स्वामी दयानंद सरस्वती भोजन करने के पहले उसमें से कुछ भाग अग्नि को अर्पित करते, फिर पशु-पक्षियों को खिलाते थे। उनका मानना था कि ऐसा किये बिना भोजन करना पाप है और मांसाहार के समान है। एक पंडित हरिशंकर स्वामी जी को ऐसा करते देख बोले, ‘जिस प्रकार आप भोजन करते हैं, वैसे तो अन्य कोई व्यक्ति नहीं करता।’ स्वामी जी ने गीता के तीसरे अध्याय का तेरहवां श्लोक पढ़ा और इसका अर्थ बताते हुए बोले, ‘यज्ञ शेष अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सारे पापों से मुक्ति पा जाते हैं, किंतु जो केवल अपने लिए भोजन तैयार करते हैं और खाते हैं वे पाप को ही खाते हैं।’
प्रस्तुति : पुष्पेश कुमार पुष्प