बेंजामिन फ्रैंकलिन का आरंभिक जीवन बेहद कष्टपूर्ण था। उन्हें कई बार भाई के ताने सुनने को मिलते थे। एक दिन भाई के व्यवहार से तंग आकर उन्होंने अपना घर छोड़ दिया। किसी ने उन्हें बताया कि न्यूयॉर्क में काम मिल सकता है। वे बोस्टन से न्यूयॉर्क पहुंचे। मगर उन्हें न्यूयॉर्क में कहीं भी कोई काम नहीं मिला। आखिरकार वे कीमर नाम के एक छापेखाने में पहुंचे। उस छापेखाने के कर्मचारियों ने बताया कि यहां उन्हें कोई काम नहीं मिल सकता। निराश होकर जब वे वापस लौट रहे थे, तभी प्रेस के मालिक कीमर ने उन्हें आवाज दी और कहा, ‘मेरी एक मशीन खराब पड़ी है। क्या तुम उसे ठीक कर सकते हो?’ मशीन को देखकर फ्रैंकलिन ने कहा, ‘मैं इसे ठीक तो कर सकता हूं, पर इसमें दिन भर का समय लग सकता है।’ कीमर ने उसे दिन भर काम करने की मंजूरी देने का वादा किया, लेकिन बेंजामिन ने मशीन को दोपहर से पहले ही ठीक कर दिया। प्रेस मालिक ने उन्हें पूरे दिन की मजदूरी देकर विदा करना चाहा, पर फ्रैंकलिन ने यह कहकर आधे पैसे वापस कर दिए कि उन्होंने आधे दिन की ही मजदूरी की है। प्रेस मालिक पर उनकी इस बात का गहरा असर पड़ा। उन्होंने बेंजामिन को एक और खराब मशीन ठीक करने को कहा। मालिक ने कहा, ‘तुम्हारे अंदर परिश्रम और ईमानदारी जैसे गुण हैं, जो तुम्हें भविष्य में बहुत आगे ले जाएंगे। तुम दुनिया के लिए बहुत कुछ करोगे।’ अपने इन्हीं गुणों के कारण फ्रेंकलिन ने आगे अभूतपूर्व उपलब्धियां अर्जित कीं।
प्रस्तुति : पूनम पांडे