उच्चकोटि के संतों में गिनती होती थी संत राबिया की। वे जीवन के व्यावहारिक पहलुओं के अनुपालन में पारंगत मानी जाती थीं। रोचक बात यह थी कि उनकी साधना स्थली के निकट पानी का मटका और जलता हुआ अंगारा रखा होता था, जो लोगों की जिज्ञासा का विषय बना रहता। एक जिज्ञासु लंबे समय से इसकी तार्किकता को जानना चाहता था। एक दिन साहस करके उसने संत राबिया से पूछ ही लिया कि इस पानी के मटके और अंगारे की तार्किकता क्या है? संत राबिया मुस्करायीं और बोलीं- जल मैंने इसलिये रखा कि ताकि मैं अपनी तृष्णाएं इसमें डूबो सकूं और अंगारा इसलिये कि मैं अपने अहंकार को भस्म कर सकूं। जिज्ञासु ने पूछा, आप तो संत हैं और इन मानवीय दुर्बलताओं से मुक्त हैं? संत राबिया बोली, संपूर्णता केवल भगवान में ही होती है। इंसान तो दुर्बलताओं का पुतला है। कभी भी उसकी तृष्णाएं व अहंकार जीवित हो सकते हैं। उनके प्रति हमें हमेशा सचेत रहना चाहिए।
प्रस्तुति : मधुसूदन शर्मा