चेतनादित्य आलोक
हमारी संस्कृति में पूर्ण चंद्रमा को अमृत का स्रोत माना गया है। इसीलिए सनातन परंपरा में प्रायः पूर्णिमा या पूर्णमासी के व्रत का बड़ा महत्व है। वैसे तो प्रत्येक माह की पूर्णिमा का अपना-अलग महत्व होता है, लेकिन कुछ महीनों में आने वाली पूर्णिमा तिथियां अत्यंत ही श्रेष्ठ मानी जाती हैं। आश्विन माह की पूर्णिमा उन्हीं में से एक है, जिसे ‘शरद पूर्णिमा’ कहा जाता है। वैसे शरद पूर्णिमा को ‘कौमुदी व्रत’, ‘कोजागरी पूर्णिमा’ एवं ‘रास पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। इसे रास पूर्णिमा कहे जाने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है। वास्तव में शरद पूर्णिमा का भगवान श्रीकृष्ण से गहरा संबंध है। धर्मशास्त्रों के अनुसार रासोत्सव का यह दिन भगवान श्रीकृष्ण ने जगतzwj;् के कल्याण हेतु निर्धारित किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार कुछ कुमारियों ने ‘कार्तिक स्नान’ करते समय भगवान श्रीकृष्ण को पति के रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी का पूजन किया था। यही वह दिन था, जब उन कुमारियों की उक्त कामना का स्मरण करते हुए भगवानzwj;् श्रीकृष्ण ने मुरली बजायी और यमुना नदी के तट पर गोपियों के संग ‘महारास’ रचाकर उनकी कामनाएं पूर्ण की थीं।
वैसे तो पूर्णिमा का व्रत प्रायः सभी के लिए कल्याणकारी होता है, परंतु विवाहोपरांत यानी नये-नवेले जोड़ों के लिए यह विशेष महत्व रखता है। नियमानुसार पूर्णिमा के व्रत की शुरुआत शरद पूर्णिमा से ही करनी चाहिए। दरअसल, शरद पूर्णिमा ही वह तिथि है, जिससे हिन्दू संस्कृति में स्नान और व्रत का माहात्म्य दोबारा प्रारम्भ होता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारम्भ होता है। सामान्यतः प्रत्येक पूर्णिमा को व्रत करने वाले लोग शरद पूर्णिमा को भी चंद्रमा का पूजन करके ही भोजन करते हैं। इस अवसर पर शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है। शरद पूर्णिमा को माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। वैसे शरद पूर्णिमा की तिथि माता लक्ष्मी को समर्पित होती है। सनातन धर्मावलम्बियों का विश्वास है कि इस तिथि को रात के समय माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करके भक्तों को आशीर्वाद देकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के अवसर पर विधि-विधान पूर्वक भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और व्यक्ति को धन, समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मान्यता है कि इस तिथि को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और रात में चंद्रमा से निकलने वाली किरणें अमृत के समान पवित्र होती हैं। दरअसल, इस तिथि को चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है और पूरी पृथ्वी शीतल एवं पवित्र चांदनी में नहायी हुई प्रतीत होती है। इसी दिन से शरद ऋतु की शुरुआत यानी सर्दियों का आगमन भी हो जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन इत्यादि करने का विधान है। मान्यता है कि इस रात्रि में भ्रमण करना चाहिए, क्योंकि चंद्रकिरणों में मौजूद औषधीय गुण लाभकारी होते हैं।
व्रत-पूजन विधि
शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर किसी पवित्र नदी, कुंड या गंगाजल मिले जल से घर में स्नान के बाद ईष्टदेव की पूजा-आराधना करने, भगवान को गंध, अक्षत, तांबूल, धूप, दीप, पुष्प, सुपारी एवं दक्षिणा अर्पित करने का विधान है। रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देने से व्यक्ति दोषमुक्त होता है। गाय के दूध में बनी घी मिश्रित खीर अलग-अलग पात्रों में भरकर चन्द्रमा की रोशनी में एक प्रहर यानी तीन घंटे तक रखने के बाद उसे भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को अर्पित कर मांगलिक गीत गाते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए। दूसरे दिन सुबह भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा करके खीर का प्रसाद वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए।