चंपारण में अंग्रेजों द्वारा खेतिहर मज़दूरों और किसानों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही थीं। गांधी जी ने जब इन सब घटनाओं के बारे में सुना तो तुरंत वहां जा पहुंचे और स्थिति का जायजा लेना प्रारंभ कर दिया। वहां की गरीब जनता ने गांधी जी को अपने बीच पाकर राहत की सांस ली। एक मजदूर ने आकर गांधी जी को चेताया, ‘बाबा, इस इलाके का गोरा मालिक जल्लाद किस्म का आदमी है। हम पर तो ज़ुल्म करता ही है, आपको भी मरवाना चाहता है। इस काम के लिए उसने कई हत्यारों को आपके पीछे लगा रखा है।’ गांधी जी मुस्कुरा कर रह गए। रात हुई तो गांधी जी उस गोरे की कोठी के लिए अकेले ही बिना किसी को बताए निकल गए। आमना-सामना होने पर गोरे ने गांधी जी को अकेले पाकर आश्चर्य से पूछा, ‘आप यहां, अकेले। कहिए, कैसे आना हुआ।’ गांधी जी ने बिना किसी भूमिका के जवाब दिया, ‘मैंने सुना है कि आपने मेरे पीछे कुछ किराए के हत्यारे छोड़ रखे हैं। आपको परेशानी न हो, इसलिए मैं अकेला ही आपके पास चला आया। अब आप चाहें तो अपनी इच्छा पूरी कर सकते हैं।’ गांधी जी की निर्भीकता देखकर वह गोरा भी दंग रह गया। गोरे को जड़वत छोड़कर गांधी जी वहां से निकल गए।
प्रस्तुति : मुकेश कुमार जैन