सत्य की राह पर चलने का संकल्प : The Dainik Tribune

सत्य की राह पर चलने का संकल्प

सत्य की राह पर चलने का संकल्प

कृष्ण प्रताप सिंह

इक्ष्वाकुपुरी, प्रथमपुरी, कोसल, साकेत, विशाखा, विनीता और अवध। धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथों में अयोध्या के अनेक नाम पाये जाते हैं। हां, अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि ही नहीं, राजधानी भी है—सप्तपुरियों में से एक, जिसके बारे में कहा जाता है कि शौक-ए-दीदार अगर है तो नजर पैदा कर। यहां नजर पैदा करने का मतलब मन की आंखें खोलने से है। अयोध्या तो बहुत से लोग आते हैं लेकिन जो उसे मन की आंखों से देखते हैं, उसका निरालापन बस वही देख पाते हैं।

यह निरालापन ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 164वें सूक्त की उस 46वीं ऋचा में अयोध्या के अगाध विश्वास का लगातार उद्घोष करता रहता है, जिसमें कहा गया है—एक ही सत्य है, जिसे विप्र या ज्ञानीजन अनेक प्रकार से समझाते हैं। आप कभी अयोध्या आयें और इस ऋचा को साकार देखना चाहें तो उसके प्रसिद्ध गुजरात भवन स्थित उस सत्यार में जरूर जायें जो सारे धर्मों के अनुयायियों के लिए खुला रहता है। जो भी वहां पहली बार जाता है, विभिन्न धर्मों के आराध्यों की मूर्तियों व छवियों को एक मंच साझा करती देखकर चकित हो जाता है।

इस सत्यार को सत्य समाज द्वारा संचालित किया जाता है, जो सत्य को परमधर्म या कि भगवान और अहिंसा को उसकी सहचरी यानी भगवती मानता है। सामाजिक कार्यकर्ता लालजी भाई सत्यस्नेही ने कोई 72 साल पहले इसकी नींव रखी तो उनका मुख्य उद्देश्य विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच सद्भाव बढ़ाना था। सत्यार दो शब्दों सत्य और यार से मिलकर बनता है और किसी भी तरह के भेदभाव के बिना उन सबका स्वागत करता है, जो सत्य से याराना रखना चाहते हैं। इसीलिए कई लोग सत्यार को ‘सत्यमन्दिर’ और ‘सभी देवताओं का मन्दिर’ भी कहते हैं।

अयोध्या के सत्यार में परमधर्म सत्य व उसकी सहचरी अहिंसा की बड़ी-बड़ी मूर्तियों के साथ सारे धर्म या विचार प्रवर्तकों की छोटी-छोटी मूर्तियां एक ही वेदी पर प्रतिष्ठित हैं-एक जैसे आदर के साथ। यहां कन्फ्यूशियस और जनथ्रुस्त से लेकर विष्णु, गौतम बुद्ध, स्वामी महावीर, राम, कृष्ण, शिव और ईसा मसीह सबकी मूर्तियां तो हैं ही, कार्ल मार्क्स ब्लादिमिर लेनिन जैसे कम्युनिस्टों की भी हैं।

प्रसंगवश, सत्य समाज में सत्य और अहिंसा से प्रेम करने वालों को सत्यप्रेमी, सत्यस्नेही, सत्यदास और सत्यभक्त जैसे नामों से जाना जाता है। समाज की मान्यता है कि सत्य, ईश्वर, अल्लाह, गाॅड, ईसा, खुदा, और मंुगू आदि परम नाम हैं, जबकि विवेक, बुद्धि, प्रेम, न्याय, सेवा, विनय, श्रद्धा आदि गुणदेव और पैगम्बर, तीर्थंकर, अवतार व महामानव आदि व्यक्तिदेव। इसी तरह परमशास्त्र है विवेक, मूलशास्त्र है सत्यामृत और शास्त्र है सत्यभक्त साहित्य। उपशास्त्रों में समस्त धर्मों के प्रमुख ग्रंथों की गिनती की जाती है और सत्यार को परम धर्मस्थान माना जाता है।

सत्यसमाज में साधु की परिभाषा : कम से कम लेकर अधिक से अधिक समाजसेवा करने वाले कल्याणवादी सज्ज, जिनका मुख्य ध्येय सार्वत्रिक एवं सर्वकालिक दृष्टि से अधिकतम‍् व्यक्तियों का अधिकतम‍् सुखवर्धन और उपध्येय स्वतंत्रता, विश्वशांति, मुक्ति (मोक्ष) दुःखाभाव, आत्मशुद्धि और आत्मोद्धार हो। सत्य समाज का दर्शन है कल्याणवाद जबकि प्रमुख अभिवादन ‘जय सत्य’।

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