मदन गुप्ता सपाटू
आज सावन की शिवरात्रि है। इस शिवरात्रि को कांवड़ यात्रा का समापन दिवस भी कहा जाता है। हरिद्वार, गौमुख व गंगोत्री जैसे स्थानों से गंगाजल लाकर शिवलिंग को अर्पित करने की परंपरा है। इस बार कांवड़ यात्रा पर प्रतिबंध के कारण यह परंपरा निभाना भले मुमकिन न हो, लेकिन भोलेनाथ को तो भावना से प्रसन्न किया जा सकता है।
वैसे तो हर महीने शिवरात्रि का व्रत रखकर भोले बाबा की पूजा-अर्चना की जाती है, लेकिन सावन की शिवरात्रि और फाल्गुन मास में पड़ने वाली महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना के साथ जलाभिषेक करने से वह जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। गंगाजल से अभिषेक करना बहुत ही पुण्यकारी माना जाता है। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करता है, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन व्रत रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन शिवरात्रि का व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए श्रेष्ठ माना गया है। खासतौर पर, जिन कन्याओं के विवाह में समस्याएं आ रही हों, उन्हें यह का व्रत करना चाहिए।
ऐसे करें अभिषेक : शिवलिंग पर पंचामृत, दूध, दही, शहद, घी, शर्करा, गंगा जल, बेल पत्र, कनेर, श्वेतार्क, धतूरा, कमलगट्टा, गुलाब और नील कमल चढ़ाकर अभिषेक करना चाहिए।
- सावन शिवरात्रि के दिन सुबह स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप जलाएं। अगर घर में शिवलिंग है तो उसका गंगा जल से अभिषेक करें।
- गंगा जल न होने पर आप साफ पानी से भी भोले बाबा का अभिषेक कर सकते हैं। घर में शिवलिंग नहीं है भोले बाबा का ध्यान करें। भगवान शिव की आरती करें। माता पार्वती की आरती भी करें। अपनी इच्छानुसार भगवान शंकर को सात्विक आहार का भोग लगाएं। भोग में कुछ मीठा भी शामिल करें। पूरा दिन व्रत कर शाम को भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करने के साथ आरती गाएं।
पितरों, प्रकृति का जतायें आभार
कल सावन की हरियाली अमावस्या है। दिन सोमवार है, इसलिए इसे सोमवती अमावस्या भी कहा जाएगा और इसका महत्व भी ज्यादा माना जाएगा। प्रत्येक अमावस्या की तरह श्रावणी अमावस्या पर भी पितरों की शांति के लिए पिंडदान और दान-धर्म करने का महत्व है। इसके अलावा यह वृक्षों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भी दिन है। इस दिन गंगा जल से स्नान करें। सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों के निमित्त तर्पण करें। श्रावणी अमावस्या का उपवास भी किया जाता है। किसी गरीब को दान-दक्षिणा दें। श्रावणी अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा का विधान है। इस दिन पीपल, बरगद, केला, नीबू अथवा तुलसी के पौधे का रोपण करें। मछलियों को आटे की गोलियां और चींटियों को चीनी या सूखा आटा खिलाना भी पुण्यदायी माना जाता है।
शिव-शक्ति के पुनर्मिलन का पर्व
भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का पर्व हरियाली तीज इस बार 23 जुलाई को मनाया जाएगा। सावन के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाये जाने वाले इस पर्व को कुछ जगह कजली तीज भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस कड़ी तपस्या के बाद श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही भगवान शंकर ने देवी पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इसलिए इस दिन महिलाएं व्रत रखकर मां पार्वती और भोलेनाथ की पूजा करके अपने पति की लंबी उम्र व सौभाग्य की प्रार्थना करती हैं।
नये कपड़े, शृंगार, झूला, मेहंदी भी इस पर्व से जुड़े हैं। मेहंदी सिर्फ शृंगार तक सीमित नहीं है। इसका औषधीय और आध्यात्मिक महत्व भी माना गया है। इसे हाथों, पैरों पर लगाने से जहां तन को शीतलता महसूस होती है, वहीं मान्यता है कि बुध और शुक्र ग्रह को बल मिलता है। इससे मन शांत रहता है, दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ता है।