सिर्फ जंगली बेर ही थे, तिस पर भी पता नहीं कि खट्टे हों या मीठे। अब राम को वह खट्टे बेर कैसे दे सकती थीं भला! सो एक-एक बेर चख-चख कर देने लगती हैं त्रिलोकस्वामी श्रीराम को। अब भक्त प्रेम से दे और भगवान न खाएं, यह कैसे हो सकता है भला? उन बेरों को श्रीराम बड़े ही चाव से खाते जाते हैं और शबरी की आंखों से निर्मल प्रेमाश्रु धारा बहती चली जाती है, न भगवान को सुध कि उन्हें जूठे बेर दिये जा रहे हैं, न भक्त को होश कि आखिर वह कर क्या रही हैं।
यही तो है सच्चे प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति कि भगवान जूठे बेरों से ही तृप्त हो जाते हैं, जन्म-जन्म के, जीने-मरने के, बंधन से मुक्त कर देते हैं शबरी जैसे भक्तों को। शबरी ही राम को सुग्रीव का पता देती हैं। उनसे मिलने तथा उनकी शक्ति और क्षेत्र के ज्ञान से परिचित कराती हैं। उनसे मिलने का आग्रह करती हैं, जो बाद में सीता की खोज में मील का पत्थर सिद्ध होता है। हनुमान और श्रीराम के पुनर्मिलन में सेतु का काम करता है।
रामायण के पात्र अंधेरी रात में छोटे तारे-सी
शबरी नाम की यह पात्र पूरी रामायण में केवल एक बार ही दिखाई देती हैं और वह भी बहुत थोड़े समय के लिए। ठीक वैसे ही जैसे घनी अंधेरी रात में एक छोटा-सा तारा एक क्षण के लिए चमके और लुप्त हो जाए, पर ऐसी छटा बिखेर जाए जो भूले नहीं भुलाए। राम के वन गमन के समय, शबरी को राम, लक्ष्मण के दर्शन होते हैं तो वे ऐसे गदगद हो जाती हैं मानों कई जन्मों की कामना एक साथ ही पूर्ण हो गयी हो।