यह बात 1921 के उस दौर की है, जब देश स्वतंत्रता आंदोलन की ज्वाला में जल रहा था। चारों ओर अंग्रेजी शासन का कहर था और देश के युवा आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। एक अदालत में सुभाषचंद्र बोस को पेश किया गया। अंग्रेज न्यायाधीश ने कठोर स्वर में पूछा, ‘तुम्हारा नाम?’ सुभाष ने निर्भीक होकर उत्तर दिया, ‘देशप्रेम।’ ‘पिता का नाम?’ ‘स्वाधीनता।’ ‘क्या करते हो?’ ‘ब्रिटिश शासन की जड़ों को उखाड़ने का काम।’ न्यायाधीश चौंक गया। इतनी निर्भीकता उसने पहले कभी नहीं देखी थी। क्रोधित होकर उसने कहा, ‘तुम्हें छह महीने की सजा दी जाती है।’ सुभाष मुस्कराए और बोले, ‘सिर्फ छह महीने? क्या मैं अंग्रेजी हुकूमत को हिला देने की इतनी छोटी सजा का ही हकदार हूं?’ उनके इस उत्तर से पूरी अदालत में सन्नाटा छा गया और ब्रिटिश सत्ता की नींव हिलती-सी महसूस हुई।
प्रस्तुति : राजकिशन नैन
Advertisement
Advertisement
×