मौलाना अबुल कलाम आजाद आजादी के बाद देश के पहले शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने शिक्षा, साहित्य, संस्कृति से संबंधित अनेक संस्थाओं की स्थापना करके आजाद भारत के शिल्पकार की भूमिका निभाई। देश को गुलामी की बेड़ियों से आजाद करवाने के लिए उन्होंने कई बार जेल की सजाएं काटी। भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेते हुए उन्हें 8 अगस्त, 1942 को अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया गया। इसी बीच उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। कृतज्ञ देशवासियों ने बेगम आजाद का स्मारक बनाने का निर्णय किया। इस कार्य को अंजाम देने के लिए एक स्मृति कोष बनाकर धन एकत्रित करना शुरू कर दिया गया। मौलाना आजाद के जेल से बाहर आने तक कोष में बड़ी रकम जमा हो गई। आजाद की रिहाई के बाद उन्हें जब पता चला तो वे बहुत नाराज हुए। उन्होंने जमा हुई रकम इलाहाबाद के कमला नेहरू अस्पताल को दे दी। मौलाना आजाद इस तरह की प्रेरक शख्सियत थे, जो देश हित को सर्वोपरि मानते थे। वे जन धन का प्रयोग लोक हित में ही करने के पक्षधर थे। प्रस्तुति : अरुण कुमार कैहरबा
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।