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चरित्रबल से स्वराज

एकदा
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आचार्य चाणक्य राजनीति के प्रकांड पंडित थे। समय-समय पर राजा से लेकर साधारण व्यक्ति तक उनसे अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया करते थे। एक दिन एक विद्वान पंडित उनके पास आए और पूछा, ‘आचार्य, दुनिया में भाग-दौड़ और अर्थ संचय की प्रतिस्पर्धा चल रही है। आखिर लोग इससे क्या प्राप्त करना चाहते हैं?’ आचार्य चाणक्य ने उत्तर दिया, ‘सुख।’ उस पंडित ने फिर पूछा, ‘वास्तविक सुख मिलता कैसे है?’ आचार्य ने कहा, ‘धर्मपूर्वक सात्विक जीवन व्यतीत करने से। धर्मानुसार जीवन जीना संभव है, जब देश में सदाचारी शासक हो। बाहरी शासन में न तो धर्मानुसार जीवन संभव होता है और न ही व्यापार सुचारु रूप से चल सकता है।’ फिर पंडित ने पूछा, ‘स्वाधीन राष्ट्रों का स्वराज्य अक्षुण्ण कैसे रह सकता है?’ आचार्य चाणक्य का उत्तर था, ‘चरित्र के बल से। यदि सत्ता स्वार्थी और भ्रष्ट लोगों के हाथों में जाएगी, तो स्वराज्य सुराज न होकर कुराज हो जाएगाा और इसका दुष्परिणाम शासक और प्रजा दोनों को भुगतना पड़ेगा। अतः राष्ट्रीय संकल्प लेकर, जो शासक स्वयं सदाचार का पालन करता है और जनता के कल्याण के लिए कार्य करता है, उसे किसी भी संकट का सामना नहीं करना पड़ता।’

प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी

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