अभिनव गुप्त
प्रभु श्रीराम के कार्य के लिए अपना शरीर न्योछावर करने वाले जटायु का नाम भक्त शृंखला में सदा से ही आदर से लिया जाता है। पक्षी-राज जटायु ने सीताजी को अपहरण से बचाते हुए रावण के हाथों वीरगति प्राप्त की थी। जिस स्थान पर ये प्रसंग घटित हुआ और श्रीराम ने अपने हाथों से जटायु का संस्कार किया, वह स्थान आज भी अस्तित्व में है। रामायण के अनुसार यह घटना पंचवटी के निकट हुई थी। महाराष्ट्र का नासिक नगर ही रामायण काल की पंचवटी माना जाता है। श्रीराम वन गमन मार्ग के अनुसार नासिक नगर से लगभग 58 किलोमीटर की दूरी पर घोटी के ताकेद ग्राम में जटायु जी की स्मृति में बना तीर्थ ही वह स्थान है, जहां यह घटना घटित हुई थी। इस स्थान को अब सर्वतीर्थ के नाम से जाना जाता है। यहां विराजित श्रीराम के विग्रह में वे जटायु को गोद में लिए हुए हैं। जीव प्रेम का इससे अनुपम उदाहरण विरले ही देखने को मिलता है। मुंबई-आगरा राजमार्ग से भी यह स्थान ज्यादा दूर नहीं है। यहां आने के लिए पक्की सड़क बनी हुई है। छोटे-छोटे खेतों और ऊंचे-नीचे मार्ग से यहां आना एक नया अनुभव प्रदान करता है।
रामायण में जटायु जी के प्रसंग का बहुत महत्व है। गिद्धराज जटायु को पक्षियों का राजा कहा गया है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब अगस्त्य ऋषि से आज्ञा लेकर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी पंचवटी में निवास के लिए प्रवेश करते हैं, तो उनकी भेंट जटायु से होती है। जटायु श्रीराम को बताते हैं कि उनके पिता राजा दशरथ और वे मित्र रहे हैं। यह बात सुनकर श्रीराम, सीता जी एवं लक्ष्मण जी बहुत प्रसन्न होते हैं।
शूर्पणखा प्रसंग के बाद जब रावण धोखे से सीता जी का अपहरण कर लेता है और उनको पुष्पक विमान से लंका ले जाने लगता है, तब सीताजी की करुण पुकार सर्वप्रथम जटायु को ही सुनाई देती है। वे रावण के पुष्पक विमान का पीछा करते हैं और उस दुष्ट पर आक्रमण करते हैं। वे सीताजी को विश्वास दिलाने का प्रयत्न करते हैं कि उनके रहते रावण उनको कहीं नहीं ले जा सकता। वे वृद्ध होने पर भी तत्परता से रावण पर आक्रमण करते हैं। रावण भी एक बार जटायु जैसे वीर योद्धा के प्रहार से घबरा जाता है। जटायु अपने पंजों से रावण पर प्रहार करते रहते हैं। कुछ देर के युद्ध के उपरांत वीर जटायु का एक पंख रावण द्वारा खड्ग के वार से काट दिया जाता है। तब जटायु तड़पते हुए नीचे धरती पर गिर जाते हैं। मां सीता भी जटायु की दशा देख कर चीत्कार करती हैं। इस बीच रावण को मौका मिल जाता है और वह विमान में सीता जी का अपहरण करके दक्षिण दिशा में चला जाता है।
कुछ समय बाद श्रीराम और लक्ष्मण जी वैदेही को ढूंढते हुए जटायु जी के पास पहुंच जाते हैं। बुरी तरह घायल जटायु श्रीराम को देख कर कहते हैं कि वे उन्हीं की प्रतीक्षा में थे ताकि प्राण छोड़ने से पहले उनको सारी घटना की जानकारी दे सकें। प्रभु उनका सिर अपनी गोद में रख लेते हैं। तब जटायु उनको सारा घटनाक्रम सुना कर बताते हैं कि रावण माता को दक्षिण दिशा में ले कर गया है। इसके उपरांत गिद्धराज जटायु श्रीराम की गोद में ही प्राण त्याग कर अपने परमधाम को गमन करते हैं। श्रीराम व्यथित मन से लक्ष्मण जी की सहायता से जटायु का अंतिम संस्कार अपने हाथों से करते हैं।