एक बार महान गणितज्ञ रामानुजम कुछ किशोरों को गणितीय सूत्र समझा रहे थे । एक किशोर बहुत मेधावी था। वह यह सोच रहा था कि इस गणित में रखा ही क्या है। बस अभ्यास ही अभ्यास। न जाने कब वो दिन आयेगा कि संसार की नजर हम पर पड़ेगी। उदास होकर यह बात उसने रामानुजम से भी कह दी। वे उस किशोर को एक मैदान मंे ले गये। वहां गुलमोहर खिला था और हर कोई उसकी प्रशंसा कर रहा था। वह बोले, ‘ये देखो, गुलमोहर का यह पेड़ पूरे साल अनजान-सा खड़ा रहता है। उसे कोई मुड़कर नहीं देखता, कोई पहचानने के लिए खड़ा नहीं होता। मगर इस मौसम में जैसे ही वह अपने ऊपर गहरे लाल फूलों की चादर ओढ़कर आनंद का परचम लहराता है, हर कोई उसे खोजकर देखता है। उसके फूलों को चुनता है और घंटों उसके रंग को निहारता हुआ, गुलमोहर के फूल, पत्ती, शाखा छाया हर चीज के फायदे और सुंदरता पर बोलता है। ठीक ऐसे ही तुम अपने गणितीय अभ्यास को ले सकते हो। अपने गुणों की मदद से अपना हुनर निखारते चलो एक दिन हर कोई तुम पर, तुम्हारे गुण और काबिलियत पर बात करेगा।’ प्रस्तुति : पूनम पांडे
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।